Muje Nyay Chahiye book and story is written by Pallavi Saxena in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Muje Nyay Chahiye is also popular in Women Focused in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मुझे न्याय चाहिए - Novels
by Pallavi Saxena
in
Hindi Women Focused
शारीरिक विकलांगता किसी का मुंह नहीं देखती ना ही किसी में कोई लिंग भेद ही करती है. यहाँ मैं विकलांगता शब्द का प्रयोग कर रही हूँ जो देखने, पढ़ने, सुनने, आदि में कठोर शब्द है बहुत से लोग कहेंगे मुझे दिव्यांग शब्द का प्रयोग करना चाहिए था. लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया क्यूंकि सच हमेशा कड़वा एवं कठोर ही होता हैं. मेरे विचार से जिन लोगों का केवल कोई अंग खराब हो अथवा किसी हादसे में खराब हो गया हो या कट गया हो केवल उनको दिव्यांग कहना सही हो सकता है. लेकिन जो लोग मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से ठीक ना हों उन्हें विकलांग कहना ही सही होगा, ऐसा मेरा विचार है. हाँ तो मैं यह कह रही थी कि ऐसी विकलांगता कोई लिंग देखकर नहीं आती. फिर भी जिन घरों में दुर्भाग्य से ऐसा कोई व्यक्ति होता है ख़ासकर कोई वयस्क 'महिला या पुरुष' उस घर के सदस्य उस व्यक्ति से परेशान हो ही जाते हैं.
शारीरिक विकलांगता किसी का मुंह नहीं देखती ना ही किसी में कोई लिंग भेद ही करती है. यहाँ मैं विकलांगता शब्द का प्रयोग कर रही हूँ जो देखने, पढ़ने, सुनने, आदि में कठोर शब्द है बहुत से लोग कहेंगे ...Read Moreदिव्यांग शब्द का प्रयोग करना चाहिए था. लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया क्यूंकि सच हमेशा कड़वा एवं कठोर ही होता हैं. मेरे विचार से जिन लोगों का केवल कोई अंग खराब हो अथवा किसी हादसे में खराब हो गया हो या कट गया हो केवल उनको दिव्यांग कहना सही हो सकता है. लेकिन जो लोग मानसिक और शारीरिक दोनों ही
रेणु ने कहा पर माँ ...! पर वर कुछ नहीं, रख ले. वहाँ तू अकेली जा रही हैं, 'सुना है परदेस में बिना पैसे के कोई पानी भी नहीं पूछता' तो जरूरत तो पड़ेगी ना बेटा. मैंने जोड़कर रखे ...Read Moreदेख आज काम आगए। कहकर लक्ष्मी मुसकुरा दी ताकि रेणु को हिम्मत मिल सके. रेणु गाँव से बस में बैठकर मुंबई आ पहुंची. डरी डरी सी, सहमी सहमी सी रेणु, अपना झोला अपने सीने से लगाए जब वहाँ उतरी तो उसे ऐसा लगा मानो वह कोई दूसरी ही दुनिया में आ पहुंची है. उसने पहले रेडियो पर सुन रखा था
तभी एक महिला ने आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उससे पूछा, क्या हुआ तुम रो क्यों रही हो ? रेणु ने अश्रु भरी आँखों से उसकी ओर देखा वह हाथ में बहुत से फल लिए खड़ी थी. ...Read Moreने बिना कुछ मुंह से कहे सुबकते हुए अपने हाथों से फल की तरफ इशारा किया. तो उस औरत ने उसका इशारा समझते हुए उससे पूछा ओह...! तुम्हें भूख लगी है शायद, लो यह फल लेलो. उसने दो तीन केले रेणु की तरफ बढ़ा दिये. रेणु उसे जन्मो से भूखे इंसान की तरह खाने लगी दो -तीन केले खाने के
भाग- 4 हाँ खैर यह बात तो मैं भी बखूबी समझता हूँ. ऐसा है तो फिलहाल मैं आपको इतना नहीं दे पाऊँगा. जी कोई बात नहीं, रेणु को फिर पैसे लौटाने की चिंता सताने लगी.. इस महीने तो ...Read Moreएडवांस लेकर किसी तरह अपने गाँव में अपने माँ बाबा को पैसे भेज दिये थे. लेकिन यदि उसे जल्द ही कोई काम ना मिला तो अगले महीने क्या होगा, उसकी माँ ऐसों की राह देख रही होगी और पैसे नहीं पहुंचेंगे तो बाबा को भी कितनी तकलीफ होगी, कितना दुख होगा. वह बेचारे तो अपना दुख चाहकर भी किसी से
भाग -5 भूखा शब्द सुनते ही रेणु को वो रात याद आ गयी जब वो पहली बार मुंबई आयी थी और कैसे उसका समान और पैसे सब चोरी हो गए थे और कितने दिनों तक उसे भूखा रहना पड़ा ...Read Moreइतनी भूख तो उसने कभी अपने गाँव में भी नहीं देखी थी. फिर कैसे उसे काशी मिली, उस दिन सच में ईश्वर का रूप बनकर काशी उसके जीवन में आयी थी. उसे अचानक अपनी सारी आपबीती याद आ गयी और उसकी आँखों में नमी छा गयी. फिर उसने अपनी आँखों को दुपट्टे से हल्का पौंछते हुए कहा 'चलो अब मैं