अष्टचक्र: The Gate of Time

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गंगा नदी की लहरें बनारस घाट पर थपकियां दे रहीं थे, और आसमान पर बादल घिरे हुए थे। हवा में नमी और ठंडक थी। दूर जलते हुए दीपक ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने सितारों को सचमुच में जमीन पर उतार दिया हो। इन सबसे थोड़ी ही दूर पर थी वो वीरान खंडहर पड़ी हवेली, जिसके बारे में कहा जाता था कि उसके अंदर जो भी गया वो वापस नहीं लौटा। किनारे से थोड़ी ही दूर एक ऊंचे चबूतरे पर खड़ी वो हवेली कभी आलीशान हुआ करती थी। आए दिन हवेली में उत्सव मनाए जाते थे लेकिन अब वीरान पड़ी थी, मकान कम भूत बंगला ज्यादा लगता था। खिड़कियों से आती हवा जब भी पुरानी पड़ी खिड़की के दरवाजों से टकराकर अंदर आती थी तो उसके भीतर से कर्र.... कर्र.... की आवाज आती थी। दीवारों पर पपड़ी उखड़ी हुई थी और छत के कई हिस्सों से आसमान साफ दिखाई दे रहा था। गंगा का पानी इसके पास में ही बहता था लेकिन हवेली के चारों ओर एक अजीब सी खामोशी थी, जैसे सांस रोक कर किसी का इंतजार कर रही हों और कह रही हों - कि आओ और इस खामोशी को तोड़ दो।

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अष्टचक्र: The Gate of Time - 1

Part 1बनारस, गंगा घाट का दृश्य, रात 12:47 बजेगंगा नदी की लहरें बनारस घाट पर थपकियां दे रहीं थे, आसमान पर बादल घिरे हुए थे। हवा में नमी और ठंडक थी। दूर जलते हुए दीपक ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने सितारों को सचमुच में जमीन पर उतार दिया हो।इन सबसे थोड़ी ही दूर पर थी वो वीरान खंडहर पड़ी हवेली, जिसके बारे में कहा जाता था कि उसके अंदर जो भी गया वो वापस नहीं लौटा। किनारे से थोड़ी ही दूर एक ऊंचे चबूतरे पर खड़ी वो हवेली कभी आलीशान हुआ करती थी। आए दिन हवेली में ...Read More