प्रथा : एक ज़िन्दगी, कई इम्तेहान

(0)
  • 18
  • 0
  • 162

वो उस वक्त सिर्फ 12 साल की थी। एक छोटी सी लड़की, जिसकी सुबह बाकी बच्चों जैसी हँसी-खुशी से नहीं, बल्कि घुटन और ज़िम्मेदारियों से शुरू होती थी। वो बाकी बच्चों से अलग स्कूल जाने से पहले ताज़ा पानी भरकर लाती, आटा गूँथती, बर्तन साफ़ करती, और फिर अपने पिता के लिए गरम-गरम रोटी बनाकर उनके सामने रख देती। और उसके पिता कभी कभी चुप चाप खा लेते तो कभी कभी गुस्से मे खाने की थाली ही फेक देते, थाली का फर्श से टकराना उसकी धड़कनें और बढ़ा देता। बारह साल की प्रथा भोसलें के लिए "सुबह" का मतलब कभी भी सिर्फ़ सूरज का उगना नहीं था।

1

प्रथा : एक ज़िन्दगी, कई इम्तेहान - 1

एपिसोड 1: छोटे कंधों पर बड़े बोझवो उस वक्त सिर्फ 12 साल की थी।एक छोटी सी लड़की, जिसकी सुबह बच्चों जैसी हँसी-खुशी से नहीं, बल्कि घुटन और ज़िम्मेदारियों से शुरू होती थी।वो बाकी बच्चों से अलग स्कूल जाने से पहले ताज़ा पानी भरकर लाती, आटा गूँथती, बर्तन साफ़ करती, और फिर अपने पिता के लिए गरम-गरम रोटी बनाकर उनके सामने रख देती। और उसके पिता कभी कभी चुप चाप खा लेते तो कभी कभी गुस्से मे खाने की थाली ही फेक देते, थाली का फर्श से टकराना उसकी धड़कनें और बढ़ा देता।बारह साल की प्रथा भोसलें के लिए "सुबह" ...Read More