एनकाउंटर

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सँझवाती का समय है। बाज़ार में घुसने से पहले एक मोड़ पड़ता है, उस मोड़ पर पैंतालीस-छियालीस साल की एक औरत; एक टोकरी में तरकारी बेच रही है। औरत का बदनदेहाती क़िस्म का है- भरा-भरा सा। रंग कुछ साँवला है लेकिन चेहरे पर कसावट अभी बनी हुई है। थोड़ा बनाव-सिंगार कर दिया जाए तो किसी भोजपुरी फ़िल्म में मेन लीड मिल सकता है। जिस दुकान से लगकर वो बैठी है, उसके ठीक सामने वाले घर की पहली मंज़िल की खिड़की पर एक नौजवान खड़ा है, जो बड़ी देर से उस सब्ज़ीवाली की तरफ़ एकटक देख रहा है। उसकी दिलचस्पी हालांकि