खौलते पानी का भंवर - 14 - काँच के सपने (अंतिम भाग)

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काँच के सपने बाएं हाथ में उपहार के पैकेट को बड़े ध्यान से पकड़े हुए जब वह घर से निकला तो अंधेरा पूरी तरह छा चुका था. सधे हुए कदमों से वह बस स्टॉप की ओर चल पड़ा. हर साल 21 जुलाई के दिन दीदी के धर जाना एक तयशुदा कार्यक्रम होता था. इस दिन उसकी दीदी और जीजा जी के विवाह की वर्षगांठ होती थी. इस रोज़ आमतौर पर वह दफ़्तर से सीधे ही दीदी के घर की बस पकड़कर वहाँ चला जाया करता था, मगर इस बार ऐसा करना संभव नहीं था. कारण था वह उपहार जो वह