बावली बूच - सुनील कुमार

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आमतौर पर किसी व्यंग्य कहानी या उपन्यास में समाज..सरकार..व्यक्ति अथवा व्यवस्था की ग़लतियों एवं कमियों को इस प्रकार से चुटीले अंदाज़ में उजागर किया जाता है कि सामने वाले तक बात भी पहुँच जाए और वह खिसियाने..कुनमुनाने.. बौखलाने..बगलें झाँकने के अलावा और कुछ ना कर पाए। व्यंग्यात्मक उपन्यास?..वो भी हरियाणा के एक छोरे की कलम से? बताओ..इससे बढ़ कर सोने पे सुहागा और भला इब के होवेगा? *जी..हाँ...वही हरियाणा..जित दूध दही का खाणा।* वही हरियाणा, जहाँ बात बात में हास्य अपने खड़े और खरे अंदाज़ में कभी भी औचक..बिना किसी मंशा एवं बात के खामख्वाह टपक पड़ता है। दोस्तों...आज मैं बात कर