*तेरे हिस्से की रोशनी*
चाहिए जो… वो वक़्त के साथ हम ढूंढ़ लेंगे,
कब से वह चाह हमारी, सनम की संग रह नहीं।
कोई जहाँ जवाब सच न रोये जाए,
ना जाने अपना वक़्त भी क्या अजीब सिलसिला प्यारा सा रह गया।
जो राम मेरे करीब से आए,
कहीं न कहीं वो हँसते हुए दम निकल रहे।
मुझे तो तेरे हिस्से में,
मेरी तक़दीर की वो रौशनी से ही चाहत है।
तेरे नाम की ख़ामोशी, अब मेरी दुआ बन गई है,
इश्क़ का जवाब, अब रब की इनायत सी लगती है।
जो पल टूटे नहीं थे, वही रूह बन गए हैं,
और जो पास थे, अब दूर से मुस्कुरा रहे हैं।
_Mohiniwrites