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डॉ श्याम बिहारी श्रीवास्तव

श्याम बिहारी श्रीवास्तव

साहित्य और साहित्यकार मानव समाज को परमपिता परमात्मा की बड़ी देन है। धर्म, अर्थ, काम मोक्ष इन चारों की सिद्धियों में सदसाहित्य का अविस्मरणीय योगदान है। हमारा बुंदेलखंड भी त्रेता के राम से लेकर अद्यपर्यंत महापुरुषों के यश गान में अग्रणी रहा है। आज भी बुंदेलखंड के अनेक दक्ष, प्रवीण, प्रतिभा संपन्न साहित्यकार अपनी कलम से समाज को सही दिशा दिखाने में अपनी महती भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। उन्हीं में से किसी किसी का चिंतन इतना व्यापक होता है कि वह सैकड़ों व्यक्तियों की चेतना को प्रभावित कर देता है। अविश्रांत साहित्य साधना रत  डॉ. श्याम बिहारी श्रीवास्तव का अभिनंदन ग्रंथ उक्त विचारों का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

 पिछले कई दशकों से हिंदी और अपनी आंचलिक भाषा बुंदेली की सेवा का मांगलिक अनुष्ठान कर रहे डॉक्टर श्याम बिहारी श्रीवास्तव जी प्रतिष्ठित चर्चित और मूर्धन्य साहित्यकार हैं। उनका काव्य सृजन अपने समय के यथार्थ से जुड़ा हुआ है और उन जीवन मूल्यों को व्यक्त करता है जो मनुष्य के लिए आज के इस मनुष्य विरोधी समय में हमारे सामने संकटों की व्याख्या करता है। श्याम बिहारी जी का अधिकतर काव्य गीतात्मक है और जो छन्द  के रूप में नहीं है, वहां भी शिल्प में गीत  की लय प्रमुख है।

 जैसा कि उनके ‘धार लौटेगी एक दिन’ काव्य संग्रह के फ्लैप  पर हिंदी के प्रख्यात कवि डॉक्टर कुँवर बेचैन  ने कहा है “महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने गीत के छन्द को तोड़ा पर कविता से लय विलुप्त नहीं हुई। कविता स्वच्छंद हुई जिससे व्यवस्था के प्रति विद्रोह तो पंनपा  पर कविता का स्वर अभद्र नहीं हुआ। कविता की देहयष्टि समाज को भाती रही। एक बड़े पाठक वर्ग ने कविता को गले लगाया। कविता ने समय को पढ़ा, समय की रपट लिखी और यथार्थ बोध से समाज को अवगत कराया।

कहने का आशय यह है कि कविता समाज का अंतर्नाद  है जो उसे ब्रह्मनाद  को सुनने समझने के लिए प्रेरित करता है।

 प्रतिष्ठित और ज्ञान संपन्न डॉक्टर श्याम बिहारी जी ने अपने साहित्य सृजन से सभ्यता, संस्कृति और भाषा को जो समृद्धि प्रदान की है वह स्तुत्य है। उन्होंने अपनी सकारात्मक सोच से साहित्य के माध्यम से समाज को जो रचनात्मक दृष्टिकोण दिया है वह अभूतपूर्व है। उनकी रचनाओं में समाजोत्थान से लेकर राष्टोत्थान की चिंतनाएं स्पष्ट होती हैं। मानवता का संरक्षण, प्रकृति प्रेम, पर्यावरण की शुद्धता, सामाजिक समत्व , राजनीतिक प्रदूषण की उपेक्षा, धार्मिक सहिष्णुता, कर्तव्यों के प्रति निष्ठा, संस्कृति और सामाजिक सद्भाव उनके साहित्य के सुंदर आयाम हैं ।

किसी भी व्यक्ति के मूल व्यक्तित्व की यथार्थ जानकारी किसी अन्य व्यक्ति को होना संभव नहीं है पर डॉक्टर श्याम बिहारी की कहन में कहीं-कहीं रूपकों की छटा बिम्ब के रंगों को निखार देती है, कहने  का आशय यह है कि डॉक्टर श्याम बिहारी जी अपने शिल्प लाघव से किसी भी गीत या प्रसंग को प्राण वान बना देते हैं।

 अभी 4 जुलाई 2021 को प्रसिद्ध कहानीकार श्री राज नारायण बोहरे  द्वारा ऑनलाइन परिचर्चा आयोजित की गई थी, विषय था ‘जनकवि स्वर्गीय सीता किशोर  खरे’ और उसके मुख्य वक्ता थे ‘डॉक्टर श्याम बिहारी श्रीवास्तव!’ इस कार्यक्रम में डॉक्टर सीता किशोर जी के विषय में बोलते हुए उन्होंने एक बड़ा ही सुंदर और रोचक  प्रसंग सुनाया, उन्होंने बताया कि वह सीता किशोर जी के साथ अनेकों बार उनके गांव ‘छोटा आलमपुर’ गए और लगभग हर मौसम में गए। उनके गांव जाने के लिए थरेट से छोटा आलमपुर तक पैदल जाना पड़ता था। कई बार तो भारी बरसात में भी उनके साथ गांव गए और क्योंकि थरेट से गांव तक का पूरा रास्ता पानी से भरा रहता था पर उन्हें यानि सीता किशोर जी को उस रास्ते का इतना ज्ञान था या यूं कहें कि वह उस रास्ते से इतना परिचित थे कि  कहते “श्याम बिहारी तुम हमारे पीछे पीछे आना, और   हमारे पावों पर पांव रखते चले आना!” उन्हें पता होता था कि रास्ते में कहां गड्ढा है, कहां नाली है, कहां गहरा है, कहां उठला है! रास्ता न दिखने पर भी उन्हें रास्ते की एक-एक जगह की जानकारी थी और उस भरी बरसात में भी वह  आगे-आगे और हम उनके पीछे पीछे उनके कदमों पर कदम रख कर चले जाते , और सुरक्षित गांव पहुंच जाते।

 डॉ. श्याम बिहारी जी जब यह प्रसंग सुना रहे थे तो उन्होंने उसे अपनी कथात्मक शैली और विशेषण के प्रयोग से इतना जीवंत कर दिया था कि हम उसे सुनते सुनते उनके गीत  संग्रह ’ विया वानों में’ प्रकाशित उनका गीत ‘ घाव है ये इस सदी के ‘  के भाव में डूब गए। और याद आ गया हमें उनका वह गीत-

 तुम अकेले नाव ऊपर चढ़ते अचानक और गिर जाते !

हम इसी से साथ आए हैं!

 देखने में ऊपरी जल शांत है किंतु भीतर हलचलें ही हलचलें हैं !

थाह लेना कठिन होता लगाते बस अटकलें हैं !

तुम ही तुम अभी अनजान थे पग बहक  जाते

हम इसी से साथ आए हैं!

 हमें डॉ श्याम बिहारी जी के दो काव्य संग्रह पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ‘ धार  लौटेगी एक  दिन’ और ‘बियाबान में’ कोमलकांत पदावली और जनसाधारण की समस्याओं पर आधारित, मनमोहक रचनाओं के कारण वह पाठक को प्रभावित करती है और यही उनके जनप्रिय होने का कारण भी है ।

धार लौटेगी एक दिन ‘ संग्रह में प्रकाशित कविताएं आज के समय का यथार्थ प्रस्तुत करती हैं। उनमें कवि के अपने निजी अनुभव भी हैं और समाज की व्यापक चेतना भी है। इन कविताओं का शिल्प छंद कविताओं का ना होते हुए भी गीतात्मक है, उसमें लय हैं। उनकी भाषा लगभग वही है जो पूरे काव्य में चली है।

 धार लौटेगी एक दिन’आशा और उम्मीद से भरी हुई कविता है, लेखक चाहता है कि नदी के होने की सारी स्थितियां ही नष्ट ना कर दी जाएं। मनुष्य के जीवन में भी कभी-कभी खालीपन आता है और उस समय उसे अपने आत्मविश्वास को बनाए रखना होता है। यह सोच कर कि यह परिस्थितियां स्थाई नहीं है, समय बदलेगा, सुखद वर्षा होगी और फिर इस सूखी नदी में धार लौटेगी एक दिन!

 लेखक जब अपने को हताश, निराश महसूस करता है या किसी गहन चिंता में डूबा होता है तो वह एकान्त तलाश करता है और कहीं निर्जन में किसी पहाड़ पर या किसी नदी के किनारे जाकर चिंतन करता है और प्रकृति के इन्हीं विभिन्न रूपों में अपने को तलाशता है।

 उन्ही में  अपनी समस्याओं का हल खोजता है ।

संक्षेप में  कहा जाय तो श्याम बिहारी श्रीवास्तव अपने परिवेश के प्रति सजग हैं, काव्य कला में लक्ष्य हैं और जनसामान्य में याद रखने योग्य कविताएं रचते हैं।