"नरक है ये जीवन"
नरक ही तो है ये जीवन,
पूछोगे क्यों? तो सुनो ज़रा,
जहाँ जन्म के साथ ही मासूमियत छीन ली जाती है,
और माँ की गोद में भी मौत दिख जाती है।
जहाँ खेलने की उम्र में खिलौना छूट जाता है,
और किसी बेटी का बचपन पाप की भेंट चढ़ जाता है।
जहाँ दहेज के लिए हर रोज़ कोई औरत सताई जाती है,
और एक स्त्री अपने ही घर में घुट-घुट कर जीती है।
जहाँ नज़र हर वक़्त कपड़ों के पार जाती है,
और इज़्ज़त सिर्फ़ शब्दों में सिमट कर रह जाती है।
जहाँ न समझा जाता है एक लड़की का सपना,
बस बंद कमरों में क़ैद हो जाता है हर अपना।
जहाँ कहा जाता है — "ये काम तुम्हारा नहीं",
और हर मोड़ पर उसके सपने कुचले जाते हैं वहीं।
क्या यही जीवन है? क्या यही इंसानियत है?
अगर हाँ — तो सच कहूँ, ये तो बस नरक है।