#अंतरिम
अंतरिम और बहिर्मुखता की बीच खडी दीवार लब्जो की,
जिसकी नींव रखी संस्कारो की।

धैर्य, साहस, संयम से बनी छैनी,
समय और संजोग के तकाजे पे करती वार।

हर भेद को छुपा के भी बताती,
बस ,यही है विस्तार।
Mahek Parwani

Hindi Poem by Mahek Parwani : 111435679
करुनेश कंचन.. 4 years ago

सुन्दर रचना...बेहतरीन कृति👌👌👌

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