कुछ एहसास ऐसे भी होते हैं, जिनका कोई नाम नहीं होता
हर दर्द को आँसू नहीं मिलते,
हर खुशी को मुस्कान नहीं मिलती,
और हर एहसास को शब्द नहीं मिलते।
कुछ भावनाएँ बस मन के किसी कोने में चुपचाप बैठ जाती हैं—
ना शिकायत करती हैं,
ना सवाल पूछती हैं,
बस मौजूद रहती हैं।
हम अक्सर उन्हीं बातों को सच मान लेते हैं, जिन्हें ज़ोर से कहा गया हो।
लेकिन ज़िंदगी का सबसे गहरा सच अक्सर वही होता है,
जो कभी कहा ही नहीं जाता।
कभी महसूस किया है—
हँसते हुए अचानक मन का भारी हो जाना?
सबके बीच होते हुए भी भीतर का अकेलापन?
किसी की मौजूदगी में भी उसका न होना?
ये वही एहसास हैं,
जिनका कोई नाम नहीं,
पर वजूद पूरा है।
हम इन्हें समझाने की कोशिश करते हैं,
तो लोग सलाह देने लगते हैं।
हम इन्हें छुपाने की कोशिश करते हैं,
तो ये और गहरे हो जाते हैं।
शायद ज़रूरत इन्हें बदलने की नहीं,
स्वीकार करने की है।
क्योंकि हर अधूरी बात अधूरापन नहीं होती,
हर खामोशी खाली नहीं होती,
और हर टूटन हार नहीं होती।
कुछ टूटना इसलिए ज़रूरी होता है
ताकि हम जान सकें—
हम सच में क्या हैं,
और क्या नहीं।
जिस दिन हम अपने अनाम एहसासों से डरना छोड़ देंगे,
उसी दिन ज़िंदगी हमें थोड़ी और अपनी लगेगी।
क्योंकि कभी-कभी
खुद को समझ लेने के लिए
दुनिया का समझना ज़रूरी नहीं होता।