Dharambir Bharti's Kanupriya books and stories free download online pdf in Hindi

धर्मबीर भारती कि कनुप्रिया

धर्मबीर भारती की काल जयी कृति
कनुप्रिया-----

कनुप्रिया यानी कृष्ण की प्रिया यह रचना नारी मन की संवेदनशीलता की परम शक्ति राधा की अनुभूतियों की गाथा है साथ ही साथ नारी अन्तर्मन की गहराईयों एव परतों को खोलती नारी मन संवेदनाओं की नैसर्गिकता का सौंदर्य वर्णन है ।। सन 1959 में प्रकाशित कनुप्रिया के अब तक 10 से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके है
कनुप्रिया को एक खंड काव्य कहना उचित होगा कनुप्रिया पर किसी वर्ग काव्य को प्रमाणित परिभाषित नही किया जा सकता है ।।

1-नारी की संवेदना---

राधाकृष्ण की प्रेम गाथा शाश्वत सत्य की निरंतरता प्रबाह है इसका ना तो कोई आदि है ना ही कोई अंत इस विषय पर जाने कितने ही ग्रंथ लिखे गए है इन सभी मे कौन सर्वोत्तम या उत्कृष्ट है कहना मुश्किल है।प्रत्येक रचना उसके रचयिता की भवनाओं का दर्पण होती है।धर्मबीर भारती जी की कनुप्रिया उनकी कोमलता भावनाओं का प्रासंगिक परिणाम है जिसमे राधा सिर्फ एक समपर्ण नारी ही नही बल्कि नारी के अनेक स्वरूपों का समन्वय साम्राज्य है कनुप्रिया में राधा की भावनाओं का वर्णन हैं जो नारी मन की मार्मिकता का सरभौमिक प्रतिनिधित्व करता है राधा नारी शक्ति की ईश्वरीय अवधारणा का प्रतीक प्रतिबिंब एव प्रत्यक्ष है जिसे मानवीय चेतना और अपनी मर्यादा का भली भांति ज्ञान है।राधा को मालूम है कि श्री कृष्ण साक्षात ईश्वर है और वह एक आंशिक या पार्थिक शरीर कृष्ण अपने ईश्वरीय कर्तव्य बोध एव दायित्व पूर्ती के लिये अवतरित हुये है जिसे अपना काम समाप्त होते ही विष्णु लोक जाना होगा जहां तक राधा की सोच पहुंच नही है अतः एक प्रश्न का उत्तर खोजती राधा की क्या नारी और नारायण के मध्य का अंतर खाई या दीवार समाप्त हो सकती है।।
2-नारी एव नारायण --

ईश्वर परम शक्ति सत्ता के संपर्क में नारी अपने मानवीय अविनि से मुक्त हो परम शक्ति सत्ता ईश्वर के बराबर हो सकती है उसी प्रकार परम सत्त्ता ईश्वर भी नारी के सम्पर्क से मानवीय भावनाओं संवेदनाओं भावनाओं सौंदर्य कोमलता का साक्षात्कार करता है ईश्वर स्वय मानव स्वरूप में धरती पर आते है तो उन्हें मानवीय शरीर के सुख दुख का मोल चुकाना होता है मानवीय संघर्षो की यातना पीड़ा का चुकाना होता है और बिरह पीड़ा सहन करते हुये सफलता असफलता की वेदना की अनुभूति करनी होती है निराशा और वेदना के पल में कनु प्रिया एक सहारा बनती है जहां नारी को नारायण और नारायण को नारी की अपरिहार्यता की अनुभूति होती है कृष्ण स्वय परम शक्ति सत्ता ईश्वर स्वय होते हुये भी लोभी है संपूर्णता जो नर और नारी के समागम से पूर्णतया प्राप्त सम्भव है राधा एक भक्त है उसकी चेतना में कृष्ण ही मात्र है उसी की चेतना में कृष्ण का महा योग रासलीला है चिर मिलन चिर बिरह की आध्यार्मिकता का साहित्यिक अध्याय है कनुप्रिया।।

कनुप्रिया की अभिव्यक्ति---

कविता या कला कीर्ति में ना प्रश्न होते है ना ही कोई उत्तर कविता की उत्कृष्टता यही है कि उसमें सिर्फ अभिव्यक्ति होती है जिसमे कोई परिभाषित संवाद या संदेश नही होता है यह उत्तरदायित्व पाठक के ऊपर छोड़ दिया जाता है कि वह अभिव्यक्ति की अनुभूति किस भाव या संवेदना में स्वीकार करता है।।धर्मबीर ने नारी मन के अन्तर्मन की परत दर परत को राधा के माध्यम से प्रस्तुत किया है पांच आवाजों में प्रस्तुत नारी की पांच बिभिन्न अनुभूतियों का प्रतिनिधित्व है यह लगभग सुनिश्चित करना मुश्किल है कि इस पांच अनुभूतियों से राधा एव नारी की संपूर्णता की अभिव्यक्ति हो पाई है या नही कनुप्रिया के रूप में नारी की व्यक्तित्व परिभाषा से परे स्वय की परिभाषा है जो तथ्य हिंन होते हुये भी सारगर्भित तथ्य है।।पांच मधुरिम आवाजे कनुप्रिया के व्यक्तित्व की परिभाषा नही बल्कि नारी की पांच अभिव्यक्ति है जो इन आवाजों से जीवंत है।।

राधा कृष्ण प्रेम की कनुप्रिया का सत्यार्थ--

(क) खुशी और शुख की प्रसन्नता और उसके समाप्त या लुप्त हो जाने का भय ;---
(ख) कृष्ण के द्वारका चले जाने से ठगी #बुझी हुई राख टूटे हुये गीत दुबे हुये चाँद सा#
(ग) बिरह वेदना की पीड़ा से आहत कनुप्रिया का अस्तित्व ही उसके लिये प्रश्न खड़ा करता है ।।
(घ) स्वरूप बदलते भाव कनुप्रिया की बिरह वेदना उसकी वास्तविकता स्वाभाविकता का मुख्य हिस्सा बन गयी है-#मैं कुछ सोचती नही कुछ याद भी नही करती #
(च) संपूर्णता नारी और नारायण के समागम से ही संभव है निराशा और वेदना के पल प्रहर में मन प्रिया की ओर ही मुड़ जाता है---#तुम तट पर बांह उठा उठा कर कुछ कहे जा रहे हो
पर तुम्हारी कोई नही सुनता कोई नही सुनता#
(छ) मानवता की अनिवार्यता है देवत्व भावनाओ की गाथा प्रणय के उस मुकाम ऊंचाई को पहुंच गई जहां अतीत विरह मिलन भविष्य सभी साक्ष्य के वर्तमान है आवेग की चरम भावनाओ के परे स्वर शब्द आत्म जीविश्वास है स्थिर है जन्मों की अनंतता की राह के कठिन दौर मोड़ पर खड़ी है स्वर अंतरिक्ष का अंतर्नाद लगता है राधा स्वयं में शक्ति चेतना कृष्णस्थ है जिसमे कृष्ण का महायोग रासलीला है जो कृष्ण प्रिया के मिलन विरह की आध्यात्मिक गाथा है।।
#शब्द शब्द शब्द
राधा के बिना सब
रक्त के प्यासे यर्थ हीन
शाब्द#

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गोरखपुर उत्तर प्रदेश