छुपा लब्ज़ों का सफर

  • 663
  • 195

              "प्रिय गौरी, यह उपहार उन शब्दों से भरा है जो अक्सर मेरे होंठों पर आ कर रुक जाते हैं। मैंने इस किताब में अपने दिल की गहराईयों को उतारा है, एक ऐसा सफर जिसमें हर मोड़ पर तुम हो। इसे पढ़ो, और शायद तुम समझ पाओ कि मेरी खामोशियाँ क्या कहना चाहती हैं। इसे सिर्फ एक किताब के रूप में न देखना, बल्कि इसे मेरे दिल की धड़कन के रूप में देखना जो तुम्हारे लिए हर पल महसूस करती है। मैं उम्मीद करता हूं कि जब तुम ये पढ़ोगी, तो तुम्हें मेरे प्रेम