दरद न जाने कोय

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दरद न जाने कोय- याने जीवन तो सरलता से जीने की कला है रमेश खत्री का ताज़ा उपन्यास दरद न जाने कोय आया है. उपन्यास को पढना एक सुखद अनुभव रहा. मध्यम वर्ग का नायक किस तरह जीवन की उलझनों के बीच खुद को खुश रखने का प्रयास करता है,यह रमेश खत्री ने प्रेम संबंधों को जीते हुए दिखाया है, उपन्यास में नायक –नायिका के बीच लम्बे पत्र व्यवहार का जिक्र है जो पठनीयता देता है. विवाह और उसकी त्रासदी, प्रेम, घृणा, वासना, रोमांस, प्लेटोनिक, रूमानी प्यार का सम्मिश्रण है यह उपन्यास. स्त्री पुरुष सम्बन्धों को परिभाषित करने प्रयास भी