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"आज की नारी इतनी बेबाक क्यों है?"
क्योंकि उसे अब चुप रहने की कीमत समझ आ गई है।
क्योंकि उसकी माँ ने चुप रहकर सिर्फ आँसू कमाए थे — इज़्ज़त नहीं।
क्योंकि उसने देखा कि चुप रहकर रिश्ते नहीं बचे, आत्मा मरती चली गई।
क्योंकि अब वो जानती है — जो बोलता है, वही सुना जाता है।
जो सवाल करती है, वही जवाब पाती है।
आज की नारी बेबाक है क्योंकि वो डरना छोड़ चुकी है।
वो जानती है कि अगर उसने अपनी बात नहीं रखी,
तो उसकी कहानी कोई और गढ़ देगा —
और शायद हमेशा अधूरी या ग़लत।
उसने अब तय कर लिया है —
वो सहना नहीं, समझाना सीखेगी।
वो लड़ना नहीं, लेकिन झुकना भी नहीं सीखेगी।
वो अब सिर्फ़ सब्र नहीं, स्वर भी बनाएगी।
क्योंकि चुप्पी में इज़्ज़त नहीं —
चुप्पी में बस धीरे-धीरे आत्मा गलती है।
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