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खबर यह है कि

...

डॉक्टर ने पिताजी के पेट से इंजेक्शन की सुईं बाहर खींचकर वहां रूई का फाया रखते हुए, पिछले दिनों की तरह विक्रम-बेताल की तर्ज में मां से पूछा, ‘‘ क्या हाल है कुत्ते का?’’

‘‘ ठीक है डॉक्टर साहब. हम उसे खुद देख आए हैं. पागल-वागल के लक्षण तो उसमें नजर आते ही नहीं.’’ मां ने मौसम के हाल की तरह अपनी बात कह डाली.

फिर सब चुप हो गए.

‘‘ पत्रकार को कुत्ते से कटवाया, क्या इस घटना पर एक धांसू खबर नहीं बन सकती?’’ रिमी ने खुद से पूछा.

नहीं. शायद इसलिए नहीं, क्योंकि उसके पिताजी को अपना प्रचार पसंद नहीं. पिताजी बड़े दबंग पत्रकार हैं. रिमी जानती है, कितना रौब है उनका. क्या मजिस्ट्रेट, एस.पी और क्या नेता, डॉक्टर, वकील सभी उन्हें खूब मानते हैं. घर में कितनी ही तो ट्रॉफियां है. मुख्यमंत्री, गर्वनर के साथ खिंचाई पिताजी के फोटो हैं. हो भी क्यों न, पिताजी के कई लेखों, अग्रलेखों और रिपार्टों ने तहलका भी तो मचाया है. उनके पत्रकार दोस्तों का भी मानना है कि जहां खबर नहीं होती है, पिताजी वहां से भी खबर निकाल लाते हैं.

अब चाहे जमाखोरी या काला बाजारी के खिलाफ हो, पद के दुरूपयोग की बात हो या फिर रोमांच-साहस और जिंदादिली की बात हो, पिताजी जिस भी विषय पर कलम उठा लें, वह विषय ही चर्चा का केंद्र हो जाता है. सारा शहर ही उसी विषय पर और उसी मूड से सोचने और बहस करने लगता है. यही तो वजह है कि उतने ही दुश्मन भी हैं. हों भी क्यों न, समाज के बुरे लोग संख्या में भले लोगों से कब कम रहे हैं.

पत्रकार की बेटी होने का एक फ़ायदा तो होता है. भले ही क्यों न वह दसवीं कक्षा में ही पढ़ती हो, उसे टेलीप्रिंटर, कवर स्टोरी, हॉट लाइन, संपादन, क्लू, फीडिंग जैसे शब्दों का अर्थ खूब मालूम हैं.

अब भले ही पिता जी इस छोटे से पहाड़ी शहर में उन्हें छुट्‍टियों में घुमाने के बहाने लाए हों, पर वह और मां खूब अच्छी तरह जानती हैं कि असल में तो वे अपने अखबार की तरफ से कोई महत्त्वपूर्ण सुराग या खबर का मसाला जुटाने आए हैं...और अगर संभव होता तो वे अकेले ही आते, लेकिन शायद पत्रकार को भी कभी-कभी एक जासूस सी चालें चलनी पड़ती है. सो, उन्हें साथ लाकर पिता जी ने एक आड़ ली है.

रिमी जान चुकी है, सिविल अस्पताल के पीछे लाल लोहे के गेट वाली जिस कोठी से पिताजी के पीछे कुत्ता दौड़ाया गया है, उस कोठी का मालिक एक बूढ़ा अंधा आदमी है, जिसे दो ही शौक है. एक शास्त्रीय संगीत सुनना और दूसरा मुर्ग-मुसल्लम खाना, उनकी पसंद की तीसरी सनक को शौक का नाम शायद नहीं दिया जा सकता. हर साल नौकर-चाकर बदलना शौक हर्गिज नहीं कहा जा सकता.

‘‘ एक जागरूक और सक्षम पत्रकार को सब विषयों के बारे में कुछ न कुछ और कुछ विषयों के बारे में सब कुछ जानना चाहिए.’’ पिताजी ने रिमी के स्कूल के वार्षिक उत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में, बोलते हुए एक बार एक बात कही थी. तब मारे गर्व के रिमी का माथा और ऊंचा हो गया था. पर आज उन्हीं पिताजी ने होटल के टेरेस पर टहलते हुए ठीक उसके विपरीत बात कहीं थी, ‘‘ एक पत्रकार को सब विषयों का कुछ-कुछ और कुछ विषयों का सब कुछ नहीं जानना चाहिए या जानने का प्रयास ही नहीं करना चाहिए ’’.

मां कुछ भी नहीं समझी थीं. उन्होंने सिर्फ़ पूछा था, ‘‘ बेयरे को नींबू पानी के लिए कहूं, क्या?’’

थोड़ी देर बाद वे तीनों नीचे, यानी दूसरी मंजिल में आ गए थे. अपने कमरे में पिताजी अपनी किताबों में खो गए थे.

एकाएक उसे लगा कि वह भूखी है, कुछ खाना चाहिए. सो, पिताजी से पूछकर वह होटल से लगे रेस्टोरेंट को चल दी.

नीचे रेस्टोरेंट के दरवाजे से थोड़ा हटकर खड़े एक मोटे रौबदार आदमी ने उस पर नजर पड़ते ही उसे दबी, पर खरखरी आवाज में चेतावनी दी, ‘‘ बेटी अंदर मत जाओ!’’

‘‘ क्यों?’’ उसने चौंककर पूछा.

‘‘ अंदर एक आतंकवादी है. वह खाना खा रहा है. हम इसे घेर रहे हैं. मैं पुलिस इंस्पेक्टर हूं बेटी. तुम अपने कमरे में लौट जाओ.’’ इंस्पेक्टर की आवाज में परेशानी थी.

एक पल को थर्रा गई रिमी. सचमुच का आतंकवादी, ट्रांजिस्टर बम, स्टेनगन और बस रूकवाकर एक-एक यात्री को भून डालने वाले क्रूर आतंकवादी! पर दूसरे पल ही भीतर छिपा हुआ पत्रकार-पिता का अंश जाग उठा. इंस्पेक्टर की तरफ देखते हुए वह मुस्कराकर बोली, ‘‘ अंकल, क्या मैं एक तरफ खड़ी होकर आप लोगों की यह कार्यवाही देख सकती हूं?’’

इंस्पेक्टर हैरान! कहां तो अपने सिपाही कह रहे है कि ‘ आगे से ये जाए, मैं पीछे से जाऊंगा’ या फिर ‘मेरा बच्चा बीमार है, छुट्‍टी दे दो साहब..’ और कहां यह दुस्साहसी लड़की.

उसकी हिम्मत की दाद देकर बोले, ‘‘ बहादुर बेटी, हो सकता है, उसके पास रिवाल्वर-पिस्तौल हो, ऐसे में जरा-संदेह होने पर ही उसकी तरफ से गोली चल सकती है. वैसे वह हमें जिंदा चाहिए, ताकि उसके पूरे गैंग का पता चल सके. एक तो वक्त नहीं अपने पास. समझ में नहीं आता, कैसे काबू करें उसे. पुलिस तो सादे कपड़ों में भी पहचानी जाती है.’’

‘ एक आतंकवादी के साथ चाय की मेज पर’ एक फ्लैश की तरह यह पंक्ति रिमी के मस्तिस्क में कौंधी. वह तुरंत ही इंस्पेक्टर से बोली, ‘‘ मैं आपकी सहायता करूंगी अंकल. देखिए, मैं उसके पास जाकर बैठती हूं और उसे बातों में बहकाए रखती हूं. इस बीच आप मौका देखकर उसे दबोच लीजिएगा. पर हां, मुझे बातचीत का पांच-सात मिनट का मौका ज़रूर दीजिएगा. उसे रिवाल्वर निकालने का मौका मैं नहीं दूंगी. यदि ऐसा अवसर आया तो....

‘‘ तो सिर्फ़ एक काम करना. पहले से ही मिर्चदानी को थोड़ा ढीला करके अपने दाएं हाथ के पास रखना और यदि वह कोई हरकत करने की कोशिश करे, तो उसे उसके चेहरे पर उलट देना. आओ, तुम्हें खिड़की से दिखाता हूं. वह उस कोने वाली मेज पर बैठा है.’’

बाप रे बाप! इतना हट्‍टा-कट्‍टा. अगर रिमी की पीठ पर एक मुक्का मार दे तो....

रेस्टोरेंट आधे से ज़्यादा खाली था. सो उसी मेज पर जाकर बैठने की कोई तुक न थी. फिर भी, उसने कारण ढूंढ ही लिया. बस यह कि वह रोज इसी मेज पर बैठती है-उसकी पसंदीदा मेज है यह. इसी से पहले उठने का आग्रह फिर बैठने का अनुरोध करते हुए बातचीत बढ़ाई जा सकती है. यही सब सोचते हुए उसने बड़ी तेजी से धड़कते दिल को संभाला और रेस्टोरेंट में प्रवेश किया.

तभी रोज की पुरानी धुन बजाते हुए आर्केस्ट्रा ने विलाप शुरू कर दिया.

इंस्पेक्टर का दायां हाथ जेब पर था. उनकी जेब में भरा हुआ रिवाल्वर था... और उसके माथे पर बार-बार यह सोचकर पसीना छलक आ रहा था कि उन्होंने इस लड़की को इस दुर्दांत आतंकवादी के पास भेजकर ठीक किया या गलत.

इंस्पेक्टर ने खिड़की से एक आंख भीतर फेंकी तो देखा- वह लड़की उससे बहस कर रही है. फिर देखा आतंकवादी उठ रहा है, फिर एकाएक दोनों बैठ गए. तब दोनों हंस भी पड़े, फिर चुप हो गए. उसने बेयरे को बुलाया. रिमी से कुछ पूछा और बेयरे को ऑर्डर दिया. अब रिमी कुछ पूछ रही थी. हाथ नचा-नचाकर वह ‘नहीं’ में सिर हिलाकर जवाब दे रहा था. बेयरा लस्सी रख गया. रिमी ने फिर कुछ पूछा. उसने सिर झुकाकर कुछ कहना शुरू किया.

इंस्पेक्टर ने देखा रिमी बड़ी बारीकी से उसका मुआयना कर रही है.

आतंकवादी ने सर उठाया, तो देखा-चार बेयरे उसके सिर पर खड़े हैं, दबोचने की मुद्रा में. वह समझ गया. पर जब तक मौका पाता उससे पहले ही वह बेयरों का रूप धरे सिपाहियों की जकड़ में था.

किला फतह हो चुका था. इंस्पेक्टर की शाबासी को बाएं कंधे पर लादकर वह फौरन पिताजी के पास दौड़ी. उसकी अद्भुत रिपोर्टिंग की खबर सुन पिताजी भौचक्के रह गए. उसे गले से लगाते हुए गदगद स्वर में बोले, ‘‘बाप को हरा दिया आज बेटी ने.’’फिर उसे साथ लेकर तुरंत इंस्पेक्टर से मिलने चल दिए, ताकि आतंकवादी के बारे में ज़रूरी जानकारी प्राप्त हो सके.

तुरंत उन्होंने यह धमाकेदार खबर अपने अखबार तक पहुंचाई. फ़ोन पर बड़े संपादक ने रिमी को ढेर -सी बधाई और शाबासी दी. लौटते हुए पिताजी ने एक राज़ की बात बताई, कहा कि उन्हें खबर मिली कि लाल गेट वाली कोठी का बूढ़ा मालिक नरभक्षी है. और इसके सबूत जुटाने में उन्हें शायद रिमी की सहायता की ज़रूरत पड़ेगी.

रिमी रोमांचित थी. अभी से कल के अखबार का इंतजार शुरू हो गया था.