सरहद - 5

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5 छह महिने खोजते-खोजते बीत चुके थे कभी हरिद्वार, कभी ऋषिकेश, बनारस, गया, हरिद्वार एक-एक आश्रम छान लिया था, गाँव के लोग भी जहाँ तक हो सकता था, खोज आये थे। किसी पहाड़ की तलहटी पर कोई भी आश्रम दिखता उसमें पहुँच जाते, पर, कहीं भी पता नहीं लगा कि सिडंली गाँव के बी0ए0 में पढ़ने वाले जगदीश को वैराग्य ने झपट लिया! सातवें महिने जब सासू जी की तेरहवीं हुई, उसके अगले दिन एक मंगता जोगी आया। उसी से पता चला कि जगदीश जोगी अखाड़े में अपना श्राद्ध कर हिमालय की ओर चला गया। ससुर जी ने सुना झोले