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ADHURA ISHQ

1. सोचता हूँ, के कमी रह गई शायद कुछ या
जितना था वो काफी ना था,
नहीं समझ पाया तो समझा दिया होता
या जितना समझ पाया वो काफी ना था,
शिकायत थी तुम्हारी के तुम जताते नहीं
प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं,
अरे मुह्हबत की क्या मैं नुमाईश करता
मेरे आँखों में जितना तुम्हें नजर आया,
क्या वो काफी नहीं था I
सोचता हूँ के क्या कमी रह गई,
क्या जितना था वो काफी नहीं था

2. टूट चूका हूँ बिखरना बांकी है,
बचे कुछ एहसास जिनका जाना बांकी है,
चंद सांसें है जिनका आना बांकी है,
मौत रोज मेरे सिरहाने खड़ी हो पूछती है
भाई आ जा, अब क्या देखना बांकी है

3. सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I
उनके मुँह से निकले सारे अल्फाजों को याद कर लूँ कभी I
ऐसी क्या मज़बूरी होगी उनकी की हम याद नहीं आते I
सोचता हूँ तोहफा भेज कर अपनी याद दिला दूँ कभी I
सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I"

4. चलते चलते कहीं रुका,
तो कुछ जानने वाले मिले
तो लगा कितनी छोटी सी दुनियां है
जब जानने वालों ने पहचाना नहीं
तो लगा की इस छोटी सी दुनियां में हम कितने छोटे है

5. तन्हाई में भी बहुत सी अच्छाई है I
बिना बात हसाती है, रुलाती है I
बड़े -बड़े ख्याब दिखलाती है I
क्योंकि, तन्हाई में भी है बहुत सी अच्छाई I
अपने आप से मिलबाती है I
ज़िंदगी जीने का तरीका सिखलाती है I
आपनो की याद दिलाती है I
बातें जो दफ़न हो गई है यादों की कब्र में उस से मिलबाती है I
क्योंकि, तन्हाई में भी बहुत सी अच्छाई है I
ख्यालों के मजधार में डुबोती है I
खुद पर भरोसा करना सिखलाती है I
क्योकि तन्हाई में भी बहुत सी अच्छाई है

6. हर दर्द को लिख दूं इतनी हिम्मत नहीं,
आपको अपने साथ लिख दूं इतनी हिम्मत नहीं,
आपको किसी और के साथ देख लू इतनी हिम्मत नहीं,
अपनी ज़िंदगी किसी और के नाम लिख दूं इतनी हिम्मत नहीं,
बदनाम तो हम भी हैं लेकिन बदनामी की वजह लिख दूं इतनी हिम्मत नहीं

7. जो शब्दों में अगर मैं बयां कर पाऊं चाहत कभी
हर यादें वो तुमसे जुड़ी,
हर वो बात उन यादों से जुड़ी
उन यादों से, तेरी बातों से
जुड़ा हुआ हूँ मैं अब भी
जो लिख पाऊं मैं उन जज्बातों को,
शब्द बनकर दिल की कलम में अब इतनी ताकत नहीं I
कोशिश जारी है मेरी, वो मकसद समझने की
जो ज़िंदगी सिखलाना चाहती थी मुझे,
शिकायत तुमसे नहीं, तुम तो एक जरिया बनी
जाने क्या सिखला कर गई हो तुम,
तुमसे नहीं, गर ज़िंदगी मिले तो पूछूँ कभी
ग़मों के ढेर में एक नाम तुम्हारा भी जुड़ा है बस
ऐ ज़िंदगी क्या बस इतनी ही थी चाहत तेरी I
नाउम्मीदी भरी ही सही, दिल में है मगर एक चाहत अभी भी
जो थोड़ी हो आहट तेरे आने की कोई,
नासमझी है मेरी, मगर देती है मुझे ये राहत थोड़ी
सबक का जरिया बना कर भेजा था जिसे ज़िंदगी ने
जो लौट आये मुझमे मेरा हिस्सा बन कर कभी,
देखे वो यादों का कमरा, जो अब तक सजा कर रखा है मैंने
उसकी यादों से जुड़ी, हर बाद उन यादों से जुड़ी
जो शब्दों में अगर मैं बयां कर पाऊं चाहत कभी

8. खुशी और गम के मायने एक हो गए,
तुम्हारे साथ तुम्हारे बाद दोनों के मायने एक हो गए,
महफिल और सड़क के मायने एक हो गए,
हम अपने आप से मिल गए ज़िंदगी के मायने एक हो गए