द्वारावती - 11

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11 व्यतीत होते समय के साथ घड़ी में शंखनाद होता रहा ….नौ, दस, ग्यारह, बारह….. एक, दो, तीन, चार….. चार शंखनाद की ध्वनि ने गुल को जागृत कर दिया। वह किसी समाधि सेजागी, उठी। उसकी दृष्टि उत्सव पर पड़ी। वह भी वहीं बैठा था, रात्रि भर, निश्चल, स्थिर। वह भी जैसे किसी समाधि में था।उत्सव की स्थिति में कोई भी व्यवधान डाले बिना ही गुल वहाँ से उठी, नित्य कर्म करने लगी, समुद्र में स्नान आदि कर्म कर लौट आइ।उत्सव अभी भी वहीं था, किंतु निंद्राधिन था। जब वह जागा तब सूरजअपनी यात्रा के कई पड़ाव पार कर चुका था।“गुल,