"एक पैगाम मेरी सहेलियों के नाम"
सच में यार क्या दिन थे वो..
क्यों हम बडे़ हो गए?
सपने बडे़ हो गए
ख्वाहिशें गगनचुम्बी हो गई.
हमारे रंग रूप बदल गए
बस कभी न बदली हमारी दोस्ती
न ही बदल सका वो बचपन
न भूल सके हम इक्लेयर का स्वाद
सूरजचाट वाले चाट का स्वाद
हमें बखूबी याद है.. #डॉरीना

-डॉ अनामिकासिन्हा

Hindi Shayri by डॉ अनामिका : 111577039

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