hindi Best Classic Stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Classic Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cu...Read More


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  • पलायन - 1

    वह युवा सोशल मीडिया पर एक जाना पहचाना नाम बन गया था। लोगों तक पहुँचकर जन समस्याओ...

  • दो बहने - 4

    Part 4 आज ८ साल बीत चुके थे। निशा आज २४ साल की हो गई थी ओर नियती २३ साल की।लेकिन...

  • सत्य की खोज

    अजीब कशमकश थी गिरीराज के मन में ।रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी पर उसकी आंखों में...

पलायन - 1 By राज कुमार कांदु

वह युवा सोशल मीडिया पर एक जाना पहचाना नाम बन गया था। लोगों तक पहुँचकर जन समस्याओं की पड़ताल करना और सरकार के बारे में उनकी राय सोशल मीडिया पर ज्यों की त्यों दिखाना उसका कार्य था।आज...

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दो बहने - 4 By Mansi

Part 4 आज ८ साल बीत चुके थे। निशा आज २४ साल की हो गई थी ओर नियती २३ साल की।लेकिन इन ८ सालो मे निशा का स्वभाव नियती के प्रति जरा भी बदला नहीं था वैसे का वैसा ही था जैसे पहले था। लेक...

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सत्य की खोज By Poonam Gujrani Surat

अजीब कशमकश थी गिरीराज के मन में ।रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी पर उसकी आंखों में अंश मात्र भी नींद नहीं थी। वो सोच रहा था- क्या कर राहा हूं मैं .... क्या करना चाहिए मुझे....जिन गुत...

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वेश्या का भाई - (अन्तिम भाग) By Saroj Verma

जब रामजस चुप हो गया तो कुशमा ने उससे कहा... तुम चुप क्यों हो गए? जी! आपने ही तो चुप रहने को कहा मुझसे,रामजस बोला।। अच्छा वो सब छोड़ो पहले ये बताओ तुमने अपनी दवा खाई,कुशमा ने पूछा।।...

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गुलाब का खून By Prabodh Kumar Govil

गुलाब का खून- प्रबोध कुमार गोविल ज़्यादा हरियाली तो अब नहीं बची थी पर जो कुछ भी था, उसे तो बचाना ही था। इसीलिए वो पानी का पाइप हाथ में लेकर लॉन के कौने वाले उस पौधे पर धार छोड़ने म...

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खुल जा सिम सिम By Prabodh Kumar Govil

बाहर गली में बच्चे खेल रहे थे। चौंकिए मत!आप कहेंगे कि बच्चे बाहर कब खेलते हैं, वो तो मोबाइल हाथ में लेकर घर के भीतर ही खेलते हैं। नहीं, ये आज की बात नहीं है। बरसों पुरानी बात है। त...

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चपरकनाती By Prabodh Kumar Govil

"चपरकनाती"- प्रबोध कुमार गोविल दूरबीन से इधर- उधर देखता हुआ वो सैलानी अपनी छोटी सी मोटरबोट को किनारे ले आया। उसे कुछ मछुआरे दिखे थे। उन्हीं से बात होने लगी। टोकरी से कुछ छोटी मछलिय...

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श्रीलाल शुक्ल By Saumya Jyotsna

साहित्य जगत में ऐसे अनेक नाम हुए हैं, जिन्होंने एक युग की शुरुआत की है। अपने साहित्य सृजन से लोगों को अनेक कृतियां प्रदान की हैं, जिसे पढ़कर पाठक जुड़ाव महसूस करने के साथ-साथ उससे...

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ख़ाम रात - 14 - अंतिम भाग By Prabodh Kumar Govil

थोड़ी देर के लिए मैं भूल गया कि घड़ी चल रही है, समय चल रहा है, दुनिया चल रही है! मैं ये भी भूल गया कि हर बीतते लम्हे का मैं भुगतान करने वाला हूं। समय मेरे ही ख़र्च पर गुज़र रहा है।...

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अपराधी कौन ? By राज कुमार कांदु

अदालत परिसर में काफी गहमागहमी थी लेकिन अदालत कक्ष में नीरव शांति थी जहाँ नृशंस हत्या के एक आरोपी की सुनवाई चल रही थी। सरकार द्वारा मुफ्त वकील दिए जाने के प्रस्ताव को मुस्कुरा कर न...

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दुर्गेशनन्दिनी (बंगला उपन्यास) : बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय By Suvayan Dey

प्रथम परिच्छेद : देवमन्दिर बङ्गदेशीय सम्वत् ९९८ के ग्रीष्मकाल के अन्त में एक दिन एक पुरुष घोड़े पर चढ़ा विष्णुपुर से जहानाबाद की राह पर अकेला जाता था। सायंकाल समीप जान उसने घोड़े क...

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मासूम बच्चे से कैसा प्रतिशोध By Vandana

दृश्य 1 उस क्षेत्र में लोग शांतिपूर्वक रहते थे, लोग क्या, पशु पक्षी भी वहाँ अपना अभयराज समझते थे। छोटे छोटे बालक और शावक वहाँ प्रसन्नचित होकर निर्द्वन्द्व विचरण करते। ऐसा नहीं कि य...

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चाँद- बदली की ओट में By राज कुमार कांदु

शाम गहरा गई थी। आसमान में चाँद चमक रहा था और रजनी अपने कमरे में पड़ी सिसक रही थी।आज वह सुबह से ही खुद को बड़ी असहज महसूस कर रही थी। हर साल की तरह आज भी उसने करवा चौथ का व्रत रखा था,...

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चल उड़ जा रे पंछी By सुधाकर मिश्र ” सरस ”

सुनील को घर गए हुए साल भर हो गया था। इंदौर में प्राइवेट नौकरी कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा था। वह हर साल की तरह गेहूं की फसल आने पर घर जाने को तथा अपने माता - पिता से मिलने क...

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पलायन - 1 By राज कुमार कांदु

वह युवा सोशल मीडिया पर एक जाना पहचाना नाम बन गया था। लोगों तक पहुँचकर जन समस्याओं की पड़ताल करना और सरकार के बारे में उनकी राय सोशल मीडिया पर ज्यों की त्यों दिखाना उसका कार्य था।आज...

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दो बहने - 4 By Mansi

Part 4 आज ८ साल बीत चुके थे। निशा आज २४ साल की हो गई थी ओर नियती २३ साल की।लेकिन इन ८ सालो मे निशा का स्वभाव नियती के प्रति जरा भी बदला नहीं था वैसे का वैसा ही था जैसे पहले था। लेक...

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सत्य की खोज By Poonam Gujrani Surat

अजीब कशमकश थी गिरीराज के मन में ।रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी पर उसकी आंखों में अंश मात्र भी नींद नहीं थी। वो सोच रहा था- क्या कर राहा हूं मैं .... क्या करना चाहिए मुझे....जिन गुत...

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वेश्या का भाई - (अन्तिम भाग) By Saroj Verma

जब रामजस चुप हो गया तो कुशमा ने उससे कहा... तुम चुप क्यों हो गए? जी! आपने ही तो चुप रहने को कहा मुझसे,रामजस बोला।। अच्छा वो सब छोड़ो पहले ये बताओ तुमने अपनी दवा खाई,कुशमा ने पूछा।।...

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गुलाब का खून By Prabodh Kumar Govil

गुलाब का खून- प्रबोध कुमार गोविल ज़्यादा हरियाली तो अब नहीं बची थी पर जो कुछ भी था, उसे तो बचाना ही था। इसीलिए वो पानी का पाइप हाथ में लेकर लॉन के कौने वाले उस पौधे पर धार छोड़ने म...

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खुल जा सिम सिम By Prabodh Kumar Govil

बाहर गली में बच्चे खेल रहे थे। चौंकिए मत!आप कहेंगे कि बच्चे बाहर कब खेलते हैं, वो तो मोबाइल हाथ में लेकर घर के भीतर ही खेलते हैं। नहीं, ये आज की बात नहीं है। बरसों पुरानी बात है। त...

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चपरकनाती By Prabodh Kumar Govil

"चपरकनाती"- प्रबोध कुमार गोविल दूरबीन से इधर- उधर देखता हुआ वो सैलानी अपनी छोटी सी मोटरबोट को किनारे ले आया। उसे कुछ मछुआरे दिखे थे। उन्हीं से बात होने लगी। टोकरी से कुछ छोटी मछलिय...

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श्रीलाल शुक्ल By Saumya Jyotsna

साहित्य जगत में ऐसे अनेक नाम हुए हैं, जिन्होंने एक युग की शुरुआत की है। अपने साहित्य सृजन से लोगों को अनेक कृतियां प्रदान की हैं, जिसे पढ़कर पाठक जुड़ाव महसूस करने के साथ-साथ उससे...

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ख़ाम रात - 14 - अंतिम भाग By Prabodh Kumar Govil

थोड़ी देर के लिए मैं भूल गया कि घड़ी चल रही है, समय चल रहा है, दुनिया चल रही है! मैं ये भी भूल गया कि हर बीतते लम्हे का मैं भुगतान करने वाला हूं। समय मेरे ही ख़र्च पर गुज़र रहा है।...

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अपराधी कौन ? By राज कुमार कांदु

अदालत परिसर में काफी गहमागहमी थी लेकिन अदालत कक्ष में नीरव शांति थी जहाँ नृशंस हत्या के एक आरोपी की सुनवाई चल रही थी। सरकार द्वारा मुफ्त वकील दिए जाने के प्रस्ताव को मुस्कुरा कर न...

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दुर्गेशनन्दिनी (बंगला उपन्यास) : बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय By Suvayan Dey

प्रथम परिच्छेद : देवमन्दिर बङ्गदेशीय सम्वत् ९९८ के ग्रीष्मकाल के अन्त में एक दिन एक पुरुष घोड़े पर चढ़ा विष्णुपुर से जहानाबाद की राह पर अकेला जाता था। सायंकाल समीप जान उसने घोड़े क...

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मासूम बच्चे से कैसा प्रतिशोध By Vandana

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चाँद- बदली की ओट में By राज कुमार कांदु

शाम गहरा गई थी। आसमान में चाँद चमक रहा था और रजनी अपने कमरे में पड़ी सिसक रही थी।आज वह सुबह से ही खुद को बड़ी असहज महसूस कर रही थी। हर साल की तरह आज भी उसने करवा चौथ का व्रत रखा था,...

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चल उड़ जा रे पंछी By सुधाकर मिश्र ” सरस ”

सुनील को घर गए हुए साल भर हो गया था। इंदौर में प्राइवेट नौकरी कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा था। वह हर साल की तरह गेहूं की फसल आने पर घर जाने को तथा अपने माता - पिता से मिलने क...

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