Laga Chunari me Daag - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

लागा चुनरी में दाग--भाग(३)

प्रमोद मेहरा जी को खामोश देखकर उस लड़की के पिता बोले.....
"बेटी! इनकी बात सही है,पहले ये आए थे ताँगे के पास"
"तो क्या हुआ,लेकिन हम लोग जाऐगें इस ताँगे पर",लड़की बोली...
"बेटी! जिद़ नहीं करते ,ये बाबू साहब परदेशी मालूम पड़ते हैं,पहले इन्हें जाने दो",लड़की के पिता बोले...
"नहीं! कोई बात नहीं! अगर आपकी बच्ची इसी ताँगे से जाना चाहती तो आप लोग ही पहले चले जाइए",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"वैसे आपको कहाँ जाना है"?,लड़की के पिता ने पूछा...
"जी! सिंगला गाँव जाना था",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"अरे! हम लोग भी वहीं जा रहे हैं,तो फिर दिक्कत वाली कोई बात ही नहीं है,आप भी हमारे साथ इसी ताँगे पर जाइए,फिर साथ में चले चलते हैं",लड़की के पिता बोले...
"रहने दीजिए! आपको खामख्वाह तकलीफ़ होगी",प्रमोद जी ने लड़की के पिता से कहा...
"तकलीफ़ किस बात की बाबू साहब! जब एक ही जगह जाना है तो साथ में ही चलते हैं",लड़की के पिता बोले....
"जी! आप कहते हैं तो मैं भी आप सभी के साथ चला चलता हूँ"
और ऐसा कहकर प्रमोद मेहरा जी ने अपना सामान ताँगे पर रखा और उस पर बैठ गए,फिर लड़की के पिता ने ताँगेवाले से आगे बढ़ने को कहा, ताँगा टप टप करते हुए आगे बढ़ने लगा,तब लड़की के पिता ने प्रमोद मेहरा जी से पूछा....
"जी! आपका शुभ नाम"?
"जी! मुझे प्रमोद मेहरा कहते हैं और आपकी तारीफ़",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"जी! मैं संजीव मेहरा,इण्टर काँलेज में अध्यापक हूँ,बच्चों को गणित पढ़ाता हूँ और आप क्या करते हैं",संजीव मेहरा जी ने पूछा...
"जी! मैं बाँम्बे में सबइन्सपेक्टर हूँ,पहले इन्सपेक्टर था,हाल ही मेरी तरक्की हुई है",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"ओह....लेकिन आपके व्यवहार को देखकर ऐसा नहीं लगता कि आप पुलिस में होगें",संजीव मेहरा जी बोले...
"वो भला क्यों"?,प्रमोद मेहरा जी ने पूछा...
"वो इसलिए कि आपकी जगह कोई और होता तो पुलिस वाला रुतबा दिखाकर झटपट ताँगे में बैठ जाता, इस सभ्य लहजे में बात ना करता",संजीव मेहरा जी बोले...
"पुलिस वाला रुतबा मैं अपराधियों और थाने तक ही सीमित रखता हूँ,बेमतलब की धौंस जमाना मुझे अच्छा नहीं लगता"प्रमोद मेहरा जी बोले...
"ये तो आपका बड़प्पन है,नहीं तो कोई और इस ओहदे में होता तो उसने अब तक अपना जलवा दिखा दिया होता",संजीव मेहरा जी बोले...
"जी! मुझसे ये सब नहीं होता",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"सज्जन व्यक्तियों की यही निशानी है",संजीव मेहरा जी बोले....
"मैं तो सज्जन हूँ लेकिन शायद आपकी बेटी सज्जन नहीं है",प्रमोद मेहरा जी मुस्कुराकर बोले...
प्रमोद मेहरा जी की इस बात पर संजीव जी मुस्कुराकर बोले....
"ऐसी बात नहीं है इन्सपेक्टर साहब! बस लाड़ प्यार में बिगड़ गई है,इसलिए इतनी मुँहफट है,वैसे दिल की बुरी नहीं है",संजीव मेहरा जी बोले....
"कोई बात नहीं,अभी नादान है शायद इसलिए ऐसी है,शादी के बाद जब सास के डण्डे पड़ेगें ना तो सुधर जाऐगी",प्रमोद मेहरा जी उस लड़की को चिढ़ाते हुए बोले...
"अगर वो मुझे डण्डे मारेगी तो मैं ऐसी सास को कुएँ में ना फेंक दूँगी",वो लड़की गुस्से से बोली...
"चुप कर ज्यादा मत बोला कर",पीछे से लड़की की माँ बोली....
"तो कोई मुझे मारेगा तो क्या मैं उसे छोड़ दूँगीं",वो लड़की दोबारा बोली....
"वैसे नाम क्या है आपकी बेटी का",प्रमोद मेहरा जी ने संजीव जी से पूछा...
"मेरा नाम प्रत्यन्चा है",पिता के बोलने से पहले ही वो लड़की बोल पड़ी...
"ओह....बड़ा ही प्यारा नाम है",प्रमोद मेहरा जी बोले....
"वो तो है",प्रत्यन्चा बोली....
"बस नाम ही प्यारा है,शकल तो बिलकुल भी प्यारी नहीं है,तुमसे अच्छी तो हमारे गाँव की चुड़ैल लगती है", प्रमोद मेहरा जी ने फिर से प्रत्यन्चा को चिढ़ाते हुए कहा....
"पहले आप अपनी शकल तो देख लो",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"फिर जुबान चलाई तूने!,मैं तो थक चुकी हूँ इस लड़की को समझाते समझाते",प्रत्यन्चा की माँ बोली....
"तुम इनसे तो कुछ नहीं कहती,जो मुझे इतनी देर से चिढ़ाए जा रहे हैं",प्रत्यन्चा बोली...
"बड़ो की बात का बुरा नहीं मानते बिटिया!",संजीव मेहरा जी बोले...
"अच्छा! बड़े हैं तो कुछ भी अनाप शनाप बोलते रहेगें मेरे बारें में और मैं चुपचाप बैठी रहूँ",प्रत्यन्चा बोली...
"फिर बोली तू,अब बोली ना तो एक जोर का थप्पड़ पड़ेगा",प्रत्यन्चा की माँ ने कहा...
फिर माँ के डाँटने पर प्रत्यन्चा मुँह फुलाकर बैठ गई,संजीव जी और प्रमोद मेहरा जी के बीच बहुत सी बातें होतीं रहीं और फिर एकाध घण्टे के सफर के बाद सभी सिंगला गाँव जा पहुँचे,तब संजीव जी ने प्रमोद जी से कहा...
"लीजिए! आ गया सिंगला गाँव,वैसे आपको किसके घर जाना है"
तब प्रमोद मेहरा जी बोले...
"जी! मुझे सुभाष मेहरा के घर जाना है,हम दोनों काँलेज में एक साथ पढ़ा करते थे,उनके बेटे का नामकरण संस्कार है तो उसी में आया हूँ,आप मुझे यहीं उतार दीजिए,मैं ताँगे का किराया देकर चला जाता हूँ",
प्रमोद मेहरा जी की बात सुनकर संजीव जी बोले....
"अरे! हम सब भी तो वहीं जा रहे हैं,सुभाष मेरा फुफेरा भाई है"
"ओह...तब तो ये बड़ा ही अजीब इत्तेफाक हो गया,तो चलिए फिर साथ में ही चलते हैं उसके घर",प्रमोद मेहरा जी बोले....
और फिर साथ में सभी सुभाष मेहरा के घर पहुँचे,अपने दोस्त प्रमोद को अपने ममेरे भाई संजीव के साथ देखकर सुभाष ने पूछा...
"अरे! तुम दोनों साथ में कैंसे"?
"वो भी बड़ा ही अजीब इत्तेफाक रहा",संजीव बोला....
फिर संजीव की बात पर सभी हँस पड़े,सब घर के भीतर पहुँचे और फिर सब ने जलपान ग्रहण किया, इसके बाद रात का भोज प्रमोद मेहरा जी ने सभी के साथ जमीन में बैठकर खाया,चूल्हे में पका खाना उन्हें बहुत ही स्वादिष्ट लग रहा था,खाने में चने की दाल,कढ़ी पकौड़ी,कद्दू की सब्जी,रायता,हरी मिर्च का भरवाँ अचार और शुद्ध घी से लबालबा चूल्हें की सिकीं रोटियाँ,ऐसा खाना खाकर उन्हें आनन्द ही आ गया,उन्होंने उस समय सोच लिया था कि रिटायरमेंट के बाद वे सुरेखा के संग किसी गाँव में ही रहेगें और रोजाना चूल्हे का पका खाना खाया करेगें,
दूसरे दिन बच्चे का नामकरण संस्कार था,घर में बहुत से मेहमान इकट्ठे हुए थे,इसलिए घर पर स्नान की सुविधा नहीं थी,क्योंकि घर पर तो महिलाओं के स्नान का इन्तजाम था,इसलिए पुरुषों को स्नान के लिए नहर भेज दिया गया,उस समय तक प्रमोद मेहरा जी नहीं जाग पाए थे,गाँव के माहौल में उन्हें उस रात सुकून की नींद आई थी,वे तब जागे जब सभी पुरुष नहर से नहाकर वापस आ गए और फिर प्रमोद मेहरा जी को अकेले ही नहर की ओर स्नान करने जाना पड़ा,उनके साथ नहर का रास्ता बताने के लिए एक बच्चे को भेज दिया गया,जो उन्हें नहर की ओर छोड़कर वापस आ गया,इधर स्नान के बाद प्रत्यन्चा की माँ मधु की साड़ी धोने के लिए निकल आईं थी और एक साड़ी पहले दिन के सफर की भी निकल आई थी,उस जमाने में घर में पानी की उतनी सुविधा नहीं हुआ करती थी इसलिए प्रत्यन्चा की माँ मधु ने प्रत्यन्चा से उन साड़ियों को नहर से धुलकर लाने को कहा,प्रत्यन्चा ने वहीं मेहमानों में से एक दस साल की लड़की को अपने साथ लिया और साड़ियों को एक टोकरी में डालकर चल पड़ी नहर की ओर उन्हें धुलने के लिए....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....