जब कोई चीज़ को बार-बार बोलना पड़े, फिर इन सब का मतलब शून्य हो जाता है। कई बार लगता है कि मैं शब्दों का गुलाम हूँ। हर भावना को, हर चोट को, हर उम्मीद को शब्दों में पिरोना पड़ता है ताकि लोग समझ सकें। पर क्या सच में समझते हैं? या बस सुनते हैं, सर हिलाते हैं, और फिर भूल जाते हैं? 1. संवाद का भ्रम राघव एक साधारण इंसान था—न ज़्यादा बोलने वाला, न ज़्यादा चुप रहने वाला। पर हाल के कुछ वर्षों में, वह धीरे-धीरे खुद से बातें करने लगा था। वजह सिर्फ़ इतनी थी कि जिनसे उसे उम्मीद थी, वही बार-बार उसे अनसुना करते जा रहे थे। “तुम बहुत सोचते हो, राघव,” उसकी पत्नी अक्सर कहती। “नहीं,” राघव मन ही मन जवाब देता, “मैं बस समझना चाहता हूँ।”
शब्दों का बोझ - 1
जब कोई चीज़ को बार-बार बोलना पड़े, फिर इन सब का मतलब शून्य हो जाता है।कई बार लगता है मैं शब्दों का गुलाम हूँ। हर भावना को, हर चोट को, हर उम्मीद को शब्दों में पिरोना पड़ता है ताकि लोग समझ सकें।पर क्या सच में समझते हैं?या बस सुनते हैं, सर हिलाते हैं, और फिर भूल जाते हैं?1. संवाद का भ्रमराघव एक साधारण इंसान था—न ज़्यादा बोलने वाला, न ज़्यादा चुप रहने वाला।पर हाल के कुछ वर्षों में, वह धीरे-धीरे खुद से बातें करने लगा था। वजह सिर्फ़ इतनी थी कि जिनसे उसे उम्मीद थी, वही बार-बार उसे अनसुना ...Read More
शब्दों का बोझ - 2
चुप्पी की भाषा”June 28, 2025“जब शब्द बेमानी हो जाएँ, तो चुप्पी बोल उठती है।”1. चुप्पी का इन्कारराघव को अब की आवाज़ का इंतज़ार नहीं था। वो जानता था कि कुछ जवाब कभी नहीं आते, और कुछ सवाल बस सवाल ही रह जाते हैं। पर भीतर कहीं एक कोना अभी भी था, जो कभी-कभी कह उठता—“काश कोई पूछे… तू चुप क्यों है?”पर राघव ने अब ये उम्मीद भी त्याग दी थी। उसने खुद से कहना शुरू किया—“मैं चुप हूँ, क्योंकि मैंने बहुत कुछ कहा… और सब कुछ व्यर्थ गया।”अब चुप्पी उसका हथियार थी, उसका कवच, और शायद उसकी सबसे सच्ची ...Read More
शब्दों का बोझ - 3
June 28, 2025“हर बार समझाने की ज़रूरत हो, तो शायद समझने वाला ही ग़लत चुन लिया है।”1. रिश्तों की में सन्नाटाराघव की ज़िंदगी में अब शांति थी—या कहें, उसने शांति का भ्रम पाल लिया था। कुछ रिश्ते अभी भी साथ थे, पर अब उनमें आवाज़ें कम और चुप्पियाँ ज़्यादा थीं। वह जानता था कि हर रिश्ता संवाद से नहीं, समझ से चलता है। लेकिन अब उसे ये भी पता चल गया था कि समझ सबके बस की बात नहीं।एक पुराना दोस्त आया, हल्की मुस्कान के साथ बोला—“यार, तू बहुत बदल गया है।”राघव ने जवाब नहीं दिया, बस मुस्करा दिया।कभी-कभी ...Read More
शब्दों का बोझ - 4
“जब चुप्पी आदत बन जाए, तब शब्द भी पराये लगने लगते हैं।”1. आदत की चुप्पीराघव अब बोलता नहीं था पर इसका मतलब ये नहीं था कि उसे कुछ कहना नहीं था।उसके भीतर बहुत कुछ था, मगर अब वो अपने भीतर ही रह जाता था।लोग सोचते,“ये तो अब बहुत शांत हो गया है।”पर कोई नहीं जानता था कि उस शांति के पीछे कितनी तोड़-फोड़ हो चुकी है।अब वो रोज़ अपनी चाय की चुस्की के साथ किसी से नहीं, बल्कि अपने भीतर चल रही बहस से बात करता था।और ये बहस अब रोज़ की आदत बन चुकी थी — एक आदत ...Read More