लबों पे मुस्कान-ए-चांद इस जमी बरखा में लगे फूलों की झड़ी ।
संगमरमर की मूरत जिसकी पलकों पे, जन्नत की सारी खुशियां थी ,खड़ीं
ज़हिर है ! उसकी कशिश खुद में हमनशी थी
लेकिन उसकी मीठी यादें मे भी ,
वो कशिश की कमी ना थी l

ना रूह-ए-रवाँ को उसने आवाज दी
लेकिन अब तलक उसकी यादें मेरे दिल के करीब हे बसी
भस्म हो जाती थी सारी हसीनाएं उसे
मेरे संग देख खड़ी
उसे जान कहते कहते ,मेरी जान वो कहीं चली गई.....

अब इस दिल में है उसकी यादें और मेरे लबों पे एक मीठी सी मुस्कान कहीं दबी
उससे जुड़ी यादों को याद कर ,आंखों में फिर भी आ जाती है नमी

वो रूह से ज़हन तक, मेरे दिल के करीब थी
लेकिन मेरे नसीब में बस उसकी खुशियां देने वाली यादें मिली ,इस जमीन
Deepti

Hindi Poem by Deepti Khanna : 111812747

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