सब कुछ चयनात्मक है। अनुपात, तर्क, इतिहास, किसी का लिहाज नहीं किया जाता है। बस समीकरण और संतुलन को प्रतिष्‍ठा मिलती है। हम चाहे किसी भी धर्म के अनुयायी हो अथवा पूर्णत: नास्तिक हो परंतु अपने वक्तव्‍य और आचरण से किसी को ठेस पहुँचाने का अधिकार नहीं है। लेकिन जब देवी सरस्‍वती और दुर्गा के अश्लील चित्र और बदनीयती से की गयी टिप्पणियों को प्रगतिशीलता और अभिव्यक्ति की आजादी का दर्जा मिलता है और किसी अन्य धर्म के विषय के बारे में कथन पर सुनियोजित तरीके से हिंसा होती है तो कुछ सवाल जरूर उठते हैं। बात चाहे वोट बैंक के समीकरणों की हो अथवा व्‍यापार, आयात-निर्यात, प्रवासी भारतीयों के हितों का मसला या अन्तरराष्ट्रीय संबंधों में नट संतुलन स्थापित करना, कमजोर दिल और मनोबल वाले बहुधा झुकते नजर आते हैं। किसी धर्म के बारे में अशोभनीय टिप्‍पणी समर्थन योग्य नहीं है लेकिन विदेशी दबाव के आगे घुटने टेकने की बजाय हमें स्वयं को सशक्‍त बनाना है ताकि कोई हमें ऑंख दिखाने से पहले हजार बार सोचे। अगर किसी धर्म के विषय में
की गयी असभ्य टिप्पणी निंदनीय है तो हर ऐसी हरकत को एक ही श्रेणी में रखा जाए। मानवाधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, अभिव्‍यक्ति की आजादी इत्यादि चयनात्‍मक इस्तेमाल और पक्षपातपूर्ण रवैया के कारण उस सिक्‍के की भॉंति हो गए हैं जिस पर अंकित मूल्य तक पढ़ना कठिन है। कतिपय इस्लामिक देशों के द्वारा निंदा उनके संकीर्ण नजरिया परंतु अपने मजहब के बारे में एकजुटता को दर्शाता है। यह एकजुटता हिन्दू समाज में नदारद है। बेहतर होता कि इस्लामिक देश सर्वप्रथम अपने गिरेबान में झॉंक कर देखते। देखने के लिए अपने गिरेबान से अधिक उपर्युक्‍त जगह और कोई नहीं है। धार्मिक अल्‍पसंख्यकों के प्रति व्यवहार और तथाकथित ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल, बर्बर मध्ययुगीन रिवाजों पर कायम रहना उनके समाज की विशेषता है। वे भारत और पश्चिमी देशों के समाज, कानून और सहिष्णुता से अनेक प्रकाश वर्ष पीछे हैं। कोई भी धर्म, कानून और संविधान बदलते हुए समय की कसौटी पर कसा जाना चाहिए। वैज्ञानिक नियमों के विपरीत, मानवीय आधार पर अन्यायपूर्ण आयत, श्लोक, वचन आदि अस्वीकार्य हैं। इक्कीसवीं सदी में मध्‍ययुगीन रिवाजों की गुंजाइश न होने के बावजूद उनसे चिपके रहना ऐसी सोच पर सवालिया निशान लगाता है। मार्क्‍स का ‘दास कैपिटल’ भी उत्पादन, पूँजी और समाज के विषय में अपनी उपयोगिता खो चुका है। फिर भी उसे ढ़ोते रहना उसके तथाकथित अनुयायियों के मानसिक स्‍तर का परिचायक है।

Hindi Quotes by Dr Jaya Shankar Shukla : 111810768

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