💔 अधूरा इश्क़ — हिस्सा 3
एक मैसेज, एक तूफ़ान
लेखिका: नैना ख़ान
सालों बीत चुके थे।
ज़िंदगी ने दोनों को अपनी-अपनी राहों पर धकेल दिया था।
समा अब शादीशुदा थी — दो प्यारे बच्चों की माँ, एक ज़िम्मेदार पत्नी, और समाज की नज़रों में एक “खुशहाल औरत।”
मगर दिल के किसी कोने में, एक अधूरी कहानी अब भी धड़क रही थी।
वो कहानी, जिसका नाम था — यूसुफ।
🌆 एक आम शाम, एक अनचाही दस्तक
उस शाम समा अपने कमरे में अकेली बैठी थी।
बाहर बच्चों की हँसी की आवाज़, रसोई में बनती चाय की महक — सब कुछ सामान्य था।
उसने अपना फ़ोन उठाया, व्हाट्सएप खोला, और अचानक स्क्रीन पर एक नोटिफ़िकेशन उभरा:
“Hello Sama, tum kaisi ho? Main Yusuf... tumhara best friend.”
पल भर को उसका दिल थम गया।
जैसे समय ने साँस लेना छोड़ दिया हो।
वो नाम... वो लहजा... वो यादें... सब एक साथ लौट आए।
उसकी उँगलियाँ काँपने लगीं।
उसने स्क्रीन को छुआ, मैसेज फिर पढ़ा —
“Hello Sama...”
सिर्फ़ दो शब्द, मगर इन दो शब्दों ने सालों पुरानी दबी हुई मोहब्बत को फिर से जगा दिया।
वो यकीन नहीं कर पा रही थी।
क्या ये वही यूसुफ है?
जिससे उसने बिना अलविदा कहे रिश्ता तोड़ लिया था?
जिसे उसने अपने ज़ेहन से मिटाने की कोशिश की, मगर कभी मिटा नहीं पाई?
उसका दिल कह रहा था — “जवाब दे दो।”
मगर अक़्ल ने रोक लिया — “अब बहुत देर हो चुकी है।”
समा ने फ़ोन बंद कर दिया।
वो तकिए में चेहरा छिपाकर देर तक रोती रही।
क्योंकि कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन्हें भूलना भी सज़ा है, और याद करना भी।
🌙 अधूरी यादों का जागना
रात के सन्नाटे में समा की नींद उड़ चुकी थी।
वो उठी, खिड़की से बाहर देखा — चाँद आधा था, जैसे उसकी मोहब्बत।
उसने खुद से कहा,
"क्यों अब आया वो? जब सब खत्म हो चुका है..."
वो जानती थी — अब वो किसी और की ज़िम्मेदारी है, किसी की पत्नी, किसी की माँ।
अब वो पुरानी समा नहीं रही, जो किताबों में फूल बनाती थी।
मगर उसके अंदर कहीं वो लड़की अब भी ज़िंदा थी,
जो एक ख़ामोश लड़के की आँखों में मोहब्बत ढूँढती थी।
📱 यूसुफ की तरफ़ से
उधर, यूसुफ ने भी उस रात चैन से नींद नहीं ली।
सालों बाद उसने हिम्मत जुटाई थी —
कितनी बार उसने नंबर टाइप किया और डिलीट किया।
हर बार दिल ने कहा, “मत लिख, वो अब किसी और की ज़िंदगी है।”
मगर उस रात उसने खुद से कहा,
"मैं बस हाल पूछ रहा हूँ, मोहब्बत नहीं माँग रहा..."
वो अब भी अकेला था।
न शादी हुई, न कोई रिश्ता जुड़ा।
लोग कहते — “अभी तक सिंगल क्यों?”
वो हँसकर कहता, “कुछ वादे निभाने में उम्र लग जाती है।”
वो जानता था, समा शायद कभी जवाब नहीं देगी।
मगर उसने फिर भी लिखा,
क्योंकि कुछ नाम दिल से निकलते नहीं — चाहे वक्त कितना भी गुज़र जाए।
🌅 वक़्त की चाल
दिन हफ़्तों में बदले, और समा ने उस मैसेज को अनरीड छोड़ दिया।
मगर हर रोज़ उसकी नज़र उसी नोटिफ़िकेशन पर टिक जाती।
वो जानती थी, जवाब देगी तो फिर वही तूफ़ान लौट आएगा।
और वो तूफ़ान अब उसकी ज़िंदगी बिखेर सकता था।
फिर भी, दिल कहाँ रुकता है?
एक शाम, जब बच्चे सो चुके थे और घर में सन्नाटा था,
समा ने धीरे से वो चैट खोली।
कर्सर टाइपिंग बॉक्स में झपक रहा था — जैसे दिल कह रहा हो, “बस एक शब्द लिख दो…”
और उसने लिख दिया —
“Hi Yusuf, kaise ho? Sorry main pehle reply nahi kar payi.”
सेंड दबाते ही दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
उसने फ़ोन रख दिया, जैसे कोई चोरी कर ली हो।
कुछ ही मिनटों में जवाब आया —
“Sama! Tumne reply diya… mujhe laga tum mujhe bhool gayi ho।”
समा मुस्कुरा दी — एक हल्की, भीगी सी मुस्कान।
उसके अंदर कुछ पिघल गया था।
🌤️ दोबारा बातों का सिलसिला
अब वो दोनों फिर से बात करने लगे।
शुरुआत में औपचारिक बातें —
“कैसी हो?”, “क्या करती हो?”, “बच्चे कैसे हैं?”
फिर धीरे-धीरे पुराने लम्हे लौटने लगे।
कोचिंग सेंटर की बातें, वो बेंच, वो बारिश वाली शाम…
यूसुफ ने लिखा,
“मुझे अब भी याद है वो दिन जब तुमने कहा था कि तुम्हें बारिश पसंद है, भीगना नहीं…
और मैं अब भी बारिश में भीगता हूँ, शायद इसलिए कि अब भी तुमसे प्यार है।”
समा की आँखें नम हो गईं।
उसने जवाब नहीं दिया — बस टाइप किया और डिलीट कर दिया।
वो चाहती थी कहे — “मुझे भी याद है।”
मगर अब उसके पास कहने का हक़ नहीं था।
🌾 यूसुफ की तन्हाई
यूसुफ अब भी उसी शहर में रहता था।
अब वो एक डिज़ाइनिंग कंपनी में काम करता था,
मगर उसका कमरा आज भी वैसे ही सजा था —
दीवार पर वही किताबें, और एक पुरानी फोटो — कोचिंग सेंटर की ग्रुप पिक्चर,
जहाँ समा पीछे खड़ी मुस्कुरा रही थी।
वो अक्सर उस फोटो से बातें करता,
“तुमने अलविदा क्यों नहीं कहा था, समा?”
फोटो जवाब नहीं देती,
बस उसकी मुस्कान हर बार नया दर्द दे जाती।
🌺 समा की उलझन
समा की ज़िंदगी बाहर से खुशहाल थी,
मगर अंदर वो हर दिन खुद से जंग लड़ती।
उसका शौहर अच्छा इंसान था, मगर उसके साथ वो वही महसूस नहीं करती थी,
जो कभी यूसुफ के साथ किया था।
कभी-कभी वो बच्चों को सोता छोड़कर बालकनी में चली जाती,
फोन खोलती, चैट पढ़ती, और फिर खुद से कहती —
“ये गलत है, मुझे रुकना होगा।”
मगर अगले ही पल यूसुफ का मैसेज आ जाता —
“आज बहुत थका हूँ… बस तुम्हारी एक बात सुननी थी।”
और समा फिर हार जाती।
🌙 लम्हों की वापसी
एक रात यूसुफ ने लिखा —
“तुम जानती हो, मैंने कभी शादी नहीं की।
किसी ने पूछा क्यों, तो कहा —
जिस शख़्स से दिल में निकाह कर लिया हो,
उसके बाद किसी और से रिश्ता कैसा?”
समा के हाथ काँपने लगे।
उसने लिखा, “Yusuf… aisa mat likho, sab badal chuka hai।”
वो बोला, “तुम बदली हो, मैं नहीं।”
उन दोनों के बीच अब भी वही जुड़ाव था —
जिसे ना वक्त मिटा सका, ना जुदाई।
रात देर तक उनकी बातें चलतीं —
कभी मज़ाक, कभी यादें, कभी खामोशी।
मगर हर बातचीत का अंत एक दर्दभरी चुप्पी से होता।
क्योंकि दोनों जानते थे —
ये रिश्ता फिर से शुरू नहीं हो सकता।
🌧️ एक मैसेज, एक तूफ़ान
एक दिन समा के शौहर ने उसका फोन देखा —
स्क्रीन पर यूसुफ का नाम चमक रहा था।
वो कुछ देर तक उसे देखता रहा, फिर चुपचाप चला गया।
समा का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
उसे समझ आ गया, अब ये बात छुपी नहीं रह पाएगी।
उस रात उसने यूसुफ को मैसेज किया —
“अब मुझसे बात मत करो, Yusuf. Meri duniya aur meri zimmedariyan dono alag hain.”
कुछ पल बाद जवाब आया —
“ठीक है Sama… बस आख़िरी बात —
tum meri dua thi, meri kismet nahi.”
समा की आँखें छलक पड़ीं।
उसने फ़ोन बंद कर दिया।
दिल में फिर वही तूफ़ान उठ खड़ा हुआ —
जैसे ज़िंदगी ने एक बार फिर सब कुछ छीन लिया हो।
कभी-कभी एक मैसेज सब कुछ लौटा देता है —
यादें, दर्द, और वो एहसास जो कभी मरा ही नहीं था।
मगर कुछ तूफ़ान ऐसे होते हैं, जो दिल में उठकर बस चुपचाप सब कुछ बर्बाद कर जाते हैं।
"कुछ मोहब्बतें मुकम्मल नहीं होतीं, मगर उनकी गहराई हर रिश्ते से ज़्यादा होती है।"
(समाप्त — हिस्सा 3)
आगे पढ़ें: हिस्सा 4 — “आख़िरी अलविदा” 🌑
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