#पगली_दीवानी _3_
बोझिल रात लगती है नहीं कटती तुम्हरे बिन,
यादों में ही आते हो कभी ख्वाबों में आ जाओ ,
तमन्ना तुमसे है अब रूबरू होने की ओ जाना,
मुकम्मल मिल जाओ या सांसों में समा जाओ,
कहती है तुम्हारे बिन अब तो रह नहीं सकती,
जुदाई का ज़हर लेकिन अब तो पी नहीं सकती,
बहुत दिल को संभाला है बगावत न कर दे ये,
ज़िन्दगी तुम्हारे बिन मगर अब जी नहीं सकती,
मुझे मालूम है किनारा तुम मेरे हो नहीं सकते,
मगर ये भी पता है की मुझे तुम खो नहीं सकते,
रहा जब तक तुम्हारा साथ मैं साथ निभाऊंगी,
ये हमारे प्यार के मोती कहीं गुम हो नहीं सकते,
मानती हूं ज़माने के गुनहगारों में मैं सामिल हूं,
मगर ये भी तो सच है कि यारों में मैं सामिल हूं,
ज़माने की मुझे बिलकुल भी परवाह नहीं है पर,
तुम्हारे मैं मगर लेकिन शुक्रगुजारों में सामिल हूं,
हर इक ग़म को सहती है मगर बस मुस्कुराती है,
कहूं मैं कुछ भी उससे तो सब सच मान जाती है,
समन्दर में कहीं फिर दूर जाकर लौट आना हो,
अनहोनी होने से पहले सब कुछ जान जाती है,
कभी सवेरा खुशियों का होगा उसे विश्वास है पूरा,
कभी मेरी मेहनत रंग लाएगी उसे आभास है पूरा,
उसे डर इस बात का है की कदम न डगमगा जाएं,
मेरे कदमों में मंजिल हो उसका अब प्रयास है पूरा ,
#PoetryOfSJT