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सुपर गर्ल दुर्गा - 1

भाग 1

कहते हैं जब धरती पर पांप और बुराई ज्यादा बढ़ जाती है तो ऊपर वाला किसी ना किसी को इस पांप और बुराई का अंत करने के लिये धरती पर भेजता है।

ये कहानी है indore मे रहने वाली दुर्गा की। जो की एकbh किसान के परिवार से है। वो जीवन मे एक दिन कुछ बड़ा करके अपने माँ बाप का नाम रोशन करना चाहती है। लेकिन एक दिन उसके साथ एक ऐसा हादसा हो जाता है जो उसकी पूरी जिंदगी बदल कर रख देता है।

तो चलिये जानते हैं की आखिर क्या है दुर्गा की जिंदगी का सच।

कहानी की शुरुवात होती है होती है indore की सब्जी मंडी से जहाँ पर रमेश नाम का एक किसान अपनी पत्नी उर्मिला और अपनी 17 साल की बेटी दुर्गा के साथ सब्जी बेचने के लिये आया हुआ है।

“सब्जी ले लो सब्जी....! ताज़ा ताज़ा सब्जी लेलो...!” रमेश आवाज़ देता है।

“ताजा ताजा भिंडी ले लो। ताजा ताजा ताजा टमाटर ले लो।” दुर्गा भी अपने पापा का साथ देते हुए कहती है।

सब्जी बेचे बेचते उन्हें दोपहर के 2 बज गये थे। लेकिन उनकी पास से इका दुक्का ग्राहकों नर ही सब्जी ख़रीदा था।

“अजी आप और दुर्गा खाना खा लो। तब तक मैं दूकान देखती हूँ।” रमेश की पत्नी उर्मिला ने दुर्गा और उसके पापा को देखते हुए कहा।

“चल बेटा दुर्गा...! खाना खा लेते हैं।” दुर्गा के पापा ने कहा और फिर वो दोनो खाना खाने लगे।

खाना खाने के बाद रमेश और दुर्गा वापस से दूकान पर बैठ गये और ग्राहकों को आवाज़ लगाने लगे।

उनकी आवाज़ सुनकर कुछ लोग उनकी दूकान पर आये और सब्जियाँ देखने लगे। उन्ही मे से एक आदमी आगे आया और रमेश से बोला–“अरे सब्जी वाले भईया...! आहार सही सही भाव लगाओगे तो मैं तुम्हारी सारी सब्जी खरीद लूंगा। असल मे मेरे घर पर आज रात को एक प्रोग्राम है उसके लिये मुझे ये सभी सब्जियाँ चाहिये।”

उस आदमी की बात सुनकर दुर्गा, उसके पापा और उसकी मम्मी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

रमेश ने उस आदमी को सभी सब्जियों का दाम बता दिया। उस आदमी को भी सब्जियों का दाम सही लगा इसलिए उसमे रमेश से सारी सब्जियाँ खरीद ली।

“फटाफट इन सब्जियों को गाड़ी मे लोड करवाओ।” उस आदमी मे अपने साथ आये लोगों से कहा और फिर वो वहां से चला गया।

रमेश ने भी अपनी पत्नी और बेटी के साथ मिलकर दूकान का सारा सामान समेटा और कुछ घर के लिये खरीदी करने के बाद घर के लिये निकल गये। उनके घर पहुंचते पहुंचते शाम के 6 बज गये।

उर्मिला ने अपनी बेटी दुर्गा के साथ मिलकर खाना बनाना शुरू कर दिया।

कुछ ही देर मे खाना तैयार होते ही वो तीनो खाना खाने के लिये बैठ गये।

खाना खाने के बाद उर्मिला और रमेश तो सो गये। लेकिन दुर्गा ने अपनी किताब निकाली और पढ़ाई करने बैठ गयी। वो अपने गांव के सरकारी स्कूल मे 12वी क्लास मे पढ़ती थी।

सुबह स्कूल जाना और फिर स्कूल से घर लौटकर आपमें माँ बाप का खेत के काम मे हांथ बटाना। यही उसकी रोजाना जिंदगी थी।

एक दिन रविवार को वो तीनो बाजार मे सब्जी बेच लेने के बाद टेम्पो से अपने घर को जा रहे थे की अचानक टेम्पो ता टायर पंचर हो गया। टेम्पो वाले ने सभी लोगों को टेम्पो से निचे उतरवा दिया।

जो जो लोग आस पास रहते थे वो तो अपने अपने घर चले गये। लेकिन रमेश का घर वहां से लगभग 15 km दूर था।

एक तो पहले ही आज बाजार मे उन लोगों को देरी हो गयी थी। ऊपर से टेम्पो का टायर पंचर हो गया। उनके गाँव की तरफ आने जाने के लिये ज्यादा गाड़ियाँ भी नही थी।

रमेश और उसका परिवार लगभग 2 km तक पैदल चले और फिर रास्ते के किनारे खड़े होकर किसी गाड़ी का इंतेज़ार करने लगे।

थोड़ी देर बाद उन्होंने सोचा की थोड़ी दूर और पैदल चलते हैं।

कुछ देर के बाद उन्हें एक गाड़ी आती हुई दिखाई दी। रमेश ने गाड़ी को रुकने का इशारा कर दिया।

वो गाड़ी उनसे कुछ दूर आगे गयी और फिर रूक गयी। अचानक से वो गाड़ी रिवर्स होकर रमेश के पास आकर रूक गयी। गाड़ी का शीशा निचे हुआ और एक आदमी ने रमेश से पूछा–“अरे भाई साहब कोई मदत चाहिये क्या?”

“जी साहब। अगर आप हमे कुछ दूर आगे तक छोड़ देंगे तो आओकी बड़ी मेहेरबानी होगी।” रमेश ने उस आदमी से हांथ जोड़ते हुए कहा।

उस आदमी ने पहले रमेश को देखा और फिर उसकी नजर दुर्गा पर गयी। उसकी नियत कुछ ठीक नही लगा रही थी।

“आप लोग एक काम करो। पीछे की तरफ बैठ जाओ।” उस आदमी ने कहा।

“जी साहब आपकी बड़ी मेहेरबानी।” रमेश ने कहा और फिर वो तीनो गाड़ी के पीछे की तरफ बैठ गये।

गाड़ी मे पहले से कुछ 3 से 4 जवान लड़के बैठे हुए थे।

एक पल के लिये तो रमेश ने सोचा की गाड़ी मे बैठना सही नही है। फिर उसने सोचा की इतनी रात मे अपने परिवार की पैदल पैदल कहां तक ले जायेगा? यही सोचकर वो गाड़ी मे बैठ गया।

लगभग 5 km तक जाने के बाद गाड़ी वाले ने अचानक से एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दी और गाड़ी से निचे उतर गया। उसके साथ वो तीन चार लड़के भी निचे उतर गये।

गाड़ी का ड्राइवर गाड़ी के पीछे की तरफ आया और रमेश और उसके परिवार को निचे उतरने को कहा।

अचानक से बारिश भी शुरू हो गयी।

वो सभी लोग दुर्गा को बहुत गलत नजर से देखने लगे।

रमेश समझ गया की उन लोगों की नियत ठीक नही है। इससे पहले की वो कुछ करता। उन लोगों मे से एक आदमी आगे आया और रमेश के पेट मे चाक़ू मार दिया।

“भाग दुर्गा... भाग उर्मिला....” रमेश ने अपना पेट पकड़ते हुए दर्द मे रोते हुए कहा।

दुर्गा होने पापा को ऐसा देख कर सुन्न रह गयी। उसको एकदम से सदमा लगा गया।

“चल बेटी दुर्गा चल, हमे यहाँ से भागना होगा।” दुर्गा की माँ उर्मिला ने उसका हांथ खींचते हुए कहा।

अचानक से दुर्गा को होश आया और वो अपनी माँ के साथ वहां से भागने लगी।

“पकड़ो उन्हें। किसी भी हालत मे दोनो हाँथ से जानी नही चाहिये।” उस गाड़ी ड्राइवर ने दूसरे लोगों से कहा।

वो लोग दुर्गा और उसकी माँ का पीछा करने लगे।

Story Continues........