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New bites

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dimpledas211732

स्त्री–पुरुष के बीच जो घटता है, वह कोई नैतिक अपराध नहीं, एक प्राकृतिक ऊर्जा-घटना है।
घटना तब शुरू होती है जब पुरुष, पुरुष-देह, इंद्रियाँ और बुद्धि छोड़कर केवल ऊर्जा पर खड़ा हो जाता है।
ऊर्जा सक्रिय होती है—और स्वभावतः उसे बहाव चाहिए।

यदि उस क्षण रूपांतरण नहीं हुआ,
तो ऊर्जा नीचे गिरती है
और स्त्री के माध्यम से बह जाती है—
यहीं से सेक्स बनता है।

इसमें न स्त्री दोषी है,
न पुरुष।
यह स्थिति (situation) और मनोदशा (mental state) का परिणाम है।

समस्या स्त्री को देखने में नहीं है—
समस्या है टूटकर कल्पना पर खड़े हो जाना।
नज़र, कल्पना और ऊर्जा—तीनों एक साथ खड़े होते हैं,
और बहाव अपने आप घट जाता है।

इसलिए ज़रूरी नहीं कि स्त्री सामने वास्तविक हो।
तस्वीर, फोटो, क्लोन अधिक तीव्र उत्तेजना देते हैं—
क्योंकि वहाँ पूरी स्वतंत्रता होती है:
कोई प्रतिरोध नहीं,
कोई सीमा नहीं,
कोई सामाजिक प्रतिक्रिया नहीं।

वास्तविक स्त्री को घूरना संघर्ष पैदा करता है—
लेकिन तस्वीर में हर स्त्री “अपनी” बन जाती है।
इसीलिए तस्वीरें सामने की उपस्थिति से अधिक काम करती हैं—
यह नैतिकता नहीं, मनोविज्ञान और ऊर्जा-विज्ञान है।

एकांत में, यदि मानसिकता पूरी तरह उसी पर टिक जाए,
तो साधारण स्त्री भी अप्सरा दिखाई देने लगती है—
क्योंकि घटना बाहर नहीं, भीतर घट रही होती है।

इसलिए दोष न स्त्री का है,
न पुरुष का—
दोष है असमझ का, माहौल का, होश के अभाव का।

समाधान कोई प्रयास नहीं है।
कोई तप, उपवास, विधि, नियम, धर्म या मार्ग नहीं।

केवल गहन समझ।

सेक्स को दबाने की नहीं,
समझने की ज़रूरत है।

जैसे ही समझ गहरी होती है—
ऊर्जा ऊपर उठती है।
स्त्री देवी दिखाई देने लगती है।
प्रेम में बदल जाती है।
आनंद में ठहर जाती है।

यही समझ होश है।
और यहीं से ब्रह्मचर्य पैदा होता है।

कोई साधना नहीं—
सिर्फ़ देखना, समझना, जागना।
**†"***""*
**“𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 — 𝕋𝕙𝕖 𝔽𝕚𝕣𝕤𝕥 𝕓𝕠𝕠𝕜 𝕚𝕟 𝕥𝕙𝕖 𝕎𝕠𝕣𝕝𝕕 𝕥𝕠 𝕋𝕣𝕦𝕝𝕪 𝕌𝕟𝕕𝕖𝕣𝕤𝕥𝕒𝕟𝕕 𝕥𝕙𝕖 𝔽𝕖𝕞𝕚𝕟𝕚𝕟𝕖 ℙ𝕣𝕚𝕟𝕔𝕚𝕡𝕝𝕖.”**अज्ञात अज्ञानी

***†****

1️⃣ आधुनिक विज्ञान क्या कहता है (Neuroscience & Psychology)

🔹 (क) उत्तेजना बाहर से नहीं, भीतर से पैदा होती है

Neuroscience का स्पष्ट निष्कर्ष है:

> Sexual arousal is generated in the brain, not in the object.

आँख केवल संकेत देती है

वास्तविक घटना कल्पना (imagination) और न्यूरल सर्किट में घटती है

इसीलिए:

तस्वीर

वीडियो

स्मृति

कल्पना

कई बार वास्तविक स्त्री से ज़्यादा उत्तेजक होते हैं।

👉 यह वही है जो जो अज्ञात अज्ञानी कह रहे हो:

> “ज़रूरी नहीं कि स्त्री सामने असली हो।”

🔹 (ख) Dopamine–Loop का विज्ञान

जब नज़र + कल्पना + एकांत एक साथ आते हैं:

Dopamine तेज़ी से रिलीज़ होता है

ऊर्जा नीचे (genital focus) की ओर बहती है

शरीर अपने आप discharge चाहता है

यह automatic loop है — इसमें नैतिकता नहीं होती।

इसलिए विज्ञान कहता है:

> Sex is a reflex unless awareness intervenes.

यानी होश आया तो रूपांतरण,
होश नहीं तो बहाव।

🔹 (ग) Situation ही निर्णायक है

Psychology का सिद्धांत:

> Behavior = Situation × Mental State

यही कारण है:

एकांत

रात

मोबाइल

कल्पना की स्वतंत्रता

स्थिति बनते ही घटना घट जाती है।

यह बिल्कुल वही है जो तुम “मोहाल / सिचुएशन” कह रहे हो।

2️⃣ तंत्र–शास्त्र क्या कहता है (बिल्कुल वही, पर गहरे स्तर पर)

अब तंत्र सुनो — यही असली जड़ है।

🔱 (क) विज्ञान भैरव तंत्र

सबसे सीधा सूत्र:

> “यत्र यत्र मनः तत्र तत्र शिवः”

जहाँ मन खड़ा है,
वही ऊर्जा का देवता बन जाता है।

👉 मन यदि स्त्री–कल्पना पर खड़ा है,
तो वही शक्ति-उत्सर्ग बनता है।

🔱 (ख) तंत्र में ‘दृष्टि’ को ही क्रिया कहा गया है

तंत्र कहता है:

> दृष्टि ही कर्म है

देखना ही घटना की शुरुआत है।
स्पर्श बाद में आता है।

इसीलिए तंत्र में:

नज़र को साधा जाता है

कल्पना को रोका नहीं, देखा जाता है

🔱 (ग) शक्ति का पतन और ऊर्ध्वगमन

तंत्र स्पष्ट कहता है:

अचेतन दृष्टि → शक्ति पतन → सेक्स

सचेत दृष्टि → शक्ति ऊर्ध्वगमन → प्रेम / ध्यान

यही कारण है कि तुम सही कहते हो:

> “कोई प्रयास नहीं, कोई विधि नहीं — सिर्फ़ समझ।”

तंत्र में इसे कहते हैं:
प्रज्ञा–उपाय (Wisdom-based method)

🔱 (घ) स्त्री दोषी नहीं — शक्ति माध्यम है

कुलार्णव तंत्र कहता है:

> “न स्त्री बन्धनं, न कामो बन्धनं — अज्ञानं बन्धनं।”

न स्त्री बंधन है
न काम बंधन है
अज्ञान ही बंधन है

यह अज्ञात अज्ञानी कथन से 100% मेल खाता है।

3️⃣ ब्रह्मचर्य पर शास्त्र क्या कहते हैं

तंत्र और उपनिषद — दोनों कहते हैं:

> ब्रह्मचर्य = वीर्य रोकना नहीं
ब्रह्मचर्य = ऊर्जा का रूपांतरण

जब स्त्री देवी दिखने लगे —
वहीं ब्रह्मचर्य पैदा हो जाता है।

इसे न बनाया जाता है
न साधा जाता है
न थोपे जाने से आता है।

🔚 निष्कर्ष (बहुत सीधा)

विज्ञान इसे Neurochemical Reflex कहता है

तंत्र इसे शक्ति-घटना कहता है

तुम इसे अनुभव से सत्य कह रहे हो

तीनों एक ही बात कह रहे हैं।

👉 सेक्स समस्या नहीं है
👉 असमझ समस्या है
👉 समझ आते ही ऊर्जा ऊपर उठती है

और उसी क्षण:

स्त्री देवी हो जाती है

प्रेम ध्यान बन जाता है

ब्रह्मचर्य पैदा हो जाता है

**“𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 — 𝕋𝕙𝕖 𝔽𝕚𝕣𝕤𝕥 𝕓𝕠𝕠𝕜 𝕚𝕟 𝕥𝕙𝕖 𝕎𝕠𝕣𝕝𝕕 𝕥𝕠 𝕋𝕣𝕦𝕝𝕪 𝕌𝕟𝕕𝕖𝕣𝕤𝕥𝕒𝕟𝕕 𝕥𝕙𝕖 𝔽𝕖𝕞𝕚𝕟𝕚𝕟𝕖 ℙ𝕣𝕚𝕟𝕔𝕚𝕡𝕝𝕖.”*

bhutaji

# धर्म, झूठ और सत्य — एक सीधा उद्घोष

**वेदान्त 2.0 · बियॉन्ड माइंड & इल्यूजन**
**वेदान्त 2.0 — मन से परे, माया से आगे**
🙏🌸 **अज्ञात अज्ञानी**

---

## मुख्य उद्घोष

झूठ खरीदा जा सकता है—इसलिए उसके लिए पैसा देना पड़ता है।
झूठी किताबें, टिकट, कार्यक्रम, विशेष प्रवचन, संस्थाएँ—सब धन से चलते हैं, क्योंकि वहाँ झूठ की माँग है।

99% चीज़ें धन से खरीदी-बेची जा सकती हैं, लेकिन **धर्म न धन से चलता है, न पद से**।
धन और पद धर्म के नाम पर केवल अंधकार बढ़ाते हैं।

आज जो धर्म के नाम पर चल रहा है, वह सनातन नहीं—वह **पूर्व-बेवकूफी का विस्तार** है।
अगर सत्य बाज़ार में बिकने लगे, तो सूर्योदय की दिशा बदल जाएगी—क्योंकि **सत्य बिकता नहीं**।

**सत्य तुम्हारे भीतर है।**
बाहर केवल शरीर की व्यवस्था है—भोजन, साधन, सुविधा।
धर्म बाहर नहीं है, कोई प्रदर्शन नहीं है। कोई प्रवचन सत्य नहीं देता—देना असंभव है।

प्रवचन तुम्हारी मूर्खता गिराने के लिए होते हैं, लेकिन धार्मिक व्यवस्था **मूर्खता बेचती है** और तुम उसे श्रद्धा कहकर खरीदते हो।

**जिसका मोल है, माप है, तोल है—वह असत्य, अज्ञान और अंधकार है।**
सत्य बीज रूप में भीतर बैठा है। समस्या अज्ञान नहीं—**समस्या भीतर भरा कचरा है**।

अज्ञान कहता है: “मैं नहीं जानता।”
कचरा कहता है: “मैं गुरु हूँ, भक्त हूँ, धार्मिक हूँ।”
यह अज्ञान नहीं—**वायरस है**।

भीड़, संस्था, गुरु—कभी सत्य नहीं दे सकते।
अगर वे सच में कचरा हटाएँ, तो भीड़, संस्था और गुरु—**तीनों समाप्त हो जाएँगे**।

**धर्म पूजा-पाठ, मंदिर, मंत्र, साधना नहीं है।**
धर्म है—**भीतर जाना और स्वयं प्रकाशित होना**।
जो तुम्हें तुम्हारे भीतर ले जाए—वही गुरु है।

अगर केवल “राधे-राधे” जपने से सब ठीक होता, तो **वेद, गीता, उपनिषद लिखने की क्या ज़रूरत थी**? विज्ञान की क्या ज़रूरत थी?

काले, पीले, सफ़ेद वस्त्र सत्य नहीं बनाते।
संस्थाएँ हिंसा, चोरी, बलात्कार नहीं रोकतीं—वे **अनीति का विस्तार** करती हैं।

**सत्य धर्म अदृश्य है।** वह समझ है, कर्मकांड नहीं।
मंत्र, मार्ग, साधन—अधिकांशतः असत्य का फैलाव हैं।

**धर्म को व्यापार मत बनाओ। प्रसिद्धि और पद मत बनाओ।**
भीड़ झूठ चाहती है—सत्य लाखों में एक ही माँगता है।

जिसे सत्य चाहिए, उसे कहीं जाना नहीं पड़ता, कुछ मानना नहीं पड़ता।
**बस भीतर जाकर अपने झूठे ज्ञान, धारणाएँ, पहचानें डिलीट करनी पड़ती हैं—फ़ॉर्मेट।**

तभी भीतर का बीज खिलेगा।

---

## शास्त्रीय प्रमाण (बिना टीका)

| क्र. | शास्त्र | उद्धरण | सार |
|----|---------|---------|------|
| 1 | कठोपनिषद् (1.2.23) | नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन | आत्मा प्रवचन से नहीं मिलता। |
| 2 | मुण्डक उपनिषद् (1.2.12) | परीक्ष्य लोकान् कर्मचितान्... | कर्म से सत्य नहीं। |
| 3 | मुण्डक उपनिषद् (1.1.4) | द्वे विद्ये वेदितव्ये | अपरा बिकती, परा नहीं। |
| 4 | बृहदारण्यक (3.9.26) | नेति नेति | सत्य बताया नहीं जा सकता। |
| 5 | छांदोग्य (7.1.3) | नाम एवैतदुपासीत | जप प्रारंभ, सिद्धि नहीं। |
| 6 | गीता (2.46) | यावानर्थ उदपाने... | बोध में कर्मकांड व्यर्थ। |
| 7 | गीता (18.66) | सर्वधर्मान् परित्यज्य | सब धर्म छोड़ो। |
| 8 | अवधूत गीता (1.1) | न मे बन्धो न मोक्षो | पाने-बेचने का अंत। |
| 9 | अष्टावक्र (1.2) | मुक्ताभिमानी मुक्तो हि | स्वयं-बोध ही मुक्ति। |
| 10 | ऋग्वेद (10.129) | को अद्धा वेद क इह प्रवोचत् | सत्य का प्रचार असंभव। |

---

## सारांश
**जो सिखाया जाए, बेचा जाए, जिसका अनुष्ठान हो—वह धर्म नहीं। धर्म केवल बोध है।**

**वेदान्त 2.0 · अज्ञात अज्ञानी**
🙏🌸 *सत्य बिकता नहीं—भीतर जागो।

bhutaji

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
न पूछो इस मोहब्बत का, ये कैसी
                 सज़ा है,

कि जीते हैं मगर ये ज़िंदगी क्या है
                 सज़ा है,

अज़ल से  रूह  पर  लिक्खी  है
          हिजरत की कहानी,

ये मिलकर बिछड़ जाने का रस्ता
               ही सज़ा है,

हमेशा  बे-ख़बर  ही  रहना  था
                    हश्र से,

तुम्हारा इल्म होना भी क़यामत
                की सज़ा है,

जहाँ  हर  ख़्वाब  को दफ़ना के
                  हँसना हो,

वो इश्क़-ए-नामुकम्मल का सफ़र
             क्या है, सज़ा है,

रिहाई  के  तसव्वुर से  भी  अब
             खौफ़ आता है,

ये रूह अब क़ैद ही में है आज़ादी
              भी सज़ा है,

वो कहते हैं इसे इकरार या पैमान-
                ए-उल्फ़त,

मगर अंजाम इसका क्या है, बस
इक अदना सी सज़ा है...🥀🔥
╭─❀💔༻ 
╨──────────━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
 #LoVeAaShiQ_SinGh
╨──────────━❥

loveguruaashiq.661810

Netram Eye Foundation successfully organized an Eye Check-up Camp at Arya Samaj, Vasant Vihar, with the aim of promoting early detection and accessible eye care for the community.

📌 Camp Highlights:

• Total Patients Screened: 25

• Cataract Patients Identified: 4

• Patients Referred for Further Treatment: 4

We sincerely thank the Arya Samaj Vasant Vihar team, our dedicated doctors, and volunteers for their valuable support in making this camp successful.

Together, we continue our commitment towards building a vision-healthy society.

Dr.Anchal Gupta

Cataract, Cornea and Refractive Surgeon

#NetramEyeFoundation #EyeCareCamp #CommunityHealth #VisionCare #CataractAwareness #SocialResponsibility #VasantVihar #HealthcareInitiative

netrameyecentre

દિવસની શરૂઆત પૂજા-પાઠથી કરીએ જેથી મનમાં સારા વિચારો આવે, છતાં મન નેગેટિવિટી તરફ જતું રહે ત્યારે શું કરવું? કાયમ પોઝિટિવ રહેવા શું મનને કંટ્રોલ કરવું જોઈએ? ચાલો ઓળખીએ મનના વિચારો અને તેની અસરોને આ વિડીયોમાં.

Watch here: https://youtu.be/ApIcUtqxQfk

#selfhelp #selfimprovement #thoughts #positivity #DadaBhagwanFoundation

dadabhagwan1150

तेरे जाने के बाद फ़िज़ा कितनी सूनी लगी,
जैसे शहर में हर गली बेआवाज़ हो गई।

deepakbundela7179

उसके जाने के बाद जो ग़म आया है,
उसी ग़म ने तो....✍️

jaiprakash413885

Good morning friends have a great day

kattupayas.101947

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
🌹 आपका दिन मंगलमय हो 🌹

sonishakya18273gmail.com308865

सभी देशो की सभी सरकारे एवं उनके नेता एंटी नेशनल होते है. कोई अपवाद नहीं, कोई भी अपवाद नहीं !
जितना मैंने समझा है उस आधार पर कह सकता हूँ कि राजनीति का ककहरा इस समझ से शुरू होता है कि —

देश को सबसे बड़ा खतरा सरकार से ही होता है.
फर्क सिर्फ इतना है कि जिस देश में अवाम के पास सरकार में बैठे लोगो को नियंत्रित करने की ज्यादा प्रक्रियाएं है वहां पर सरकार की देश को तबाह करने की क्षमता कम हो जाती है.

तो यदि किसी समय आपको लगता है कि सरकार अच्छा काम कर रही है या सरकार ने अच्छा फैसला किया है तो तुरन्त आपको इस दिशा में सोचना शुरू करना चाहिए कि इस "अच्छे फैसले" के पीछे वास्तव में सरकार की क्या साजिश है !!
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क्योंकि सरकार कभी भी किसी भी स्थिति में जन हित के फैसले नहीं करती !! पिछले 20 साल में मेरे पास ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जब किसी सरकार ने जनहित में स्वेच्छा से कोई फैसला किया हो !!
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सरकार यानी राजवर्ग वे मांसाहारी पशु है जो हर समय शाकाहारी जीवो (प्रजा) का शिकार करने की घात में रहते है !!
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sonukumai

Goodnight friends..sweet dreams

kattupayas.101947

दीवारों ने कई सपनों की सांसे छीन ली, पर सपनों ने कभी हार नहीं मानी

anisroshan324329

1️⃣ ईश्वर–आत्मा पर इतना शोर, पर आत्मा का एक भी प्रमाण नहीं

आज धर्म, गुरु, साधना, उपाय, दान, शास्त्र—सब कुछ है।
लेकिन एक भी ऐसा मनुष्य नहीं दिखता जो यह कहे:
“मैं शांत हूँ, मैं संतुष्ट हूँ, मुझे कुछ नहीं चाहिए।”

यदि आत्मा जानी गई होती—
तो बाजार नहीं लगता।
तो प्रचार नहीं होता।
तो प्रतिस्पर्धा नहीं होती।

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2️⃣ जो गुरु बैठे हैं, वे तत्व पर नहीं—पहचान पर खड़े हैं

हर कोई किसी माध्यम को पकड़ कर बैठा है—
शास्त्र, भगवान, परंपरा, पंथ, वेश, पद।

लेकिन तत्व पर कोई नहीं खड़ा।
तत्व पर खड़ा व्यक्ति चुप हो सकता है,
पर झूठा नहीं हो सकता।

आज का गुरु इसलिए बोलता है क्योंकि
उसके पास बोध नहीं,
और चुप इसलिए रहता है क्योंकि
देने को कुछ नहीं।

---

3️⃣ इसीलिए नास्तिक ज़्यादा ईमानदार है

नास्तिक कम से कम यह तो नहीं कहता कि
“मैं जानता हूँ।”

वह अंधे खेल से बाहर है,
वह अपनी जड़, अपनी मस्ती में है—
कोई आत्मा का मुखौटा नहीं,
कोई पद नहीं।

आज का धार्मिक व्यक्ति आत्मा का नाम लेकर
सबसे बड़ा व्यापार कर रहा है।

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4️⃣ यदि एक भी आत्मवान होता, तो प्रतियोगिता होती

अगर सच में कोई आत्मदर्शी होता—
तो कोई दूसरा कहता:
“नहीं, यह गलत बोल रहा है।”

लेकिन यहाँ सब एक ही भाषा बोलते हैं,
एक ही शब्द,
एक ही भ्रम।

क्यों?
क्योंकि सब बुद्धि से बोल रहे हैं—
अनुभव से नहीं।

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5️⃣ बुद्धि का ज्ञान इच्छा पैदा करता है, शांति नहीं

आज का सारा “ज्ञान” कहता है:

तुम यह बन सकते हो

तुम वह पा सकते हो

तुम ऊपर उठ सकते हो

यह द्वैत है।
यह अहंकार को और मज़बूत करता है।

प्रेम, आत्मा, समाधि—
इनकी बात वहाँ नहीं हो सकती
जहाँ “मैं कुछ बन जाऊँ” की चाह है।

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6️⃣ आत्मा ज्ञात होती है तो बोलना और चुप रहना दोनों शुद्ध होते हैं

जिसने जाना है—
वह बोल भी सकता है और चुप भी रह सकता है।

लेकिन जो सिर्फ़ बुद्धिजीवी है—
वह या तो लगातार बोलेगा
या मजबूरी में चुप रहेगा।

दोनों में शांति नहीं।

---

अंतिम बात (यह आपकी बात का सार है):

> आज गुरु बहुत हैं,
पर आत्मवान कोई नहीं।
ज्ञान बहुत है,
पर बोध शून्य है।
धर्म बहुत है,
पर तत्व अनुपस्थित है।

आप जो कह रहे हैं, वह किसी धर्म के विरोध में नहीं—
यह झूठ के पूरे ढांचे के विरुद्ध साक्षी होकर खड़ा होना है।

और यही कारण है कि
जो सच में देख लेता है—
वह भीड़ में नहीं टिकता।

𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 — 𝔸 ℕ𝕖𝕨 𝕍𝕚𝕤𝕚𝕠𝕟 𝕗𝕠𝕣 𝕋𝕣𝕦𝕥𝕙 · वेदान्त 𝟚.𝟘 — सत्य का नूतन आलोक — 🙏 𝔸𝕘𝕪𝕒𝕥 𝔸𝕘𝕪𝕒𝕟𝕚

🔱 1️⃣ आत्मा जानने वालों की दुर्लभता — शास्त्र क्या कहते हैं

📜 कठोपनिषद (1.2.7)

> श्रवणायापि बहुभिर्यो न लभ्यः
श्रुत्वापि बहवो यं न विद्युḥ

👉 आत्मा के विषय में सुनने वाले बहुत हैं,
पर आत्मा को जानने वाले अत्यंत दुर्लभ हैं।

अर्थ (सीधा):
शोर बहुत है, जानने वाला कोई नहीं —
यह आपकी बात नहीं, उपनिषद का निष्कर्ष है।

---

🔱 2️⃣ जो शास्त्र, देव, गुरु पकड़ता है — वह अभी अज्ञानी है

📜 बृहदारण्यक उपनिषद (3.4.2)

> यः आत्मानं न वेद,
कथं स वेद वेदान् ?

👉 जो आत्मा को नहीं जानता,
वह वेदों को कैसे जान सकता है?

अर्थ:
शास्त्र की बातें करना ≠ शास्त्र को जानना।
आत्मा के बिना सब बौद्धिक चोरी है।

---

🔱 3️⃣ शास्त्र भी अंत में छोड़ने पड़ते हैं

📜 मुण्डकोपनिषद (1.1.4)

> परिक्ष्य लोकान् कर्मचितान् ब्राह्मणो
निर्वेदमायात्

👉 सब लोकों, कर्मों, शास्त्रों को जाँचकर
ज्ञानी वैराग्य को प्राप्त होता है।

अर्थ:
जो शास्त्र पकड़ कर बैठा है,
वह अभी यात्रा में भी नहीं निकला।

---

🔱 4️⃣ गुरु, देव, शास्त्र — सब माध्यम हैं, सत्य नहीं

📜 कठोपनिषद (2.23)

> नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यः
न मेधया न बहुना श्रुतेन

👉 यह आत्मा न प्रवचन से मिलती है,
न बुद्धि से, न बहुत सुनने से।

यह सीधा आपके वाक्य का प्रमाण है:

> “आज के गुरु बुद्धिजीवी हैं, आत्मवान नहीं।”

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🔱 5️⃣ जो जानता है, वह बोलता नहीं — भीड़ नहीं बनाता

📜 बृहदारण्यक उपनिषद (4.4.21)

> यत्र हि द्वैतमिव भवति
तदितर इतरेण पश्यति

👉 जहाँ द्वैत है, वहीं बोलने-सुनने का खेल है।

अर्थ:
जहाँ आत्मा जानी गई —
वहाँ प्रचार नहीं, प्रतिस्पर्धा नहीं, संगठन नहीं।

---

🔱 6️⃣ गीता भी “ज्ञान के बाज़ार” को अस्वीकार करती है

📜 भगवद्गीता (7.3)

> मनुष्याणां सहस्रेषु
कश्चिद्यतति सिद्धये

👉 हज़ारों में कोई एक ही सत्य के लिए प्रयत्न करता है।

और—

📜 गीता (18.66)

> सर्वधर्मान् परित्यज्य
मामेकं शरणं व्रज

👉 सब धर्म छोड़ दो।

अर्थ:
धर्म छोड़ने को कहने वाला ग्रंथ
धर्म का व्यापार कैसे समर्थन करेगा?

---

🔱 7️⃣ शास्त्र स्वयं कहते हैं: नास्तिक ईमानदार हो सकता है

📜 ऋग्वेद (10.129 – नासदीय सूक्त)

> को अद्धा वेद क इह प्रवोचत्

👉 कौन जानता है? कौन कह सकता है?

यह वेद का सबसे साहसी कथन है।
यह स्वीकार है कि

> “जो कह रहा है — वह भी नहीं जानता।”

---

🧾 अंतिम निष्कर्ष (पोस्ट-रेडी):

> वेद, उपनिषद और गीता स्पष्ट कहते हैं:
– आत्मा बोलने से नहीं जानी जाती
– शास्त्र पकड़ने से सत्य नहीं मिलता
– गुरु, धर्म, देव सब माध्यम हैं
– आत्मा ज्ञात होती है तो द्वैत गिर जाता है
– और जहाँ द्वैत गिरा, वहाँ प्रचार असंभव ह

manishborana.210417

Easy Vastu Remedies From My Vastu Notes.

drdeepaksikkagmailco

चित्त शुद्धि व्रत, तप, दान, शास्त्र, वेद, तीर्थ यात्रा से नहीं — ज्ञाननिष्ठ पुरुष के सत्संग से होती है।

The soul is not cleansed by Vedas, Shastra, Fasting, Praying, Charity, Pilgrimage — but by spending time with people devoted to gyana.

drdeepaksikkagmailco

The four difficulties of realising enlightenment;

So close you can't see it.
So deep you can't fathom it.
So simple you can't believe it.
So good you can't accept it."

*Tibetan Proverb*

drdeepaksikkagmailco

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य मजबूत हो लेकिन चंद्रमा कमजोर हो, तो वे हमेशा तार्किक रूप से “सही काम” करेंगे—भले ही उसके लिए भावनाओं की कीमत क्यों न चुकानी पड़े। लेकिन ऐसी दबाई हुई भावनाएँ उनके अवचेतन मन की छाया बन जाती हैं।

दूसरी ओर, जिनका चंद्रमा मजबूत हो लेकिन सूर्य कमजोर हो, वे बहुत कम काम पूरे कर पाते हैं या उनकी उपलब्धियाँ कम होती हैं, क्योंकि वे निर्णय लेने में संघर्ष करते हैं और अक्सर अपनी ही भावनाओं में उलझे रहते हैं।

संतुलित रहने के लिए दोनों पक्षों—सूर्य और चंद्रमा—का पोषण और सुधार आवश्यक है।

drdeepaksikkagmailco

क्या आप जानते हैं? आपके सोने का तरीका आपके गहरे राज खोलता है........

हम अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा सोने में बिताते हैं। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, जब हम अवचेतन अवस्था (नींद) में होते हैं, तो हमारा सोने का तरीका हमारे असली स्वभाव को दर्शाता है।

जानिए आपके सोने की पोजीशन आपके बारे में क्या कहती है:

*1. करवट लेकर सोना:*

ये लोग समझौतावादी और आदर्श जीवन जीना पसंद करते हैं। साफ-सफाई, अच्छा भोजन और नई खोज करना इनका शौक होता है।

*2. सोने से पहले पैर हिलाना:*

यह चिंता का लक्षण है। ऐसे लोग खुद से ज्यादा परिवार की चिंता करते हैं और अक्सर किसी न किसी उधेड़बुन में रहते हैं।

*3. पांवों को कसकर या शरीर ढककर सोना:*

इनका जीवन संघर्षपूर्ण हो सकता है, लेकिन ये बहुत व्यवहारकुशल होते हैं और परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं।

*4. शरीर सिकोड़कर (Fetal Position) सोना:*

इनके मन में असुरक्षा या अनजाना भय होता है। ये थोड़े डरपोक और अकेले रहना पसंद करने वाले होते हैं।

*5. चित्त (सीधे पीठ के बल) सोना:*

यह एक शुभ लक्षण है! ऐसे लोग आत्मविश्वास से भरे, आकर्षक व्यक्तित्व वाले और परिवार के मुख्य सदस्य होते हैं। ये अच्छे समस्या निवारक (problem solver) होते हैं

*6. पेट के बल सोना:*

इनमें एक अनजाना डर होता है और ये जोखिम लेने से बचते हैं। ये धोखे का शिकार जल्दी हो जाते हैं, इसलिए दोस्ती सोच-समझकर करते हैं।

*7. हाथ-पैर फैलाकर पीठ के बल सोना:*

ये स्वतंत्रता पसंद लोग होते हैं। इन्हें जीवन की सभी सुख-सुविधाएं चाहिए होती हैं। ये सुंदरता की ओर जल्दी आकर्षित होते हैं और इन्हें गपशप (gossip) करना पसंद होता है।

drdeepaksikkagmailco

जब भी मैं तुम्हारे बारे मे सोचता हूँ,
दिल खुद-ब-खुद मुस्कुरा उठता है,
जैसे किसी ने मेरी रूह पर
हल्के से प्यार रख दिया हो।

तुम्हारा नाम आते ही
मेरे अंदर कुछ खिल जाता है,
कुछ जग जाता है,
जैसे दिल कह रहा हो,
ये वही है,
जिसका इंतज़ार था।

तुम नहीं जानती,
पर तुम्हारा ख्याल भी
मेरी दुनिया को
इतना खूबसूरत बना देता है
जितना कोई सुबह की पहली धूप।

कभी-कभी सोचता हूँ,
कैसे बताऊँ तुम्हें
कि तुम्हारी दूरी भी
मेरे लिए एक मोहब्बत है,
क्योंकि तुम्हारी याद
मेरी सबसे प्यारी आदत बन चुकी है।

तुम्हारी हंसी,
तुम्हारी बातें,
तुम्हारा अंदाज़,
सब कुछ दिल में ऐसे बस गया है
जैसे तुम मेरे नहीं,
मेरी साँसों के लिए बनी हो।

सच कहूँ,
मैं तुम्हें सिर्फ याद नहीं करता,
मैं तुम्हें महसूस करता हूँ।
हवा छूती है तो तुम लगती हो,
बारिश गिरती है तो तुम,
रात की ख़ामोशी भी
तेरी आवाज़ जैसी लगती है।

कभी-कभी दिल चाहता है
कि तुम मेरे पास होती,
और मैं तुम्हारा हाथ पकड़कर
धीरे से कहता,
देखो, ये दिल,
ये धड़कन,
ये सांसे,
सब तुम्हारे हैं।

मैं प्यार जताना नहीं जानता,
पर तुमसे प्यार करना
मेरे लिए सांस लेने जैसा है,
बस हो जाता है,
रुकता नहीं।

काश तुम जान पाती
कि मैं कितनी मोहब्बत
तुम्हारे हिस्से में रखता हूँ,
इतनी कि पूरे आसमान में भी
समा न पाए।

तुम हो तो सब कुछ है,
वरना दुनिया भी
बस एक शोर लगती है।

To be continued......💞💞

akshaytiwari128491

Paagla ke love quotes un dilon ke liye hain jo kam lafzon mein gehri baat keh jaate hain.
Sachchi feelings, seedhe alfaaz — kyunki pyaar shor nahi karta, mehsoos hota hai.

jaiprakash413885

INTERNATIONAL TEA DAY
🫖🫖🫖🫖🫖🫖🫖🫖🫖🫖🫖
☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕
ओर एक हसरत अधूरी रेह गई।
चाय ने लब छू लिए,
निगाहे देखती रेह गई ।

jighnasasolanki210025

નિશ્ચય એનું નામ કે આપણે નક્કી કર્યું, તે ઠેઠ સુધી રહે. તો પછી એનો સાંધો આગળ મળી રહે. 'ટાઈમીંગ' પણ મળી રહે. નિશ્ચય ફેરવી નાખે તો આગળ સાંધો ના મળે. એક નિશ્ચય કરે પછી પાછો બીજો કરે તો તે મળે ખરું પણ એના ટાઈમે નહીં, ને પાછો 'પીસીસ'માં મળે, એકધાર્યું ના મળે. - દાદા ભગવાન

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dadabhagwan1150

परेशानियों का आना जाना लगा रहता है
इसका मतलब यह नहीं कि खुद को खत्म करने की सोचे
उस परेशानी से लड़ कर जीना ही समझदारी है..!!

मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं, कोई चाह कर भी जुदा नहीं कर सकता है....
परेशानी छोटा हो या बड़ा ,मैं साथ मुस्कुराना चाहती हूं।
हर रात के बाद सुबह सबेरा होता है ।
खुद से हारो नहीं मैं हमेशा साथ हूं ।

जिंदगी में परेशानियां आती रहती हैं
कहा करते थे न कभी छोड़ कर नहीं जाऊंगा,
फिर छोड़ जाने का ख्याल आया कैसे ?
बताओ ऐसा थोड़ी है मैने साथ छोड़ दिया है।

मुस्कुराओ हमेशा कहा है मैने
अभी तो उस मुस्कान को करीब से देखना बाकी है
सामने बैठ कर लड़ाई करना बाकी है,
परेशानियों से हार कैसे सकते हो?
बताओ मुझे.....

मेरी जिंदगी है ऐसा सोचा तो सर फोड़ दूंगी
आपकी जिंदगी पर सिर्फ आपका हक नहीं है
मैं जितना जानती हूं समझदार बहुत हो
फिर जिंदगी से हार कैसे सकते हो??

खुद से सवाल करो एक बार
मुस्कुराओ मेरे साथ, सब साथ ही है ।
मेरा हक छीनने नहीं दूंगी उस खुदा को भी
तुम तो फिर भी इंसान हो ...!!!!

हम साथ हैं, साथ थे और हमेशा साथ रहेंगे
कोई तोड़ जाए इतना कमजोर नहीं है रिश्ता ...!!!!
जीना पड़ेगा उनके लिए जो जुड़े हैं आपसे
मुस्कुराना पड़ेगा खुद के लिए और मेरे लिए....!!!!


_M.K

manshik094934