क्या खोया यह पता नही ,
क्या पाना था पता नही |
अन्तर पीड़ा रही जोड़ती ,
नाहक संयम रही तोड़ती |
बदला क्या जब बदा यही हो ,
बदी की चाल में लिपटा मै हो |
रोज नहाकर अश्रु सृजन में ,
खुद को छोड़ा निर्जन वन में |

Hindi Poem by Ruchi Dixit : 111848160

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now