किताब पढ़ने की तीव्र इच्छा होने पर अक्सर उन लेखकों को पढ़ता हूं जिन्हे पहले भी पढ़ लिया है। कुछ लिखने से पहले पढ़ने की आदत हैं। हमेशा पढ़ते वक्त अचानक से मुझे बीते समय के छुटे हुए लोग नजर आते हैं। जो अपने नए और पुराने खूबसूरत यादों के कपड़े ओड़े मुझे तितली बने गुलाब के पेड़ में बैठे हुए जान पड़ते हैं। हमेंशा से उन्हे लिखने की कोशिश में असफल रहा हूं। इसलिए आज लंबे समय तक उन्हें देखता रहा। फिर इच्छा हुई इसे हाथों में लू। उसकी उपस्थित दर्ज करने बिना आवाज किए अपनी डायरी के पन्ने पलटने लगा। इसे तितल के पास जाने कदम का बढ़ाना कह सकते हैं। जैसे ही मैंने लिखना चाहा तितली तुम आज भी पहले जैसी खूबसूरत हो...,यह लिखने से पहले वह आकाश में जाते हुई दिखी। उसकी चाल में नाराजगी थी। उसे मेरे लिखने की आहट मालुम हैं। पेड़ से चले जाना मुझे निजी एंकात भंग कर देने जैसा लगा। इसकी माफी कैसी होगी? मैं फिर किताब में लौटना चाहता था। इससे पहले उसे फिर अपनी स्थिति में लाने नाम पुकारने लगा..इस बार मैंने तितली नहीं आस्था कहां..। इसकी गूंज पुरे शरीर में महसूस किया होगा। नाम लेते ही भीतर का बनावटी पन बह गया जो था वही पुराना सच था, जिसकी कड़वाहट में आज भी पानी खारा है। लंबे वक्त के इंतजार के बाद मैंने फिर किताब पढ़ना शुरु किया। दूसरे पन्ने में पहुंचते ही मैंने उसे फिर गुलाब के पेड़ पर तितली बने हुए देख लिया, इस बार पेड़ के करीब पहुंचने से पहले मैं किताब बंद कर चुका था।🍁

Hindi Story by Lalit Rathod : 111673246
Lalit Rathod 3 years ago

ऐसा ही समझ ले आप।

Astha S D 3 years ago

ऐसा लगा मानो किसी अजीज दोस्त ने लिखा हो मेरे लिए

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