एक औरत की ख़ामोश उड़ान

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कुछ कहानियाँ ज़ोर से नहीं बोली जातीं, बस चुपचाप जी जाती हैं। ये कहानी भी कुछ वैसी ही है — एक ऐसी स्त्री की, जिसने जीवन को सिर्फ निभाया नहीं, बल्कि हर दिन एक नयी लड़ाई की तरह जिया। उसके जीवन के शुरुआती सालों में सपने भी थे और कुछ नियम भी — कि शादी एक पवित्र रिश्ता होगा, जिसमें वो पूरी तरह समर्पित रहेगी, और अपने पति से बेपनाह प्यार करेगी। लेकिन जिन्दगी की ज़मीनी सच्चाइयाँ अक्सर किताबों से अलग होती हैं। विवाह के कई वर्षों तक उसका जीवन जैसे एक बंद दरवाज़े के पीछे कैद रहा। भावनात्मक दूरी, उपेक्षा, और मानसिक पीड़ा उसका रोज़ का सच बन चुकी थी। न कोई साथी था बात करने वाला, न कोई कंधा था जिस पर सिर रख कर रो सके। मायके जाना मना, घूमना-फिरना मना, अपनी पसंद का कुछ करना मना — जैसे उसकी हर खुशी पर ताला लगा हो।

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एक औरत की ख़ामोश उड़ान - 1

अध्याय 1: तन्हाईयों की छाँव मेंकुछ कहानियाँ ज़ोर से नहीं बोली जातीं, बस चुपचाप जी जाती हैं। ये कहानी कुछ वैसी ही है — एक ऐसी स्त्री की, जिसने जीवन को सिर्फ निभाया नहीं, बल्कि हर दिन एक नयी लड़ाई की तरह जिया।उसके जीवन के शुरुआती सालों में सपने भी थे और कुछ नियम भी — कि शादी एक पवित्र रिश्ता होगा, जिसमें वो पूरी तरह समर्पित रहेगी, और अपने पति से बेपनाह प्यार करेगी। लेकिन जिन्दगी की ज़मीनी सच्चाइयाँ अक्सर किताबों से अलग होती हैं।विवाह के कई वर्षों तक उसका जीवन जैसे एक बंद दरवाज़े के पीछे कैद ...Read More

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एक औरत की ख़ामोश उड़ान - 2

अध्याय 2: ख़ामोशी की ज़मीन पर खड़ी होती औरत वो औरत अब भी गिरती थी। कभी अपनी भावनाओं से, उम्मीदों से।लेकिन हर बार गिरने के बाद उठने में जो ख़ामोशी होती थी, वो किसी चीख़ से कम नहीं थी।वो कुछ ज़्यादा नहीं कहती थी। बस दुनिया की आवाज़ों से हटकर, खुद के भीतर उतर जाती थी।वहीं, जहां कोई नहीं पहुंचता। जहां सिर्फ खुदा होता था, और वो।कभी-कभी ऐसा लगता कि अब और नहीं होगा — जैसे अंदर की दीवारें ढह रही हों।फिर भी वो खड़ी रहती, टूटी-फूटी सही, मगर खड़ी।जैसे कोई पेड़, जो आँधी में झुका तो हो, मगर ...Read More