नियति

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पेड़ों पर फलने वाले फलों से लेकरउन पर बसने वाले पंछियों तक को हर कोई चाहता हैतो उन्हीं पेड़ों से टूट कर मुरझाते हुएझड़ने वाली पत्तियों से इतना बैर क्यूं?हाय कितना कूड़ा फैल गया! पत्तियां झड़ गईं! अब झाड़ू लगाना पड़ेगा! एक काम और बढ़ गया!ऐसी तोहमतें उन शाख से बिछड़ी पत्तियों के हिस्से ही क्यों आती हैं?क्या उनसे हमें संवेदना नहीं रखनी चाहिए?जन्मदाता से बिछोह की इस प्रक्रिया परहमारी इतनी निर्मम प्रतिक्रिया क्या उचित है?हां ,हमने सराहा था उनको जब वो कोपल बन शांखों पर पनपी थीं,बस एक वही क्षण तो था जब हमने उन्हें जीभर निहारा थाउसके बाद