जैसे तैसे बीत रही है जिंदगी
ये जीना क्या जीना
पता नहीं
बचपन में माँ बाप की चली
स्कूल में मास्टर की चली
जवानी में बीबी की चली
और बुढ़ापे में बच्चों की
अपनी कभी चली कि नहीं
और कभी चलेगी या नहीं
पता नहीं
हमें कभी आज़ादी मिली ही नहीं
और आगे मिलेगी या नहीं
पता नहीं ,शायद कभी नहीं
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