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कुछ धुनें कलम की

कुछ धुनें कलम की
मेरे 5 गीत

अरिन कुमार शुक्ला



सरिणी
दो शब्द
तेरे प्यार ने
हे भारत के वीर जगो
राष्ट्र धुन
राम धुन
हिन्दी धुन



दो शब्द
"कुछ धुने कलम की" मेरा पहला काव्य संग्रह है। यद्यपि पहले मेरी 8 पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है, परंतु काव्य के क्षेत्र मे यह मेरा पहला कदम है। काव्य मेरी लेखनी का हिस्सा नहीं रहा है परंतु जैसा की एक छंद मे व्यक्त होता है –

“ आत्मा के सौन्दर्य का शब्द रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य।“

तो इस ही सौभाग्य को जीने का प्रयास है यह पुस्तक और ये पाँच गीत।


तेरे प्यार ने
यूं तो आदमी हम भी काम के थे,
पर तेरे प्यार ने निकम्मा बना दिया।
यूँ तो काफिर थे हम, मुश्रिफ् थे,
पर तेरे प्यार ने जुम्मा बना दिया।
तेरी आँखे है या है झीले,
इनकी गहराईयां है मैंने नापी,
तय की है मैंने मिले,
पर तेरे आँखों के समंदर ने मछली बना दिया।
तेरी जुल्फे है या गगन है,
मेरी आन्खे इनमें मगन है,
तेरी जुल्फों की उन्चाई ने
मुझे परिंदा बना दिया।
तेरी साँसे है या बवन्डर्,
झूमता हु मैं इनके अन्दर,
तेरी सांस की गहराई ने
दीवाना बना दिया।
वो दिन भी तो आएगा,
जब सावन की घटाए छाएंगी,
तेरी आने की आहट को,
ये रुह भाम्प जाएगी।
तू पानी है या है समंदर,
तू हवा है या है बवन्डर्,
तेरी लाख चलाकी ने
मुझे नासमझ बना दिया।
तू पहेली है या समां है,
मेरा दिल बस तुझमें रमा है,
तेरी प्यार की अंगड़ाई ने
मुझे बेखबर बना दिया।
ना जाने ये कैसे शुरू हुआ,
ना जाने अंजाम क्या होगा,
लेकिन क़यामत के दिन मेरे सर
बेईमानी का इल्त्ज़म ना होगा।
तू ज़ख्म् है या दवा है,
तू जश्न है या खुदा है,
तेरे प्यार की खुदाई ने
तुझे मेरा खुदा बना दिया।
यूं तो आदमी हम भी काम के थे,
पर तेरे प्यार ने निकम्मा बना दिया।


हे भारत के वीर जगो

हे भारत के वीर जगो,
मै तुम्हें जगाने आया हूँ,
सृष्टि की रक्षा का तुमको
वचन बताने आया हूँ।

लाख चौसरे सजी हुई है,
लाख शकुनि खेल रहे,
फिर पांडव द्रौपदी का
चीरहरन है झेल रहे।

लाख रावण लाख लंका
को सोने से पाट रहे हैं,
सिंहासन के अधिकारी
फिर वनवास काट रहे हैं।

लाख दुशाशन खड़े हुए है
मर्यादा का चिरहरण कर लेने को।
लाख कुम्भकरण खड़े हुए है
सृष्टि को मुँह में भर लेने को।

लाख बाबर है भारत को
फिर लाशों से पाट रहे,
लाख जिन्नाह फिर से
देश को है बाट रहे।

अब समय नहीं है
अंगद को फिर लंका पठाने का,
अब वक़्त है
बलिदान को फिर गले लगाने का।

विजय द्वार पर स्वराज खड़ा है
राजतिलक कर देने को,
शौर्य द्वार पर खड़ी है मृत्यु
आलिंगन कर लेने को।

अब जो न जागे तो
पुरखो की थाथी को दाग लगा जाओगे।
अहिन्सक होना सही मगर
जग मे नपुंसक कहलाओगे।








राष्ट्र धुन
राष्ट्र प्रेम की बरखा बरसे , भारत भाग्य है जागा
पंजाब, सिन्ध, गुजरात, मराठा, द्राविड़ उत्कल बंगा
उज्ज्वल सागर, विन्ध्य, हिमाचल, नीला यमुना गंगा
तेरे नित गुण गाएँ, तुझसे जीवन पाएँ
हर तन पाए आशा।
सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम का तारा ,
जए हो! जए हो! जय हो!

सब के दिल में प्रीत बरसाए, तेरी मीठी वाणी
हर प्रांत के रहने वाले, हर पंथ के प्राणी
सब भेद और फ़र्क मिटा के, सब गोद में तेरी आके,
फेरें प्रेम की माला।
सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम का तारा
जए हो! जए हो! जय हो!

नित दिन प्रतिपल, तेरे ही गुण गाएँ,
अनुराग भरी भरपूर हवाएँ, जीवन में रस लाएँ,
सब मिल कर हिन्द पुकारे,गाएं जय हिन्द का नारा।
प्यारा देश हमारा।
सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम का तारा,
जए हो! जए हो! जए हो! जए जए जए जए हो!॥

राम धुन

परिभाषा? राम की?
गूढ है सरल नहीं है,
अमृत है गरल नहीं है।

राम दवा है रोग नहीं
राम त्याग है भोग नहीं
राम दया है क्रोध नहीं
राम सत्य है सोध नहीं है।

राम को पान मुश्किल है,
लेकिन इतना भी कठिन नहीं है,
आखिर माँ शबरी को गले लगाना
इतना भी तो कठिन नहीं है।

राम सांस सांस में समाए हुए है
भारत की आत्मा में छाए हुए है
राम प्रतिमा नहीं है प्रतिमान है
नभ में चमकते हुए दिनमान है
राम आस्था है, कोई नारा नहीं है
राम गंगाजल है अंगारा नहीं है

राम साधन है, फल भी है,
कण हर एक, हर पल भी है।

हिंदी धुन

एक डोर में सबको जो है बांधती
वह हिंदी है
हर भाषा को सगी बहन जो मानती
वह हिंदी है।
भरी-पूरी हों सभी बोलियां
यही कामना हिंदी है,
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी है,
तत्सम, तद्भव, देशी, विदेशी
सब रंगों को अपनाती
जैसे आप बोलना चाहें
वही मधुर, वह मन भाती
नए अर्थ के रूप धारती
हर प्रदेश की माटी पर,
‘खाली-पीली बोम मारती’
मुंबई की चौपाटी पर,
उच्च वर्ग की प्रिय अंग्रेजी
हिंदी जन की बोली है,
वर्ग भेद को ख़त्म करेगी
हिंदी वह गोली है,
सागर में मिलती धाराएं
हिंदी सबकी संगम है,
शब्द, नाद, लिपि से भी आगे
एक भरोसा अनुपम है,
गंगा-कावेरी की धारा
साथ मिलाती हिंदी है.
पूरब-पश्चिम,कमल-पंखुड़ी
सेतु बनाती हिंदी है।