📝 My Contract Wife
✍️ लेखक: राजु कुमार चौधरी शैली में
"जिस प्यार की शुरुआत कागज़ से होती है, उसका अंजाम दिल तक पहुँच ही जाता है..."
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प्रस्तावना
अर्जुन एक सफल बिजनेस मैन है — शांत, गंभीर और भावनाओं से दूर। उसका जीवन एकदम अनुशासित है, लेकिन भीतर एक वीरानगी है जिसे कोई समझ नहीं पाता। दूसरी ओर है अनन्या — चुलबुली, तेज़-तर्रार और ज़िंदगी को अपने अंदाज़ में जीने वाली लड़की। दोनों की दुनिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग। पर ज़िंदगी को किसे कब कहाँ ले जाए, ये किसी को नहीं पता।
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कहानी शुरू होती है…
अर्जुन की माँ कैंसर की अंतिम स्टेज में थी। उनका एक ही सपना था – बेटे की शादी देखना। लेकिन अर्जुन शादी जैसे रिश्ते को वक़्त की बर्बादी मानता था। “माँ के लिए कर लूंगा, पर प्यार-व्यार मेरे बस का नहीं…” – यही सोच थी उसकी।
अनन्या की ज़िंदगी में तूफ़ान आया था। पिता का बिजनेस डूब चुका था, और ऊपर से कर्ज़दारों का दबाव। उसे पैसों की सख्त ज़रूरत थी।
एक कॉमन जान-पहचान के जरिए अर्जुन और अनन्या की मुलाकात होती है। अर्जुन ने सीधे प्रस्ताव रखा —
> “मुझसे एक साल के लिए शादी करोगी? सिर्फ नाम की शादी। माँ की वजह से। बदले में तुम्हें हर महीने 2 लाख रुपए मिलेंगे।”
अनन्या पहले तो चौंकी। फिर सोचा – “इससे बेहतर सौदा क्या होगा?”
शर्तें साफ थीं:
एक साल का कांट्रैक्ट
कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं
मीडिया, रिश्तेदारों से दूरी
माँ के सामने अच्छे पति-पत्नी का नाटक
अनन्या मान गई।
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शादी… और उसका नाटक
शादी हुई। माँ की आँखों में खुशी के आँसू थे। अर्जुन और अनन्या ने ‘मियाँ-बीवी’ का रोल बड़ी सच्चाई से निभाया।
लेकिन रोज़मर्रा की जिंदगी ने अजीब मोड़ ले लिया।
अनन्या धीरे-धीरे अर्जुन की आदत बन गई — उसकी चाय का अंदाज़, उसकी बातें, उसके ताने… सब कुछ।
उधर अनन्या को भी एहसास हुआ कि अर्जुन उतना बेरुखा नहीं है जितना दिखता है।
वो अक्सर आधी रात को उठकर उसकी माँ की दवा देता।
पैसों के पीछे भागने वाला इंसान माँ के लिए पूजा करता दिखता।
अनन्या का दिल धड़क उठा।
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कांट्रैक्ट के परे की दुनिया
एक दिन, माँ ने अर्जुन से कहा —
> “बेटा, ये लड़की हमारे घर की लक्ष्मी है। तूने इसे दिल से अपनाया या सिर्फ कांट्रैक्ट से?”
अर्जुन चुप रहा। पर मन में हलचल थी।
कांट्रैक्ट के 8 महीने बीत चुके थे। अब दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई तेज़ हो चुकी थी।
एक रात अर्जुन ने पूछा —
> “अगर ये कांट्रैक्ट न होता… तब भी तुम मुझसे शादी करती?”
अनन्या ने पलटकर जवाब दिया —
> “अगर तुम्हारा दिल न होता, तो कांट्रैक्ट भी न होता…”
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टूटता समझौता, जुड़ते दिल
एक दिन माँ का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में पूरे गाँव ने देखा — अर्जुन ने पहली बार किसी के सामने रोया। अनन्या ने उसे बाँहों में भर लिया।
अब शादी का कारण जा चुका था।
कांट्रैक्ट पूरा हो चुका था।
एक साल बाद, अनन्या ने सूटकेस उठाया।
> “मैं जा रही हूँ… तुम्हारा कांट्रैक्ट पूरा हुआ…”
पर अर्जुन ने रास्ता रोक लिया।
> “अब मैं एक और कॉन्ट्रैक्ट चाहता हूँ…
इस बार बिना तारीख के, बिना शर्त के…
शादी नहीं — प्यार वाला रिश्ता… हमेशा का…”
अनन्या की आँखों से आँसू झरने लगे। वो मुस्कुराई।
> “अब तो पैसे भी नहीं लोगे?”
> “अब तो दिल दाँव पर है… क्या तुम लोगी?”
अनन्या ने उसका हाथ थाम लिया।
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एपिलॉग
अब अर्जुन और अनन्या एक-दूसरे के लिए जीते हैं। बिजनेस पार्टनर, लाइफ पार्टनर, और दिल के साथी बन चुके हैं।
"कभी-कभी सबसे गहरे रिश्ते वहीं से शुरू होते हैं जहाँ दिल और दस्तखत दोनों मिलते हैं।"
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🌟 सीख:
रिश्ते जब दिल से निभाए जाएँ, तो कांट्रैक्ट भी इश्क़ बन जाता है।