एक जलता दिया ही तो हूँ।
मैं कौन हूँ? एक जलता दिया ही तो हूँ।
जो सिर्फ खुद जलता है, और दूसरों को उजाला देता है।
मैं कौन हूँ? एक जलता दिया ही तो हूँ।

हां मालूम है! मुझे कि तुम अंधेरे से डरते हो,
पर मैं इसीलिए तो जलता हूं,
इसमें मेरा ही तो स्वार्थ छिपा है,साहब।
क्योंकि, इसकी वजह से बैठे थे कल जो दूर;
आज साथ तो बैठे हैं।
बस मैं इसीलिए तो जलता हूँ,
मैं कौन हूं?.....

माना रास्ता आसान नहीं है मेरा,
क्योंकि मंजिल अभी दूर है मेरी।
मालूम है ज्यादा कठिनाई अभी आएगी,
पर, अगर जो कर गया मैं उसे पार!
और रख पाए सबको साथ,
तो जीत लूंगा मैं यह संसार;
बस मैं इसीलिए तो जलता हूँ,
मैं कौन हूं?.....

लोग आकर पूछते हैं मुझसे,
क्यों करता है परिश्रम इतना।
मैं बस इतना ही कहूंगा उनसे!
मेरे जलने से अगर, फायदा होता है उनका;
की महक उठे खुशियों से, जिंदगी उनकी।
बस मैं इसीलिए तो जलता हूँ।

मैं कौन हूँ ? एक जलता दिया ही तो हूँ।
जो सिर्फ खुद जलता है,
और दूसरों को उजाला देता है;
मैं कौन हूँ? एक जलता दिया ही तो हूँ।
- VANDAN❤️


#दिया

Hindi Poem by Vandan Patel : 111432773

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