आज भी जब बचपन में खेली होली
याद आती है..
मेरे यादों की झोली खुशियों से
भर जाती है..
सुबह से ही गुब्बारों में रंग
भर लेते थे..
दिखे जो भी गली में उसे रंग
दिया करते थे..
शाम तक सारी गलियों में रंग ही रंग
नजर आता था..
हर कोई खुशियों के रंग में नजर
आता था..
होली खेलने के बाद रंग छुटाने की
जुगत होती थी..
मां बहुत डांट-फटकार लगातीं थीं
क्योंकि..
रंग छुटाने में पानी की टंकी जो
खाली होती थी..
मां नए नए पकवान बना सबको
खिलातीं थी..
जिससे सभी के चेहरों पर मुस्कान
आ जाती थी..
कुछ ऐसे ही बचपन में होली के रंग
हुआ करते थे..
जब हम होली को होली की तरह
जिया करते थे..
#HappyHoli