Tere Mere Darmiyan yah rishta anjaana - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग -16) - सार्थक का संदेश











अस्मिता का घर --

घनश्याम जी बैठे हुक्का गुडगूड़ा रहें थे तभी उनके घर का दरवाजा खुला और 5 -6 बॉडीगार्डस के साथ रामू अंदर आया।
घनश्याम जी उनको देख कर ही खड़े हो गये और जल्दी से सर झुका कर उसको सलाम किया।

घनश्याम जी -" मालिक आप ईहां कौनौ काम था का हमको बताते हम ही छुपते छुपाते आपके पास आ जाते।"
रामू -" काका देखीये हमारे पास ज्यादा समय नही है और यहां हम ठकुराइन साहिबा और सार्थक बाबा का संदेश लायें हैं।
घनश्याम जी -" कुछ हुआ है का।"
रामू गम्भीर होकर -" साहिबा आज भान प्रताप के छोटे बेटे के साथ थीं और आप पहले ही जानते है की महेश बाबू किसी भी हाल मे नही चाहते की साहिबा पर उन लोगो का साया भी पडे।"
घनश्याम जी -" यह लड़की भी ना ,,,,,,,,, हम ईको कितनी बार मना किये है ऊ हवेली वालन से दूर रहो लेकिन ई शेर बनने चलती है हमेशा।"
रामू हँसते हुये -" कोई बात नही लेकिन हाँ फिलहाल जाईये अस्मिता को अपने उस रिस्तेदार के पास भेज दिजीये जो दुसरे गाँव मे रहती है क्योकि भान प्रताप पहले ही गुस्सा है साहिबा के पढ़ने के वजह से और साहिबा को कुछ होना नही चाहिये नही तो सार्थक बाबा ही आपको सूली पर चढा देंगे ।"

इतना बोल वो मुह बाँध कर सबके साथ निकल जाता है।
अस्मिता और सारंगी जब दोनों वापस आती है तो बाहर उन लोगो को देखती हैं लेकिन ज्यादा ध्यान न देकर वापस चली जाती है।

अंदर जाते ही घनश्याम जी -" कहाँ थी अस्मिता।"
अस्मिता -" हम तो जंगल के पास वाले तालाब से पानी लेने गये थे।"
फिर अस्मिता सभी बात को घनश्याम जी से बता देती है सिर्फ यह छोडकर की आदित्य के दिल मे कुछ तो है उसके लिये।
घनश्याम जी अस्मिता के सर पर हाथ रख कर -" अस्मिता बिटिया देखो हम कितनी बार बोले है उन हवेली वालों से दूर रहो वो हमारे लायक नही हैं ,,, या हम लोग ही उनके लायक नही है इसलिये उनके पास भी न भटकना और तुम आज ही जा रही हो अपनी मासी के यहां ,,,, हम नही चाहत है की ऊ भान प्रताप की नजर में तुम आओ।"
अस्मिता मुह बना कर -" तो डरते हैं का हम उनसे।"
घनश्याम जी उसे आंख दिखा कर बोलते है - " हमने बोल दिया न जाना है तो जाना है अब जाओ सामान बाध लो अपना।"
अस्मिता और उसके बाबा की सारी बाते बाहर सारंगी सुन रही थी।

सारंगी दुखी हो जाती है यह सुन की अस्मिता जा रही है फिर वो उदास होकर सीधे तालाब के किनारे आ जाती है वही रौनक भी आया था शायद वह अपना जैकेट भुल गया था वहीं।

सारंगी उदास होकर वहीं पत्थर मार रही थी पानी मे की पीछे से रौनक आकर -" अरे वो जंगली नारी तुम अभी तक जंगल मे ही हो।"
सारंगी कोई जवाब नही देती है। सारंगी कभी शान्त बैठने वालो मे से तो थी नही वो भी तब जब उसे कोई जंगली जैसे शब्दो से सम्बोधित करे।
रौनक उसे कुछ न बोलता देख अपने एक ऊँगली से सारंगी के कंधे पर दबाते हुये -" आज लंगुर इतना शान्त क्यू है।"
सारंगी को गुस्सा आ रहा था वो भी भड़कते हुये अपना चप्पल निकाल कर -" गधे भाग जाओ इहाँ से नही तो मार के तुम्हरा थोभडा बिगाड़ देंगे।"
उसके ऐसा बोलते ही रौनक उछल कर कुछ दूर भाग जाता है फिर अपने सीने पर हाथ रख सांस सम्हालने की ऐक्टिंग करते हुये -" बाप रे इतना भडक क्यू रही हो मै तो यही जानना चाह रहा था की जिन्दा उन्दा भी हो की नही ,,, वैसे आज तुम्हरा मुह क्यू रस्गूल्ले की तरह हुआ है।
सारंगी उदास होते हुये -" अस्मिता जा रही है ।"
रौनक -" कहाँ ।"
सारंगी -" अपने मासी के घर ।"
रौनक -"कहाँ है उसके मासी का घर।"
सारंगी -" पता नही लेकिन दूर है काफी।"
रौनक -" फिर किसके साथ जायेगी।"
सारंगी -" वो हमेशा अकेले जाती है।"
रौनक मन मे कुछ खुरपात सोचते हुये -" चलो मै चला मेरी जैकेट भी मिल गयी और तुम जंगली नारी जंगल मे बैठ मनाओ अपनी शोक सभा।"
रौनक को हसता देख सारंगी और चिढ जाती है और मुँह फेर वापस पत्थर मारने लगती है तालाब मे।
इधर रौनक कुछ कदम चलता है फिर उसके दिमाग मे एक शैतानी विचार आता है। वो मुस्कुराते हुये वापस आता है और बैठी हुई सारंगी के पीछे झुककर सिर को कस के पकड उसके गाल पर तेज से चुमकर भाग जाता है।
सारंगी को जब तक समझ आता है वो गुस्से से अपने गाल को रगड़ते हुये अपना चप्पल निकाल रौनक के ऊपर फेक देती है।
सारंगी -" गधा , उल्लु का पठ्ठा , बत्तमीज , बन्दर , लंगुर , वनमानुष।"
लेकिन रौनक भी कच्चे खेल का खिलाड़ी था नही जो दुबारा चप्पल से मार खा जाये वो हसते हुये दौड़ते हुये -" अलविदा जंगली नारी ,,,,, जहन्नुम मे मिलेंगे साथ साथ।"

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सार्थक की हवेली -----

रामू सार्थक के कमरे मे आता है।
सार्थक -" क्यू उस आदित्य की क्या खबर है ।"
रामू -" बाबा हम तो उसपर गोली चलाये थे लेकिन साहिबा ने बचा लिया उसे ।"
सार्थक गुस्से से अपनी बन्दूक निकलते हुये -" अब तो मन कर रहा है तुम्ही को उड़ा दे।"
अभी सार्थक कुछ करता उसके पहले ही एक 28 -30 साल का आदमी आता है और कहता है -" हहा ,,, यह क्या कर रहे हो सार्थक इसमे रामु की क्या गलती है यह तो हमारा वफादार है।" वो आदमी रामू के कंधे पर हाथ रखते हुये बोलता है ।
फिर रामू से बोलता है -" रामू तुमने हवेली का संदेश तो घनश्याम जी तक पहुँचा दिया होगा ही तो अब जाओ।"
रामू वहाँ से चला जाता है।
सार्थक -" क्या लखन भईया ,,,, न आप लोग कुछ करते हैं न हमको कुछ करने देते है ,,, जी तो करता है भान प्रताप के पूरी हवेली को जला दे।"
इतना बोल सार्थक गुस्से से अपने कमरे से निकल हवेली के बाहर अपनी जीप लिये निकल जाता है।
लखन मन मे -" किसने बोला की हम कुछ नही करेंगे हम अम्मा और महेश भईया की तरह नही है जो उनको माफ कर दें।"

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आदित्य की हवेली --

आदित्य अपने हवेली पर आता है तो देखता है सुबह की जैसे माहौल गर्म था वो जस्न मे बदल गया था। आदित्य को समझ नही आया की आखिर क्यो पूरी हवेली सजी हुई है।
आदित्य अंदर आता है तो भान प्रताप गुस्से से मुह फेर लेते है। आदित्य राजेस्वरी जी के पास आकर -- " अम्मा यह सब क्यू इतना सजावट हो रही है।"
वो भी माँ थी आखिर कब तक आदित्य से गुस्सा रहतीं वो बोलतीं है -" वो तुम्हरे काका काकी आ रहे हैं ना ।"
आदित्य को अपने कानों पर विश्वास नही होता है फिर बोलता है मतलब पन्कुडी भी आ रही होगी ।"
उसकी खुशी देख ममता फूल का थाल लाते हुये -" हमम देवर जी आपकी प्यारी बहन भी आ रही है।"
राजेस्वरी जी को ममता का बिच मे बोलना थोड़ा भी न सुहाता है वो बोलती है -" जा तू अपना काम कर ज्यादा पटर पटर नही ।"
ममता मुँह गिरा वहाँ से चली जाती है लेकिन आदित्य जैसे अपने कमरे में जाता है उसके पीछे पीछे ममता भी चली जाती है।
आदित्य अपने कमरे मे आकर अलमारी से अस्मिता की पायल निकाल देखने लगता है जिसे ममता देख रही थी।
ममता पीछे से आकर -" देवर जी क्या कर रहें है।"
ममता को एकाएक पीछे से आना देखकर आदित्य अस्मिता की पायल को अपने मुठ्ठि मे छुपा लेता है और पीछे मूड़कर -" क क कुछ तो नही भाभी।"
ममता सोचते हुये -" ओह्ह्ह हमें लगा आप किसी की पायल हाथ मे लिये देख रहे थे।"
आदित्य -" क कहाँ कौनसी पायल।"
ममता उसका हाथ पकडते हुये मुठ्ठि से पायल निकाल -" यह पायल ,,,, अब बतायिये क्या चल रहा है आपके और उस लड़की,,,,,, क्या नाम है ,,,,,, अस्मिता ,,,,, हाँ अस्मिता के बिच मे।"
आदित्य अपना झूठ छुपाते हुये -" कौन अस्मिता हम किसी अस्मिता को नही जानते ।"
ममता -" अच्छा देवर जी अब कितना झूठ बोलेंगे ,,,, बता भी दिजीये ना क्योकि हमने देखा सुबह कैसे आप अस्मिता के लिये सबसे लड़ गये थे और खुफिया सूत्रो से यह बात सच साबित हुई है की हमारे देवर जी को प्यार हो गया है।"
आदित्य थोडा झुझलाते हुये -" और आपका खुफिया सूत्र वो रौनक का बच्चा हैं ना।"
ममता हँसते हुये आदित्य से इन्ही सब के बारे मे बात करने लगती है।
ममता -" वैसे देखने में तो बहुत सुंदर है आपकी अस्मिता लेकिन आपको क्या अच्छा लगता है उनमे सबसे ज्यादा।"

आदित्य -

उनकी नशीली आँखे जो मदिरा के नशे को मात दे दे

उनकी कजरारी आँखे जो दिन मे ही रात कर दे

उनकी दिलकश निगाहें जो दिल का हाल बेहाल कर दे

उनकी हर एक मासूम अदायें जो धमाल कर दे।


क्रमश: