एक शाम में बैठी थी खामोश
देखा तो सामने पाया एक प्यारा सा खरगोश
जिसकी आंखे थीं मासूम वो शायद देख रहा था मुझे
उसको देख मैंने सोचा कि जाऊं उसके पास ओर पूछूं
उससे की क्या तू भी है उदास जैसे हूं मैं
उसने बोला कि क्यों ईश्वर ने उनको ऐसा बनाया
जो इंसानों की तरह ना बोल पाया ना सुन पाया
केवल देख ही पाया
इतना सुन मैंने बोला कि तू है बड़ा मासूम जो नहीं जानता
इंसानों की तरह बोलने का अंजाम
इंसान जो देख पाता है उसे वह बोल नहीं पाता और जो
बोल पाता है वो कभी देख नहीं सकता
बात अज़ीब है पर सच है क्यों कि इसके पीछे छुपा एक
गहरा अर्थ है
मेरी बात सुनकर खरगोश कुछ सोच में पड़ा और वहां से चल दिया
शायद वह समझ गया हो इस अर्थ को
की कड़वा है मगर यह सच है ।