मैं और मेरे अह्सास

साँसें रुकतीं हैं पर वक़्त रुकता नहीं l
जान निकलती हैं पर वक्त थमता नहीं ll

जिगर को लोहे जैसा बना दिया है कि l
ग़मों के दरिया के आगे झुकता नहीं ll

साखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111824040

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