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परदेशिया (भाग-1)

रोहन जो इस कहानी का मुख्य पात्र है, के जीवन पर आधारित ये कहानी सम्पूर्ण रूप से नही, पर वास्तविकता से प्रेरित है।
इस महीने बाइस साल का होने के बावजूद कुछ विशेष बादलाव नही आया उसके जीवन में।
वो कल भी अपने पिता की डांट और गालिया सुनाने का आदी था और आज भी है।
और वजह सिर्फ एक है ''उसकी उटपटांग गलतिया"।
मगर इसके लिये कभी उसने अपने आप को दोषी नही माना। हमेशा ही अपने किस्मत को दोष दिया।
और कुछ हद तक वो सही भी है। वो चाहे जो भी काम करे उसे हमेशा असफलता ही हासिल होती है।
अब कल जो हुआ उसे ही देख लीजिए। पंडित दीनानाथ जो रोहन के पिता और रामपुर गांव के सरपंच है।
उन्हें "कुस्ती" में बहुत रुचि है। हर साल वो रामपुर में कुस्ती प्रतियोगिता का आयोजन करते है। जिसमे दो टीमें भाग लेती है। एक टीम रामपुर की उनकी अपनी टीम होती है और दूसरी.. दूसरे गांव के जमीदार और उनके बचपन के दोस्त सूरेश यादव जी की होती है।
कल से पहले तक संभुनाथ के लिये गर्व की बात ये थी कि

आज तक इस प्रतियोगिता में वो कभी नही हारे थे।
मगर कल हमेशा से विपरीत कुछ हुआ।
प्रतियोगिता के दौरान जब सुरेश यादव के पहलवान ने दीनानाथ के दो पहलवानो को हरा दिया तो बहुत भरोशे के साथ दीनानाथ ने अपने बेटे रोहन को उस पहलवान से मुकाबला करने के लिए भेजा। रोहन न चाहते हुए भी अपने पिता के कहने पर लड़ने गया। और जैसा हम रोहन से उम्मीद कर सकते थे, उस पहलवान के सामने वो एक मिनट भी नही टिक सका। और पहले दाव में ही उसे हार का सामना करना पड़ा।
घर आ कर संभुनाथ ने उसे बहुत डाटा, गालिया भी दी।
रोहन को अपने पिता का गुस्सा देख कर एहसास हुआ कि इस मुकाबले को हार कर उसने कितनी बड़ी गलती कर दी है।।

कुछ दिनों पहले अपनी खराब किस्मत से परेशान हो कर रोहन ने अपने गांव के ही एक ज्योतिष से अपना हाथ दिखवाया था।
जिसे देखने के बाद ज्योतिष ने उसे बताया था, की "जैसे हर सफल इंसान की सफलता की वजह एक औरत होती है। वैसे ही तेरी जिंदगी में भी एक लड़की आने वाली है जो तेरी सारी परेशानियों को खत्म कर देगी।"
रोहन को भी ज्योतिष की बात पर पूरा भरोशा हो गया क्योंकि उसके सपनो में भी एक लड़की हमेशा आया करती है। और यही वजह था की उसने पांच सौ रुपये ज्योंतिष को त्याग दिये। मगर आज दो महीने बीत चुके है पर अभी तक उसे वो लड़की नही मिली।
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सुबह का समय। एक बगीचा जिसमे हजारो किस्म के फूल खिले है। जिनकी खुसबू से पूरा बगीचा महक उठा है। रोहन उस बगीचे में खड़ा प्राकृतिक द्वारा सजाये उस खूबशूरती को निहार रहा है कि तभी उसे एक लड़की दिखाई देती है। जिसने गाढ़े पिले रंग का शूट पहन, हरे रंग की ओढनी ओढ़ रखा है। जिसमे उसका गोरा बदन दूर से ही चमक रहा है। मानो पूरा बगीचा उसकी रोशनी से खिल उठा हो। मगर अधिक दूर होने की वजह से वो उस लड़की का चेहरा साफ देख नही पा रहा, जिसके लिए वो उसके करीब जाने की कोसिस करता है।
कि तभी अचानक....
उसके ऊपर कोई ढेर सारा पानी फेक देता है और वो तुरंत उठ बैठ जाता हैं। एक लंबी अँगड़ाई लेने के बाद जब वो अपनी आंखें खोलता है तो अपने आप को चारपाई पर पाता है। उसके पिता हाथ मे बाल्टी लिये उसके सामने खड़े होते है।
संभुनाथ उसे लक्ष्मी(उसकी भैस) को नहला कर लाने को कहते है। और साथ में उसे भी नहाने को।

आज रोहन का रिजल्ट आने वाला है। संभुनाथ जानते है कि जितना वो पढ़ता है उसके हिशाब से उसके अच्छे नम्बर आने से रहे। अब अच्छे नम्बर के लिए वो भगवान से प्राथना ही कर सकता है। और इस बार तो उन्होंने उसे पहले ही चेतावनी दी है की अगर वो फर्स्ट नही आया तो उसकी खैर नही।।

नदी में लक्ष्मी को नहलाते हुए रोहन उससे बात भी कर रहा था।
भले ही लक्ष्मी कुछ न बोले पर रोहन अपनी हर बात उसके साथ साझा करता है। एक वही तो है जो उसकी हर बात बिना कुछ कहे चुप चाप सुनती है।

तभी कुछ दूर.. नदी पर बने पुल से उसके बड़े भाई का लड़का राजू जो अभी तेरह साल का है, चिल्लाते हुए बोला।। "चाचा जल्दी से घर आ जाओ दादाजी आपका कब से आपका इंतजार कर रहे है।" और इतना कह कर वो लड़का वापस दौड़ते हुए घर की तरफ चला गया।
इधर रोहन को ये चिंता सताने लगी कि अब उसने क्या अपराध कर दिया। उसके पिता का यू अचानक बुलाना उसके लिए किसी भयानक सपने से कम नही होता है। वो लक्ष्मी को लेकर फौरन पानी से बाहर निकला और घर की तरफ भागा।
घर पहुँच कर उसे पता चला सच मे उसके ऊपर एक मुसीबत आन पड़ी हैं।
हर साल जैसे-तैसे कर के वो पास तो हो जाता था मगर इस साल तो गजब ही हो गया। पूरे कॉलेज में शिर्फ़ एक लड़का फेल आया है और वो रोहन हैं।
उसके पिता उसे देखते ही आसमान से गिरते ओलो के तरह बरसना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ उसकी माँ का कुछ पता नही चलता। वो उन्हें मना कर रहीं हैं कि प्रोत्साहित कर रही है क्योंकि जितना वो उन्हें मना करती हैं। उतना ही उनका गुस्सा बढ़ता चला जाता हैं।
और परिवार के बाकी सब लोग (जैसे बड़े भैया विजय, गौरी (उनकी पत्नी), और रोहन की छोटी बहन रानी) के लिए ये पल बहुत ही दिलचस्प होता हैं। जब रोहन के बाबूजी रोहन को डांटते है। गांव में इससे ज्यादा मनोरंजक भला और क्या हो सकता है।।।
आखिर में थक हार कर संभुनाथ ने कहा... अब तुझे सुधारने का बस एक ही उपाय है। तेरी शादी।।। तभी तू अपने जिमेंदारियों को समझेगा।।... सुरेश बता रहा था एक लड़की के बारे में। आज ही जा कर मैं उससे बात करता हूँ।" और वहाँ से चले गये।
एक तरफ जहां ये सबके लिये खुसी की बात थी। वही दूसरी तरफ रोहन को उसके सपने किसी सैलाब में बेहते दिखाई दे रहे थे।
वो ऐसे किसी भी लड़की से शादी नही कर सकता।
और ये बात वो भी बिलकुल अच्छी तरह जानता है कि अगर वो गांव में रहां तो उसके पिता उसकी शादी कराए बगैर नही मानेंगे। इसलिये उसने कुछ दिनों के लिए घर से दूर रहना उचित समझा।
और अपने दोस्त राकेश (जो मुंबई में रहता है) से बात की। राकेश ने रोहन को अपनी कम्पनी में काम दिलवाने का जिमा लिया और उसे अपने पास बुलाया।
जिसके बाद रोहन बिना किसी को कुछ बताये शहर निकल पड़ा। ।।।.....
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