उसने सोचा था कि अतीत के धोखे पीछे छूट चुके हैं।
वह अब सिर्फ़ अपने सपनों के पीछे भागना चाहता था।
लेकिन तभी उसकी ज़िंदगी में आई वह—
एक नायिका, जिसकी मुस्कान मासूम थी और इरादे रहस्यमय।
भोली इतनी कि कोई भी उसके जादू में बंध जाए,
और चतुर इतनी कि उसकी असलियत पहचानना असंभव हो।
नायक ने उसे दोस्ती का दर्जा दिया,
वह दोस्ती जो उसके लिए कृष्ण-अर्जुन या कृष्ण-सुदामा जैसी पवित्र थी।
धीरे-धीरे यह दोस्ती मोहब्बत में बदल गई…
और यहीं से शुरू हुआ असली खेल।
अपनी मासूमियत में नायक ने नायिका को अपने सबसे क़रीबी दोस्त से मिलवा दिया।
दोस्त, जो हाल ही में टूटे हुए रिश्ते से जूझ रहा था।
मौका पाकर उसने वही किया, जिसकी किसी ने कल्पना तक न की थी—
उसने नायिका को अपने वश में कर लिया।
सच धीरे-धीरे सामने आया—
नायिका के जीवन में पहले से ही कोई और मौजूद था,
बाकी सब तो महज़ उसके लिए मोहरे थे।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
नायक ही सबके सामने दोषी ठहराया गया।
अब सवाल यह है—
जब हर ओर से घिरा इंसान सच और झूठ की जाल में फँस जाए,
तो उसका आख़िरी फैसला क्या होगा?
क्या वह टूट जाएगा… या इस हार से एक नई शुरुआत जन्म लेगी?