किस्से वीर बुन्देलों के - राज धर्म - 2

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2/ किस्से वीर बुंदेलों के- राज धर्म2 महल के पहरे ( पौड़ीे ) के निचले हिस्से में, जहाँ एक शिलालेख लगा हुआ है, खड़े होकर, हम, महल और वीरसिंह देव के बारे में सुनी सुनाई बातें दोहरा रहे थे। हमें नहीं मालूम था कि हमारा यह वार्तालाप कोई और भी बहुत गौर से सुन रहा था। हमारे ठीक पीछे। नीचे की ओर जाती सीढ़ियों के ऊपरी मुहाने पर बने प्रस्तर द्वार की पथरीली चौखट से पीठ सटाए। यही थे राजा काका। राजा काका हमारे स्थानीय मित्रों के पूर्व परिचित थे। हमारे आपसी वार्तालाप में, राजाओं की निरंकुशता, नरसंहार, लूट और