गुलदस्ता - 16

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       १०१  क्या कोई किसीको समझ सकता है  ? अपने मनकी बात किसी को बतला सकता है ? सबका है रवैंय्या अपना अपना दुसरों का जीवन किसे भाता है ? सबकी है समस्या बडी बडी तुम क्या जानो मेरा दर्द अपना रास्ता नापो भाई किसे कहाँ है मेरी कद्र सब आऐंगे केवल पुछने हल न कोई बताऐंगे पीठ पीछे अपनेही लोग दर्द का मजाक बनाएंगे अरे, दुनियावालो मुझे भी परवाह नही तुम्हारी तुम जियो मैं भी जिऊंगा दुनिया है मतवारी ......................          १०२ दुर पहाडपर बिजली चमकी घनघोर अंधेरा पलट गया क्षणभर के उजाले में