समाज के बदलते चिंतनीय विषयों पर
मेरा नजरिया ....
जाने कहाँ गए वो दिन, कुछ कहती थी जब हर रचना
कुछ बातें होतीं मतलब की, कुछ बतलातीं इक घटना
अब तो कलम है वो कहती, जो बस मस्तिष्क ही कहता है
मन की बातें कौन सुने, अब वर्जित है मन का कहना 🙏
स्वरचित : राजकुमार