Seva aur Sahishnuta ke upasak Sant Tukaram book and story is written by Charu Mittal in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Seva aur Sahishnuta ke upasak Sant Tukaram is also popular in Spiritual Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
सेवा और सहिष्णुता के उपासक संत तुकाराम - Novels
by Charu Mittal
in
Hindi Spiritual Stories
संसार में सभी मनुष्यों का लक्ष्य, धन, संतान और यश बताया गया है। इन्हीं को विद्वानों ने वित्तैषणा, पुत्रेषणा और लोकैषणा के नाम से पुकारा है। इन तीनों से विरक्त व्यक्ति ढूँढ़ने से भी कहीं नहीं मिल सकता। संभव है कि किसी मनुष्य को धन की लालसा कम हो, पर उसे भी परिवार और नामवरी की प्रबल आकांक्षा हो सकती है। इसी प्रकार अन्य व्यक्ति ऐसे भी मिल सकते हैं कि जिनको धन के मुकाबले में संतान अथवा यश की अधिक चिंता न हो। पर इन तीनों इच्छाओं से मुक्त हो जाने वाला व्यक्ति किसी देश अथवा काल में बहुत ही कम मिल सकता है।
इसका आशय यह नहीं कि इस प्रकार की आकांक्षा रखने वाला मनुष्य निश्चय ही दूषित समझा जाए। संसार में रहते हुए इन वस्तुओं की आवश्यकता मनुष्य को पड़ा ही करती है और यदि इस आवश्यकता को न्यायानुकूल मार्ग से पूरा किया जाय तो उसमें बुराई अथवा निंदा की कोई बात नहीं है। पर देखने में यह आता है कि बहुसंख्यक लोग इनके लिए गलत उपायों का अवलंबन करते हैं, इनकी लालसा में पड़कर अन्य उच्च श्रेणी के लक्ष्यों को त्याग देते हैं, इसीलिए इन तीनों एषणाओं की ज्ञानी व्यक्तियों ने निंदा की है।
सेवा और सहिष्णुता के उपासक संत तुकारामसंसार में सभी मनुष्यों का लक्ष्य, धन, संतान और यश बताया गया है। इन्हीं को विद्वानों ने वित्तैषणा, पुत्रेषणा और लोकैषणा के नाम से पुकारा है। इन तीनों से विरक्त व्यक्ति ढूँढ़ने से ...Read Moreकहीं नहीं मिल सकता। संभव है कि किसी मनुष्य को धन की लालसा कम हो, पर उसे भी परिवार और नामवरी की प्रबल आकांक्षा हो सकती है। इसी प्रकार अन्य व्यक्ति ऐसे भी मिल सकते हैं कि जिनको धन के मुकाबले में संतान अथवा यश की अधिक चिंता न हो। पर इन तीनों इच्छाओं से मुक्त हो जाने वाला व्यक्ति
बाल्यावस्था में गृहस्थ संचालनसंत तुकाराम जी का जन्म पूना के निकट देहू गाँव में संवत् १६६५ वि० में एक कुनवी परिवार में हुआ था। इस जाति वालों को महाराष्ट्र में शूद्र माना जाता है और वे खेती-किसानी का धंधा ...Read Moreहैं। पर तुकाराम जी के घर में पुराने समय से लेन-देन का धंधा होता चला आया था और उनके पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। इसलिए उनकी बाल्यावस्था सुखपूर्वक व्यतीत हुई। जब वे तेरह वर्ष के हुए तो उनके माता-पिता घर का भार उनको देकर स्वयं तीर्थों में भगवत् भजन करने के उद्देश्य से चले गये। तुकाराम जी उसी आयु
सेवा मार्ग का पथिकसांसारिक उलझनों और व्यवसाय संबंधी कुटिलताओं के कारण तुकाराम जी का जीवन दुःखमय हो गया था और इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप उनके मन में वैराग्य की भावना सुदृढ़ हो गई। यों तो संसार में अनगिनती लोगों का ...Read Moreअभावपूर्ण और दुःखी होता है, असह्य कष्ट आ पड़ने पर उनको वैराग्य भी हो जाता है, पर यह वैराग्य क्षणिक होता है। ऐसे वैराग्य को ज्ञानियों ने 'श्मशान-वैराग्य' कहा है। ऐसा वैराग्य श्मशान भूमि से बाहर आते ही समाप्त हो जाता है, क्योंकि वह ऊपरी है। चार आँसू गिरते ही ठंडा पड़ जाता है। तुकाराम जी दुनिया की तिकड़मों से
गुरु महिमाभारतवर्ष के साधकों का विश्वास है कि सद्गुरु की कृपा बिना किसी को अध्यात्म मार्ग में सफलता नहीं मिल सकती। अनेक लोग यही कहा करते हैं कि हमने ग्रंथों का अध्ययन कर लिया अपनी बुद्धि से उनका रहस्य ...Read Moreसमझ लिया अब गुरु की क्या आवश्यकता है ? जो लोग इस प्रकार का विचार रखते हैं, वे अंत में अहंकार के जाल में ही फँसे दिखाई पड़ते हैं। विद्या प्राप्त कर लेने पर भी बिना उपयुक्त मार्गदर्शक के उसे व्यवहार में लाना और पूरा लाभ उठा सकना बहुत कठिन होता है। श्रीमत् शंकराचार्य जैसे महान् मनीषी भी यही कह
मन को जीतना सबसे बड़ा पुरुषार्थतुकाराम जी ने अपने मन को वश में करने के लिए बड़ा प्रयत्न किया था और उन्होंने अन्य अध्यात्म-प्रेमियों को यही उपदेश दिया है कि मनोजय के बिना आत्मजय की बात करना दंभ मात्र ...Read Moreपर मन का जीतना सहज नहीं और यही कारण है कि सार्वभौम सम्राटों की अपेक्षा भी अपने मन पर विजय प्राप्त करने वाले एक लंगोटीधारी साधु को संसार में अधिक महत्त्व दिया जाता है। इस तथ्य को समझाते हुए तुकाराम ने कहा–मन करा रे प्रसन्न, सर्व सिद्धि चे साधन।मोक्ष अथवा बंधन, सुख समाधान इच्छातें।अर्थात्– “भाइयों ! मन को प्रसन्न करो,