ख़ज़ाने का नक्शा

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लखनऊ की गलियों से लेकर राजस्थान की रेत तक, दो नौजवान — रैयान मीर और ज़ेहरा नाज़ — एक ऐसे नक़्शे की तलाश में निकलते हैं जो सदियों पुराने सुल्तान बहादुर शाह के गुमशुदा ख़ज़ाने तक पहुँचता है। लेकिन ये सफ़र सिर्फ़ दौलत का नहीं — इल्म, ईमान और इंसानियत की असली क़ीमत जानने का होता है। हर मोड़ पर एक नया रहस्य, हर निशान के पीछे एक सदी पुरानी कहानी। अध्याय 1: दीवारों के दरमियान छिपा राज़ (Lucknow – 1965 की एक शाम) लखनऊ की पुरानी तंग गलियों में एक हवेली थी — हवेली-ए-रूमी। उसकी दीवारों पर वक्त की दरारें थीं, मगर हर दरार में एक दास्तान दबी थी। शाम का वक़्त था — सूरज की आख़िरी किरणें झरोखों से छनकर फर्श पर सुनहरी लकीरें बना रही थीं।

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ख़ज़ाने का नक्शा - अध्याय 1

️ लेखिका: नैना ख़ान© 2025 Naina Khan. सर्वाधिकार सुरक्षित। इस कहानी “ख़ज़ाने का नक्शा”का कोई भी अंश लेखिका की के बिना पुनर्प्रकाशित, कॉपी या वितरित नहीं किया जा सकता। कहानी का सारांश:लखनऊ की गलियों से लेकर राजस्थान की रेत तक, दो नौजवान — रैयान मीर और ज़ेहरा नाज़ — एक ऐसे नक़्शे की तलाश में निकलते हैं जो सदियों पुराने सुल्तान बहादुर शाह के गुमशुदा ख़ज़ाने तक पहुँचता है। लेकिन ये सफ़र सिर्फ़ दौलत का नहीं — इल्म, ईमान और इंसानियत की असली क़ीमत जानने का होता है। हर मोड़ पर एक नया रहस्य, हर निशान के पीछे एक ...Read More