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निर्णय

लघुकथा

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निर्णय - अमृता सिन्हा , मुंबई

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सिंगापुर से भाई का कॉल आने के बाद प्रीता भी चिंतित थी कि भाई ने माँ का हाल- चाल पूछने को कॉल मुझे क्यों किया, माँ को क्योंनहीं ? भावातिरेक में आकर उसने भाई से पूछ ही लिया कि - भैया तुमने माँ को कॉल क्यों नहीं किया ? अरे प्रीता , सुबह से तो कई बारकॉल कर चुका हूँ पर उन्होंने रीसीव ही नहीं किया , विनय ने कहा

माँ बहुत लापरवाह होती जा रही हैं , उन्हें ख़्याल ही नहीं रहता कि उनके फ़ोन नहीं उठाने से हमलोगों को कितनी चिंता हो जाती है , भाईकी आवाज़ में तल्ख़ी थी

ठीक है भाई, मैं कोशिश कर के देखती हूँ, माँ से बात हो जाए तो तुम्हें भी बताती हूँ, कहते हुए प्रीता ने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया थोड़ीदेर चहलक़दमी करने के बाद प्रीता माँ को कॉल लगाने की कोशिश करने लगी उफ़्फ़् ! ये नेटवर्क भी ! प्रीता ने झल्ला कर फ़ोन कोदेखा और दुबारा कोशिश करने लगी, ख़ैर , रिंग तो जा रही है , पर माँ भी ! मजाल जो समय से फ़ोन उठा लें, थोड़े इंतज़ार के बादप्रीता ने मोबाइल बंद कर वहीं सेंटर टेबल पर रख दिया

तभी कॉल- बेल बजा, प्रीता झट से दरवाज़े की ओर लपकी , अरे ! आज इतनी जल्दी ! अमित को समाने पाकर प्रीता चिहुँकी

हाँ , बात ही कुछ ऐसी है कि जी चाहा कि आज जल्दी घर आऊँ , बताता हूँ पहले तुम झट से एक कप बढ़िया चाय बनाओ , मैं तबतकफ्रेश हो कर आता हूँ , कह कर अमित वाशरूम की ओर मुड़ गया और प्रीता किचन की ओर चल दी प्रीता जब तक चाय तैयार करलाई,अमित फ़्रेश हो कर सोफ़े पर विराज चुका था प्रीता की आँखें कौतूहलवश अमित के चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही थीं।

कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है, चुहल करते हुए प्रीता ने अमित को छेड़ते हुए कहा और चाय की ट्रे सेंटर टेबल पर रख दिया अमित भीतो इंतज़ार में ही बैठा था , होंठों पर स्मित मुस्कान लिये शरारत में झट से प्रीता का हाथ पकड़ , प्यार से हथेली सहलाते हुए और धीरे सेअपनी ओर खींचते हुए बोला - ख़ुश हो जाओ मेरी जान ! मुझे प्रमोशन मिला है और प्रीता को अपने आग़ोश में ले लिया

ओह ! सच्ची ! प्रीता ख़ुशी से उछली और फिर निढाल हो कर अमित की बाँहों में समा गई पिया का सान्निध्य और प्रमोशन की ख़ुशी,,,,प्रीता सराबोर थी , देह और आत्मा दोनों विभोर ! माथे पर एक चुंबन लेते हुए अमित उसे निहारता रहा ,प्रीता अमित के आलिंगन मेंखोयी रही

फिर तंद्रा टूटी ,,,,दो देह अलग हुए , चाय पियें ठंडी हो रही है हाँ , ठीक है पर शाम को तैयार रहना , बाहर डिनर के लिये चलेंगे , अपनीशर्ट की बाँह को मोड़ते हुए अमित ने कहा मैंने ताज में एक टेबल बुक कर दी है

हूँ... शरारत से मुस्कुराते हुए प्रीता ने कनखियों से अमित की ओर देखा

चाय ख़त्म कर अमित अॉफिस चले गए और बॉलकनी में खड़ी प्रीता उसे दूर तक जाते देखती रही , फिर हल्के-हल्के गुनगुनाती हुईकिचन की ओर लपकी अरे रे रे बची खीर , थोड़ी देर और होती तो जल ही जाती , घंटे भर हो गए मैं तो भूल ही गई थी , अच्छा हुआकि गैस सिम पर था वरना ,,,, सोचती हुई प्रीता खीर में चीनी डालने लगी अमित के प्रमोशन की बात सबसे पहले मोना को बताना हैसोचती प्रीता ने गैस ऑफ़ किया और बॉलकनी की ओर चली गई

अपनी सहेली मोना को रिंग करने ही वाली थी कि माँ का कॉल आने लगा , ओह ! आखिर माँ ने कॉल किया सोचते हुए प्रीता ने कॉलरीसीव किया - माँ प्रणाम ! कैसी हैं ? अच्छी हूँ , तू बता क्या हाल-चाल है ? अमित कैसा है ?

सब अच्छा है पर, आप तो कॉल रिसीव करती ही नहीं तो आपको क्या फ़ोन करूँ और आपको तो आजकल सुनाई भी कम देने लगा है, भाई ऐसा कह रहा था आप डॉक्टर से कंसल्ट क्यों नहीं कर लेतीं ? प्रीता एक साँस में सब कह गई ।और हाँ माँ , अमित का प्रमोशनहो गया है , आपको बताने ही वाली थी , प्रीता ने अपनी बात पूरी की

माँ ने गहरी साँस लेते हुए कहा - बहुत बधाई ! आशीर्वाद मेरा फिर कुछ रूक कर बोलीं बेटा प्रीता ! मैंने भी कई बार चाहा कि तुम दोनोंभाई बहनों को समय से कॉल करूँ पर तुम्हारे समय का ध्यान रखती हूँ मैं विनय विदेश में है फ़ोन सोचसमझ कर ही करना पड़ता हैऔर तुम्हें जब करती हूँ और तुम फ़ोन रिसीव नहीं करती हो तो सोचती हूँ कि शायद किसी काम में व्यस्त होगी , पर तुमलोग यदि कॉलकरो तो माँ को तो हमेशा हाज़िर रहना चाहिए क्योंकि माँ के पास क्या काम है? माँ को सुनाई कम पड़ता है , माँ को दिखाई कम पड़ता है बेटा प्रीता ! भूल गए वो दिन जब तुम दोनों मेरी दो आँखें हुआ करते थे आज ज़रा सी देर से फ़ोन उठाने पर तुमलोगों में इतनीझल्लाहट ? माँ जैसे फट पड़ी थीं , धाराप्रवाह बोलती गईँ ,,,,,

रूकीं तो उनका गला भर आया ,,,, प्रीता को तो काटो तो ख़ून नहीं माँ की इस प्रतिक्रिया की उसे कदापि आभास भी था माँ , माफ़करियेगा मेरा ये मतलब नहीं था , प्रीता ने कहा तो पर उधर से कोई जबाब नहीँ आया , शायद माँ ने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया था प्रीताग्लानि में मन मसोस कर रह गई , उसका सारा उत्साह , सारी ख़ुशी की लौ मद्धिम हो चली थी , स्मृतियों के पन्ने खुलने लगे , माँ भी जानेक्या सोच रही होंगीं उसी की तरह अपनी पुरानी यादों में खोयी होंगी


प्रीता उठी और अमित को फ़ोन लगाया - अमित , डिनर कैंसिल कर दो , आज रात की फ़्लाइट से माँ के पास चलेंगे , कह कर मोबाइलबंद कर दिया और मुड़ गई कमरे की ओर