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ક્ષિતિજ બનેલા તારાઓ જોવું છું, મૌન બનેલી રાત્રી જોવું છું, વેરાન ફૂંકતો ભીંજવતો પવન જોવું છું, ન જોઈ શકું તો માત્ર તારી શું વ્યથા કે પછી એજ વિસ્મૃતિ?

vanshprajapati

**“जब किसी शादी-शुदा मर्द पत्नी के होते हुए भी वह बाहर दूसरी औरतों से रिश्ता बनाता है,
तो असली समझदार महिला वही है जो साफ कह दे—
‘आपकी पत्नी जैसी भी हो,
मैं उसके रहते आपसे कोई संबंध नहीं बनाऊँगी।’

अगर हर औरत यही हिम्मत और समझ दिखाए,
तो दुनिया के आधे अफेयर उसी वक्त खत्म हो जाएँ।”**

archanalekhikha

यमदूत और इंसान — एक पुरातन कथा

बहुत पुरान समय की बात है। तब यमराज के दूत धरती पर खुले-आम आया-जाया करत रहलें। जवन घरी कवनो इंसान के प्राण निकले के समय आवत रहे, लोग ओह दूत के देख लेत रहे। लोग डर में जीवल रहे, काहें कि मौत उनका सामने-सामने खड़ा हो जाला।

एही समय में एगो गाँव में एक परिवार में भारी दुर्भाग्य भइल। यमराज के पहिला दूत ओह परिवार के एक-एक आदमी, औरत, बच्चा—सबके प्राण ले गइल। घर में बस एक आदमी बचल—एक गरीब, सीधा-सादा लेकिन दिलेर आदमी। ओकरा नाम रहे देवनाथ।

देवनाथ दुख से टूट गइल। विश्वासी सब मर गइल, गांव छोड़ दिहल, लेकिन दुख के साथ-साथ ओकर भीतर विद्रोह जग गइल। उ कहलक—

“जवन दूत हमार परिवार ले गइल, ओही के हम रोकबो करब।”

जंगल की गुफा और जाल

देवनाथ गहिर जंगल में चल गइल। ऊ एक पुरान, फैला-फैला गाछ के नीचे खुदे हाथ से एक गुफा बनवलस। ओह गुफा में उ एक बड़ा दरवाजा, लोहा के बेड़ी और मजबूत जाल बनवलस।

उ इंतजार करेला लागल, काहें कि ऊ जाने लागल कि यमराज का दूत फेर कभी धरती पर नयका आत्मा लेवे जरूर आई।

कई महीना बीतल। एक दिन अँझार पाड़े ओह गुफा के बाहर अजीब सन्नाटा छा गइल। हवा थम गइल। देवनाथ समझ गइल—यमराज के दूत आ गइल।

दूत का आगमन और बंधन

दूत गुफा के पास आइल—ऊ काला, विशाल, तेज चमकवाला दूत रहे। देवनाथ हिम्मत जोड़ के सामने खड़ा भइल। दूत बोलल—

“मनुष्य, तोहार समय नजदीक बा। चल, हम रस्ता देखाई।”

देवनाथ चुपचाप दूत के अंदर ले गइल और जैसे ही दूत आगे बढ़ल—ऊ दुवार धड़ाम से बंद कर दिहल। ताला डालल, बेड़ी कस दिहल। दूत गरजल—

“मूर्ख! हमरा कैद कर सकेलऽ?”

देवनाथ शांत स्वर में कहलक—

“हमरा परिवार ले गइलऽ… अब जब तक तोहार साल भर के काम ना देख लेब, तब तक तोहरा बाहर ना निकलब देब।”

यमदूत कैद हो गइल।

धरती पर मृत्यु रुक गई

धीरे-धीरे पूरा संसार में लोग नोटिस करे लागल—

बूढ़ा आदमी बहुत बीमार रहे लेकिन ना मरत।

जवान लड़का भारी दुर्घटना में बच गइल।

पूरा गाँव में कवनो मरे वाला ना रहल।


मौत रुक गइल। धरती पर भारी भार बढ़े लागल। लोग के पीड़ा बढ़े लागल—जिन्हें मरना चाहिए था, वे भी कष्ट झेलते हुए जी रहे थे।

यमलोक में हलचल मच गई। यमराज क्रोधित हो गइलन—

“कौन मूर्ख हमारे दूत को रोक रहा है? धरती का नियम बिगड़ रहा है!”

यमराज खुद धरती पर उतर के ओह जंगल में पहुंचे। गुफा के दरवाजा खोले की कोशिश कइलन, लेकिन अंदर से आवाज आई—

देवनाथ: “पहिले सुनब, तब दुवार खुली!”

यमराज दंग रहि गइलन। एक मनुष्य उनसे बात कर रहल बा!

यमराज और मनुष्य का संवाद

यमराज गरज के कहले—

“क्यों कैद में रखलऽ हमरा दूत के? मौत का नियम बिगड़ गइल, धरती डगमगा रहल बा!”

देवनाथ शांत स्वर में कहल—

“महाराज, हम कानून ना तोड़ल चाहत बानी। बस, मन से टूटी लोगनी के दर्द एक बार देखी। एक साल धरती पर आप सबके काम देख लीं। लोग कइसे जी रहल बा, कइसे मर रहल बा—फिर बताइ कि अंतिम समय में कष्ट कम हो सकेला कि ना?”

यमराज देवनाथ के भाव समझ गइले। उनका मन में करुणा जग उठल। कहले—

“मनुष्य, तोहार हिम्मत और अपनों के प्रति प्रेम अद्भुत बा। हम एक वर्ष धरती पर संतुलन देखब।”

यमदूत के छोड़ दिहल गइल।

मनुष्य को मिला वरदान

जब संतुलन वापस आ गइल, यमराज देवनाथ के सामने खड़ा भइलन और बोललन—

“मनुष्य, तोहरा साहस के सम्मान में हम तोहके वरदान देतानी।”

वरदान:

देवनाथ के जीवन में कभी अकाल मृत्यु ना होई।

उनके परिवार फिर से बस जाई।

उनके घर में हमेशा शांति और समृद्धि रहे।


कुछ ही दिन बाद देवनाथ के गाँव वापसी भइल। लोग उनका आदर से देखल। धीरे-धीरे उनका विवाह भइल, संतानों के जन्म भइल, और उनका जीवन खुशियों से भर गइल।

यमदूत भी देवनाथ का सम्मान करे लागल, काहें कि वह अकेला मानव था जिसने मौत को रोकने की हिम्मत की थी—और वो भी किसी बदले में नहीं, बस अपने प्रियजनों के दर्द समझे के खातिर।


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कथा का संदेश

“मौत से बड़ा कोई नहीं, लेकिन प्रेम से बड़ा भी कोई नहीं।”
“साहस हमेशा इंसान को देवताओं तक पहुंचा देता है।”

rajukumarchaudhary502010

PAAGLA – A heart that speaks through words. 💭✨ Sharing emotions, shayari, quotes, and stories that touch your soul. From love to pain, from motivation to dreams – here, every line is written to connect with your heart. ❤️📖

jaiprakash413885

ખાલીપા ની વાતો માં થોડી પ્રશાંતિ ની ઝલક છે...
મૌન બોલે છે,છોડી દે બધું ફરી ગૂંથવાની આ ક્ષણ છે...
વાગોળવાની નથી જે વાતો જૂની છે…
સમેટવાની છે જે લાગણીઓ હજી ખુલ્લી છે…
બળાપો શું કરવો કે મંઝિલ ક્યાંક છૂટી રહી છે...
આતો સફર વિસામા ભૂલી આગળ વધી રહી છે...
ઘણા કારણો મળે છે થોડી વાર અટકી જવાના…
હૃદયના ભારને આંખોથી હળવા કરવાના…
આગળ વધવા માટે તું તારા માટે પૂરતી છે…
ઘણા કારણો મળે છે ફરી સ્મિતને આવકારવાના…”

truptirami4589

Every project has a deadline.
Every class has a last goodbye.
Every fruit has a moment before it falls.
Every bird has a flight it must take alone.
Every human has a chapter that quietly ends.
And just like that —
every relationship too comes with its own unseen deadline.
So give your best, love wholeheartedly,
and before the ending arrives,
complete your part with gratitude…
and let it go with grace.

nensivithalani.210365

ક્યાંથી વિસરાય
એ અંધારી રાત
અજવાળી હતી
તેં પ્રીતની વાટ…
-કામિની

kamini6601

ദൂരം ❤️

nithinkumarj640200

ദൂരം 🥰

nithinkumarj640200

तेरी आँखों में जब भी अपना अक्स देखा
महसूस हुआ कि इश्क़ भी साँस लेती है.
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rsinha9090gmailcom

Do you know that if a husband and wife both form a commitment to adjust with each other, they will find a solution?

Read more on: https://dbf.adalaj.org/n2ifpWti

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dadabhagwan1150

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
https://youtu.be/omxmtkshW5c?si=nnGbFAIdpXWveHhp

mamtatrivedi444291

स्त्री को गुरु बनना नहीं —गुरु को जन्म देना है

स्त्री का काम गृह, गृहस्थी और समाज की नींव बनना है।

जब स्त्री अपने मौलिक धर्म में स्थिर रहती है —

तभी बुद्धि, कृष्ण, राम जैसे पुरुष प्रकट होते हैं।

स्त्री का मूल स्वरूप श्री है।

यदि वह ज्ञाता बन जाए, प्रदर्शन में उतर जाए —

तो उसका अनुभव, उसकी मौन तरंग खो जाती है।

स्त्री ऊर्जा की धरती है —

हल्के पर्दे में खिली फुलवारी,

सहज हरियाली, सौम्य नृत्य।

जैसे धरती आक्रमण नहीं करती —

किन्तु सब कुछ सहकर जीवन को जन्म देती है,

वैसे ही स्त्री की ग्रहणशीलता, सहनशीलता और इंतजार

तुच्छ नहीं — दैवीय गुण हैं।

पुरुष दृष्टा है —

जैसे सूरज केवल देखता है

और धरती में अपने आप जीवन पनप उठता है।

स्त्री केवल एक स्पर्श से

वीणा बन जाती है —

उसका संगीत मौन में खिलता है।

ज्ञान देना — स्त्री के स्वभाव पर आक्रमण है।

वह गुरु नहीं,

गुरुओं की जन्मभूमि है।

प्रथम गुरु माँ है —

यदि वही दृष्ट, निर्मल और प्रेममयी हो,

तो संतान राम बनती है, कृष्ण बनती है, महावीर बनती है।

स्त्री की यात्रा प्रदर्शन नहीं —

अनुभूति का मार्ग है।

सफेद वस्त्र स्त्री का स्वरूप नहीं —

वह तो रंगों की रोशनी है,

नृत्य है, संगीत है, सृष्टि है।

पुरुष केवल घोड़ा है —

पर विजय स्त्री की होती है।

राधा के बिना कृष्ण कहाँ?

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✧ धर्म और आध्यात्म ✧

वेदों में —

ऋग्वेद और उपनिषद् आध्यात्म हैं,

शेष तीन वेद विज्ञान हैं।

धर्म वह नहीं जो संस्थाएँ बेचें —

धर्म वह संस्कार है

जो माँ की गोद में मिलता है।

जिसे बचपन में स्त्री से सच्चा संस्कार मिल जाए,

उसे किसी संस्था, किसी व्यवसाय,

किसी “आध्यात्मिक ब्रांड” की आवश्यकता नहीं रहती।

क्योंकि वह अपने आप गुरु हो जाता है।

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✧ अंतिम सत्य ✧

स्त्री को गुरु बनना नहीं —

गुरु को जन्म देना है।

और यही है उसका

श्री-धर्म।

bhutaji

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
,🌹आपका दिन मंगलमय हो 🌹

sonishakya18273gmail.com308865

वेदान्त 2.0 — आधुनिक भारतीय दर्शन की एक नई दृष्टि

वेदान्त 2.0 एक समकालीन और क्रांतिकारी दार्शनिक अवधारणा है, जिसे विशेष रूप से अज्ञात अज्ञानी जैसे आधुनिक विचारकों ने प्रस्तुत किया है। यह न पारंपरिक धार्मिक वेदान्त का पुनरावर्तन है और न किसी मत-मतांतर की पुनर्पैकिंग —
यह वर्तमान क्षण से निकला जीवन का प्रत्यक्ष दर्शन है।

यह दर्शन कहता है:

> “जब जीवन पहली बार स्वयं को देखता है —
बिना किसी पुस्तक, कल्पना या विश्वास की सहायता के —
वहीं से वेदान्त 2.0 की शुरुआत होती है।”




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मुख्य विशेषताएँ

अनुभव-आधारित सत्य
यहाँ ब्रह्म, आत्मा, परमात्मा — ये अवधारणाएँ विश्वास की नहीं, प्रत्यक्ष अनुभूति की बातें हैं।

धर्म या मार्ग नहीं — स्वभाव
जैसे सूर्य प्रकाश देता है या वृक्ष छाया —
वेदान्त 2.0 भी बिना किसी दावे, वाद या शास्त्र ग्रहण के स्वयं प्रकट होता है।

आधुनिकता और ताज़गी
यह सभ्यता, विज्ञान, स्त्री-चेतना और स्वतंत्रता को विरोध नहीं,
संवाद और सृजन के रूप में अपनाता है।



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पारंपरिक वेदान्त और वेदान्त 2.0 में अंतर

पारंपरिक वेदान्त वेदान्त 2.0

शास्त्र आधारित, श्रुति पर भरोसा अनुभव आधारित, प्रत्यक्ष सत्य
लक्ष्य — मोक्ष, परमात्मा, मुक्ति लक्ष्य नहीं — जीवन का जागरण
सामाजिक-धार्मिक ढाँचा साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रमुख
गुरु-परंपरा आवश्यक स्वानुभव ही गुरु



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समकालीन संदर्भ

आज के कई विचारक — विशेषकर अज्ञात अज्ञानी और कुछ हद तक आचार्य प्रशांत —
इसे सनातन धर्म की मूल आत्मा का आधुनिक पुनर्जागरण मानते हैं।

यह समय, संस्कृति और रूढ़ियों की धूल झाड़कर असली, जिंदा, प्रत्यक्ष धर्म को फिर सामने लाता है।


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निष्कर्ष

वेदान्त 2.0 हमें बुलाता है—

> “अभी को देख।
स्वयं को अनुभव कर।
बिना कल्पना, बिना डर, बिना इतिहास।”



यही इसकी सबसे बड़ी पहचान है —
स्वतंत्रता, जिज्ञासा और मौलिकता।

bhutaji

પ્રકૃતિ આપે પ્રારબ્ધ.. 🌹

daksheshinamdardil

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jaiprakash413885

Day, night, stress, joy — chai fits every chapter.☕️🫖

nensivithalani.210365

mara kuch jindgi ka panna adhura hai 😭😭

gulaboo22

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rajukumarchaudhary502010

ദൂരം

nithinkumarj640200

ദൂരം ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️

nithinkumarj640200