#hindiurdu poetry



हर रोज पंखुड़ियँ को
गेसु-ए-महबूब समझ सहलाते हैं,
बादलों के पीछे शर्म से डूबे
मेहताब मे तेरी सूरत तलाशते हैं

तू इधर उधर दिख जाए इसलिए रह-ए-महबूब की तलब रखते हैं
तेरी खुशबू सूंघने ने की चाहत हर इत्र को ठुकराते हैं

आरजू तुम्हारी है इसलिए हाजत-ए-रफ़ू
गैरों की महफिलों नहीं ढूंढते हैं
इस जिंदगी के मे'यार मे बस तेरे साथ की चाहत रखते है

Deepti

Hindi Poem by Deepti Khanna : 111809649

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