सरहद - 3

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3 ‘‘माँ मैं अब पाठषाला नहीं जाऊँगी... मेरे पेट में बच्चा आ जायेगा.. तुम सब मेरी षादी उस गुन्डे से करा दोगे... मैं नहीं जाऊँगी पाठषाला...’’ टप-टप मेरे गरम आँसुओं से मिट्टी का फर्ष भीग रहा था पर माँ के भीतर कब ज्वालामुखी धधकने लगा था जिससे मैं अनजान थी। ‘‘रमोली की माँ छेऽ!... भुली तुम दोनों माँ बेटी लिपटा-चिपटी करने पर लगे हो... इधर देखो इस बच्ची का मुँह कुम्हला गया... खिचड़ी भी नहीं खाती बेचारी! माथा भी तप रहा है... ताई पास आती गई और पीछे मुड़कर भीतर की ओर... माँ ने भारती को लपक कर छाती से